वैश्विक राजनीति में बदलाव की घातक परिणति
- उमेश चतुर्वेदी
सात अक्तूबर को इस्राइल पर अचानक हमला भले ही हमास ने किया है, लेकिन दुनिया का एक बड़ा हिस्सा यह मानने लगा है कि यह हमला न सिर्फ सुनियोजित है, बल्कि इसके पीछे मौजूदा अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में उपजी परिस्थितियां भी जिम्मेदार हैं। अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने साफ कहा है कि इस हमले के पीछे ईरान का हाथ है। हालांकि अब तक अमेरिका के हाथ ठोस सुबूत नहीं लगे हैं। जिस तरह हमास ने इस्राइल जैसी सैनिक ताकत को चौंकाया है, उसके मिसाइल रोधी आयरन डोम सिस्टम को चकमा दिया है, उससे साफ है कि उसे तकनीक ऐसे देशों ने मुहैया करायी है, जिनकी सैनिक और वैज्ञानिक ताकत स्थापित है। शक रूस और चीन की ओर जा रहा है जिसमें ईरान उसका मोहरा बना है।
दरअसल, हाल के दिनों में अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में शक्ति संतुलन बदलने लगा है। भारत, अमेरिका और सऊदी अरब ज्यादा नजदीक हैं। सऊदी अरब अपने विशाल तेल भंडार और उससे हासिल आर्थिक ताकत के दम पर अरब देशों के बीच अगुआ बनने की ओर अग्रसर है। लेकिन ईरान उसकी राह में बाधा है। अमेरिकी कोशिशों से सऊदी अरब और इस्राइल के बीच रिश्ते सामान्य होते जा रहे थे। उम्मीद थी कि इस बारे कुछ महीनों में औपचारिक घोषणा हो सकती है। वैसे सऊदी और अमेरिका के बीच नाटो जैसी संधि भी हो चुकी है। जिसमें सऊदी पर हमला अमेरिका पर हमला माना जाएगा। ऐसे में अमेरिका उसकी सुरक्षा के लिए जिम्मेदार होगा। इससे चीन और रूस चिंतित हैं।
वाजपेयी सरकार के दौरान से भारत की विदेश नीति में मध्य पूर्व को लेकर बदलाव भी आया है। जिसे मोदी सरकार ने शीर्ष पर पहुंचाया है। अब भारत के लिए फिलीस्तीन से ज्यादा नजदीक इस्राइल है। हाल ही में दिल्ली में संपन्न हुए जी 20 शिखर सम्मेलन में भारत के प्रयासों से आईएमईसी यानी इंडिया, मिडिल ईस्ट, यूरोप इकोनॉमिक कॉरिडोर का ऐलान हुआ। माना जा रहा है कि यह चीन के बीआरआई यानी बॉर्डर रोड इनिशिएटिव का जवाब है।


यहां बीआरआई समेत चीन की साम्राज्यवादी योजना की चर्चा उचित है। वह बीआरआई परियोजना के तहत आने वाले देशों में सड़कों, रेलवे, बंदरगाहों, हवाई अड्डों और ऊर्जा परियोजनाओं आदि के निर्माण में निवेश कर रहा है। चीन इसके जरिये रणनीतिक रूप से न सिर्फ वैश्विक स्तर पर अपना प्रभाव बढ़ा रहा है, बल्कि बीआरआई से जुड़े देशों की आर्थिकी को नियंत्रित करता जा रहा है। पाकिस्तान और श्रीलंका इसके उदाहरण हैं। हालांकि उसका दावा है कि चीनी निवेश से बीआरआई देशों का आर्थिक विकास होगा। इसी सोच के तहत चीन ने पाकिस्तान में सीपीईसी यानी चीन पाकिस्तान इकोनॉमिक कारिडोर शुरू किया। इस परियोजना का उद्देश्य चीन के शिंजियांग प्रांत के लिए पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह से जोड़कर चीन के लिए व्यापार और परिवहन मार्ग हासिल करना है। इस परियोजना में सड़क, रेल, बिजली संयंत्र, बंदरगाह और अन्य बुनियादी ढांचा विकसित करना है। भारत के लिए चिंता की बात है कि यह परियोजना और इससे जुड़ी सड़क पाक अधिकृत कश्मीर से भी गुजरती है। इसी वजह से भारत इसका विरोध करता है।


चीन बीआरआई और सीपीईसी के जरिये पाकिस्तान, ईरान, तुर्की, बांग्लादेश, रूस, श्रीलंका, म्यांमार आदि को जोड़ने की तैयारी में है। वह भारत को एक तरह से सड़क और समुद्र मार्ग से घेरने की कोशिश में है। वैसे चीन के आर्थिक साम्राज्यवाद का नमूना अफ्रीकी देशों और श्रीलंका में दिखने लगा है। उसने इन देशों में निवेश के बाद इन्हें गुलाम बनाना शुरू कर दिया। अर्थव्यवस्था तबाह कर दी। परियोजनाओं के जरिये इन देशों में सैनिक अड्डे भी बनाता है। इससे भारत ही नहीं, अमेरिका की भी चिंताएं बढ़ी थीं। यही वजह है कि भारत और अमेरिका ने मिलकर आईएमईसी परियोजना को बढ़ावा दिया। चीन इससे चिंतित है। ईरान पर अमेरिकी दबाव लगातार बढ़ रहा है। यही वजह है कि चीन और ईरान पर्दे के पीछे भारत और अमेरिका के खिलाफ एक होते जा रहे हैं।
ईरान की दुखती रग इस्राइल है। क्योंकि अमेरिका सऊदी और इस्राइल के जरिये ईरान पर निगाह रखता है। सऊदी पर ईरान सीधे कार्रवाई नहीं कर सकता। इस्राइल अरब और मुस्लिम देशों की दुखती रग है। लिहाजा इस्राइल को तंग करने की सोची गई। माना जा रहा है कि भारत और अमेरिका के आईएमईसी कारिडोर में सहभागिता के साथ ही सऊदी अरब से बढ़ती इस्राइल की दोस्ती को चुनौती देने की कोशिश में ईरान और चीन जुटे हैं। एक तरफ चीन को लगता है कि भारत प्रस्तावित आईएमईसी के चलते उसकी बीआरआई योजना को चुनौती मिल सकती है तो इस्राइल और सऊदी दोस्ती के बाद ईरान के दबदबे पर असर पड़ता। इसीलिए दोनों ने मिलकर हमास को मदद दी और इस्राइल पर हमला बोल दिया।
वैसे ईरान अपने परमाणु कार्यक्रम के कमजोर पड़ने और उस पर अमेरिका और इस्राइल के निगाह रखने से भी चिढ़ा हुआ है। इसलिए उसने इस्राइल को सबक सिखाने की सोची। जिसे चीन का अपने वैश्विक हितों के लिए साथ मिला। यूक्रेन युद्ध के बाद यूक्रेन के जरिये अमेरिकी अगुआई वाले देशों ने रूस पर भी दबाव बना रखा है। इससे रूस भी परेशान है। इसीलिए हमास को इन देशों ने मुहरा बनाया। हमास का हमला सिर्फ फिलिस्तीनी आजादी का संघर्ष नहीं है, बल्कि वैश्विक राजनीति में आ रहे बदलावों और शक्ति संतुलन के नए समीकरणों की उपज है। हमास के हमले की प्रतिक्रिया नई विश्व व्यवस्था की ओर भी एक कदम बढ़ाएगी।

No comments:

Post a Comment

Popular Posts