राष्ट्रीय टीबी उन्मूलन कार्यक्रम के अंतर्गत

तीन दिवसीय राज्य स्तरीय मॉड्युलर प्रशिक्षण शुरू

-       एक भी लक्षण युक्त रोगी टीबी जांच से वंचित न रहे : सीएमओ

-       पहले दिन के प्रशिक्षण में पीडिया टीबीएमडीआर और डीएसटीबी पर हुई बात

 

गाजियाबाद, 31 अक्टूबर, 2023प्रधानमंत्री टीबी मुक्त भारत अभियान के सफल कार्यान्वयन के लिए चिकित्सा अधिकारियों को मॉड्यूलर प्रशिक्षण दिया जा रहा है। प्रशिक्षण कार्यक्रम में प्रतिभाग करने वाले चिकित्साधिकारी मास्टर ट्रेनर का कार्य करेंगे और अपने अधीन तैनात चिकित्सकों को प्रशिक्षण प्रदान करेंगे। जिला एमएमजी चिकित्सालय में सोमवार को राष्ट्रीय टीबी उन्मूलन कार्यक्रम के अंतर्गत तीन दिवसीय राज्य स्तरीय मॉड्यूलर प्रशिक्षण का शुभारंभ हुआ। प्रशिक्षण कार्यक्रम में जनपद में अलग - अलग इकाइयों पर तैनात 40 चिकित्सा अधिकारियों ने प्रतिभाग किया। 

प्रशिक्षण सत्र को संबोधित करते हुए मुख्य चिकित्सा अधिकारी (सीएमओ) डा. भवतोष शंखधर ने कहा - जांच बढ़ाकर अधिक से अधिक क्षय रोगी खोजे जाएं। चिकित्साधिकारी ओपीडी के दौरान इस बात का विशेष ध्यान रखें कि टीबी से मिलते - जुलते लक्षण वाला कोई भी रोगी टीबी की जांच से वंचित न रह जाए। निजी चिकित्सकों से उपचार ले रहे क्षय रोगियों का भी शत-प्रतिशत नोटिफिकेशन सुनिश्चित करें। जिला क्षय रोग अधिकारी (डीटीओ) डा. अमित विक्रम ने प्रशिक्षण में शामिल हुए चिकित्सा अधिकारियों का आह्वान किया कि प्रशिक्षण में बताई गई बातों पर ओपीडी के दौरान अवश्य अमल करें। 

राज्य स्तरीय प्रशिक्षण टीम ने चिकित्सा अधिकारियों को टीबी के बारे में बेसिक जानकारी देने के साथ ही बच्चों में टीबी (पीडिया टीबी)मल्टी ड्रग रजिस्टेंट (एमडीआर) टीबी और ड्रग सेंसिटिव ट्यूबरक्लोसिस (डीएसटीबी) के बारे में विस्तार से बताया। प्रशिक्षण टीम में आरटीपीएमओ डा. एके चौधरीस्टेट टीबी ट्रेनिंग सेंटरआगरा से डा. अनुराग श्रीवास्तवविश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) कानपुर से डा. प्रीति और डब्ल्यूएचओ की मेरठ मंडल कंसलटेंट डा. रेणु डफे शामिल रहीं।

प्रशिक्षण का शुभारंभ टीबी के बारे में बेसिक जानकारी देने के साथ हुआ। प्रशिक्षण में बताया गया कि टीबी मुक्त होने का मतलब 2015 में टीबी से हुई मौतों को 90 प्रतिशत तक कम करना है। इसी के साथ 2015 में हुए टीबी नोटिफिकेशन जब कम होकर मात्र 20 प्रतिशत रह जाएंगे तो माना जाएगा कि संबंधित जिलाप्रदेश और देश टीबी मुक्त हो गया है। यह तभी संभव है जब जल्द से जल्द क्षय रोगी की पहचान की जाए और शत-प्रतिशत नोटिफिकेशन होयानि ट्रैक एंड ट्रीट के फार्मूले का अक्षरशः पालन किया जाए।

किसी घर में यदि कमाने वाला एक ही शख्स हो और वही टीबी के कारण बिस्तर पर चला जाए तो परिवार पर दोहरी मार पड़ती है। हमें प्रयास यह करना है कि रोगी के बिस्तर पर जाने से पहले ही उसकी पहचान कर उपचार शुरू कर दिया जाए। उस स्थिति में रोगी को अपना काम छोड़ने के लिए भी मजबूर नहीं होना पड़ेगा और जाहिर तौर उसका उपचार भी उतना जटिल नहीं होगा। साथ ही क्षय रोगी को यह भी समझाने की जरूरत है कि दवा बीच में छोड़ने पर मल्टी ड्रग रजिस्टेंट (एडीआर) टीबी हो जाती हैजिसका उपचार ड्रग सेंसिटिव ट्यूबरक्लोसिस (डीएसटीबी) के मुकाबले काफी जटिल हो जाता है। दवा खाने में लापरवाही के कारण एमडीआर टीबी के रोगी बढ़ रहे हैंइस पर प्रभावी अंकुश लगाने की जरूरत है।

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