हिंसा की शिकार महिलाएं और बच्चे ही क्यों

- संजाीव ठाकुर
पूरा विश्व जहां महिला सशक्तिकरण और बच्चों को कुपोषित होने के लिए सशक्त मुहिम चला रहा है वहीं दूसरी तरफ युद्ध और हिंसा मानवता के चिथड़े उड़ा रहा है। ताजा-ताजा हमास और इजरायली युद्ध में बच्चों और महिलाओं पर अत्याचार देखकर रोंगटे खड़े हो जाते हैं इसी तरह यूक्रेन रूस युद्ध में सर्वाधिक नुकसान बच्चों और महिलाओं की मौत से ही हुआ है। युद्ध और हिंसा से चाहे पिता,भाई या पुत्र की मृत्यु हो परिणाम स्त्रियों को ही भुगतना पड़ता है। घरों के टूटने और नष्ट होने पर भी स्त्रियों बच्चों पर सबसे ज्यादा प्रभाव पड़ता है स्त्रियां, बच्चे बेघर होकर अनाथ हो जाते हैं हर तरफ त्राहिमाम मच जाता है।


इसराइल हमास युद्ध में हजारों स्त्रियां और बच्चे मौत से साक्षात्कार कर रहे हैं, मानवता सिसक रही है मौत का तांडव अपना परचम लहरा रहा है रूस यूक्रेन युद्ध में भी सर्वाधिक नुकसान महिलाओं तथा बच्चों का ही हुआ है। हिंसा और युद्ध से सर्वाधिक नुकसान महिलाओं और बच्चों का ही क्यों होता है? क्या इसे रोका नहीं जा सकता है। इसी तरह मणिपुर की महिलाओं पर शर्मनाक और अमानवीय पुरुष समाज की हरकतों से पूरा समाज और पूरा देश लज्जित हुआ है। छोटी बच्चियों से लेकर बड़ी बूढ़ी महिलाओं तक शारीरिक, सामाजिक शोषण समाज के लिए एक काला अध्याय था l हम अपने पशुओं की तरह व्यवहार के कारण लज्जित तो हुए ही पर उसके पश्चात कोई पछतावा दिखाई नहीं देता है। पूरे विश्व समेत देश के कोने कोने से महिलाओं को अपमानित करने की घटनाएं रोज हो रही हैं क्या हमारे नैतिक मूल्य और आस्थाये अब पूर्ण रूप से स्खलित हो चुकी है नैतिक मूल्यों का क्षरण अचानक तेज होता जा रहा हैl धन तथा पद और साम्राज्यवाद की लोलुपता ने सारी हदें पार कर दी हैंl समाज पुरुष प्रधान होने का यह मतलब कतई नहीं होना चाहिए कि स्त्री और बच्चे ही हर ज्यादति और अत्याचार की शिकार होते रहें?
प्राचीन काल से अब तक स्त्री ही पुरुष तथा समाज के दमन का केंद्र रही हैl शिक्षा तथा आर्थिक स्थिति के विकास के बाद भी स्त्रियों की दयनीय स्थिति में बहुत ज्यादा परिवर्तन नहीं आया है देश की आबादी की 45% आबादी महिलाओं की है पर अभी तक स्त्रियों की स्थिति में बहुत ज्यादा परिवर्तन परिलक्षित नहीं हुआ है,यह एक चिंतनीय समाजिक समस्या हमारे सामने ज्वलंत खड़ी हैl



भारतीय समाज की विशेषता है कि यह क्रमिक रूप से बाहरी मूल्यों को अपनाते हुए आगे बढ़ रहा है जिसके फलस्वरूप आज समाज विभिन्न संस्कृतियों, सभ्यताओं तथा मूल्यों का अद्भुत समूह बन गया, यूं कहें कि अलग-अलग सभ्यताओं के पुष्पों का एक रंग बिरंगा गुलदस्ता ही बन गया हैl वही सभ्यताओं के आत्मसात करने के परिणाम स्वरूप पाश्चात्य सभ्यता से हिंदुस्तानी समाज में बड़ी विसंगतियां जन्म लेने लगी है। सभ्यताएं तो आई लेकिन अपनी बुराइयों को भी लेकर आई हैं। इससे भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों का अवमूल्यन ही हुआ है। और इसके अलावा पाश्चात्य सभ्यता ने खुलेपन आमंत्रित कर युवाओं तथा पुरुषों के मन में वासनात्मक कुंठा को जन्म दिया है। जिसके कारण महिलाओं पर यौन हिंसा की घटनाएं बढ़ती जा रही है। आज भारतीय समाज निश्चित तौर पर परिवर्तन के दौर से गुजर रहा है और यही वजह है कि पाश्चात्य सांस्कृतिक प्रवृतियों मानसिक भावनाओं को संक्रमित कर कुंठा को जन्म दिया है। यही कारण है कि मानसिक संक्रमण से भारतीय समाज पाश्चात्य सभ्यता का अंधा अनुसरण कर रहा है जिसके कारण मानवीय मूल्यों में नैतिक स्खलन स्पष्ट दिखाई देने लगा और इस नैतिक गिरावट से हिंसा में काफी वृद्धि हुई है। पाश्चात्य सभ्यता के दुष्प्रभाव में सबसे गहरा दुष्प्रभाव यौन हिंसा के प्रचार प्रसार का है। पुरुष समाज की मानसिकता है की पुरुष होने के कारण उन्हें कुछ चीजों का हक नैसर्गिक रूप से प्राप्त है जैसे कि अच्छी पत्नी और संतान में बेटों की प्राप्ति, कोई भी पुरुष अपनी आने वाली पीढ़ी में पुत्री नहीं चाहता है जबकि पुत्र पुत्री एक समान ही होते हैं बल्कि जो मायूस होकर पुत्री जन्म का दुख मनाते हैं उन्हें वर्तमान में पीएससी और यूपीएससी की रिजल्ट लिस्ट देखनी चाहिए इसमें बालिकाओं ने बहुत अच्छे अंको से परीक्षा पास कर समाज में उनकी अहम भूमिका को सार्थक किया है। वर्तमान समाज में परंपरागत रूप से पुरुषों को ऐसा करते देख उसकी आने वाली पीढ़ी भी अपने महिला संगिनी से दुर्व्यवहार और हिंसा करने से नहीं चूकता है। पुरुष की कुंठा इस कदर बढ़ चुकी है कि वह किसी सुंदर स्त्री को देखकर यह चाहने लगता है कि वह स्त्री उसकी अंक शायनी हो जाए और यदि स्त्री उसके विमुख होती है तो वह उस पर बलात नियंत्रण करने की कोशिश में यौन अपराध की ओर उन्मुख हो जाता है। अपरिपक्व उम्र से ही किशोरावस्था के युवक सेक्सुअल हिंसा के प्रति उन्मुख होने लगे हैं हमें इसकी असली वजह तथा कारण को समझना होगा मोबाइल का इंटरनेट कंप्यूटर लैपटॉप ने इस विकृत संस्कृति को एक खुला आकाश दे दिया है समाज में बढ़ती योन अपराधिक हिंसा के मुख्य कारणों में से एक इंटरनेट मोबाइल और लैपटॉप का घर घर उपलब्ध होना ही है।
मानसिक रूप से अपरिपक्व को बच्चों के पास मोबाइल तथा लैपटॉप तथा इंटरनेट आ चुका है और उससे वह वह वासनात्मक कहानियां, चित्र और फिल्में देखकर युवतियों तथा छोटी-छोटी बच्चियों पर यौन अपराध करने से नहीं चूकते और यही वजह है कि भारतीय संस्कृति विकृत होकर युवकों द्वारा बड़ी संख्या में यौन अपराध किए जा रहे हैं। जिसके कारण महिलाओं की भावना तथा आत्म सम्मान में गिरावट आकर आत्महत्या तक के परिणाम सामने आने लगे हैं।
आंकड़ों में यदि जाएं तो 2020 में लगभग 40,000 बलात्कार के मामले हिंदुस्तान में सामने आए हैं जिनमें 18 साल से कम आयु की लड़कियों की संख्या 16800 की और सबसे खतरनाक तथा विवाद,वीभस्त आंकड़ा जो है वह 6 साल से कम उम्र की लड़कियों के साथ बलात्कार की घटना के लगभग 600 मामले सामने आए हैं। यौन हिंसा के अलावा बच्चियों, युवतियों तथा महिलाओं द्वारा युवाओं द्वारा दिए गए प्रणय निवेदन तो ठुकरा दिए जाने के बाद तेजाब फेंकने की घटनाएं तीव्रता से बड़ी हैं 2010 से लेकर 2020 तक महिलाओं पर तेजाब फेंकने की 1208 घटनाएं विभिन्न जगहों में संबंधित थानों में पंजीकृत हुई है।
सुप्रीम कोर्ट द्वारा प्रशासन को एसिड की खरीदी बिक्री पर रोक लगाने के आदेश भी दिए गए, पर आज भी पूरे देश में तेजाब की बिक्री खुलेआम हो रही है। तेजाब पर तत्काल प्रभाव से प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए। इसके अलावा इंटरनेट मोबाइल पर भी प्रभावी नियंत्रण आवश्यक है इस पर भी एक उम्र की सीमा से ऊपर के लोगों को इस्तेमाल करने की अनुमति दी जानी चाहिए।
भारत में महिलाओं और लड़कियों की सुरक्षा के प्रति लोगों को ज्यादा से ज्यादा जागरूक किया जा कर एक अभियान चलाकर इसे योजनाबद्ध तरीके से कानून की मदद से हिंदुस्तान भर में विस्तारित किया जाना चाहिए। इसी तरह कन्या भ्रूण हत्या को भी समूल नष्ट करने का अभियान चलाकर एक प्रभावी योजना तैयार की जानी चाहिए। भारतीय संस्कृति के प्रचार प्रसार के साथ शासकीय योजनाओं को भी यौन हिंसा प्रताड़ना के खिलाफ आमजन को शिक्षित और जागरूक कर पाश्चात्य सभ्यता को ना अपनाने हेतु प्रेरित करना चाहिए।
(स्तंभकार, चिंतक, रायपुर छत्तीसगढ़)

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