राजनीतिक इच्छाशक्ति जरूरी
इलमा अजीम
आज हमारे सामने सबसे बड़ी व गंभीर समस्या नशे की है। नशे का यह कैंसर जिस तीव्रता से समाज में फैल रहा है उसे देख-सुनकर आदमी सिहर उठता है और लगता है कि जिस गति से नशा समाज को विनाश की गर्त में ले जा रहा है उससे तो समाज का अस्तित्व ही खतरे में पड़ जाएगा। प्रतिदिन नशे से होने वाली युवाओं की मौतों की खबरें और नशीले पदार्थों की बड़ी-बड़ी खेपें पकड़े जाने के समाचार डराते हैं। मानव समाज के अस्तित्व को खतरे में डालने वाला स्वयं इंसान ही है जो पैसे के लालच में अन्धा होता जा रहा है। एक समय था जब तंबाकू, सिगरेट, बीड़ी और अधिक से अधिक शराब को नशा माना जाता था। लेकिन आज अफीम, चरस, गांजा, कोकीन, चिट्टा और न जाने कौन-कौन से नए नामों के साथ नशा समाज में तबाही मचा रहा है। इस धंधे में जो अंधाधुंध कमाई हो रही है उसके लालच में लोग इस दलदल में फंसते हैं। यह भी कि जो फंस गए वे फिर निकल नहीं पाते। इसका भयंकर परिणाम यह हो रहा है कि बच्चे, विद्यार्थी और युवा नशेड़ी बन जाते हैं। परिवार नियोजन के कारण बहुत सारे परिवारों में एक ही बच्चा, लड़का या लड़की होती है और वह मासूम जब नशे की लत का शिकार हो जाता है तो मां-बाप की जिन्दगी भी नर्क बन जाती है। यदि युवा पीढ़ी नशेड़ी होगी तो न सेना के लिए वीर सैनिक मिलेंगे, न पुलिस प्रशासन के लिए स्वस्थ व जागरूक कर्मचारी-अधिकारी मिल पाएंगे। नशे का यह जहर सारे समाज को खोखला कर देगा। नि:संदेह इस संकट को दूर करने के लिए कोई बाहर से आकर समाधान नहीं निकालेगा। हम सभी को स्वयं नागरिक के तौर पर अपने परिवार, समाज और राष्ट्र के प्रति दायित्व निभाना है। नशे की बात हो, महिलाओं से छेड़खानी की बात हो या कोई दुर्घटना हो जाए तो आंख बचाकर निकलने में ही भलाई समझी जाती है। इसलिए पहले तो सभी अपना पारिवारिक दायित्व निभाएं। हम केवल बच्चे पैदा करना ही अपना दायित्व न समझें, बल्कि उन्हें अच्छे संस्कार देना, समय देना और समाज को सुसंस्कृत, सभ्य नागरिक देना भी सभी का दायित्व है। सामाजिक दायित्व को समझते हुए बुराई के खिलाफ खड़े होने का नैतिक साहस अपने अंदर पैदा करें और सामाजिक दायित्व को निभाएं।
आज हमारे सामने सबसे बड़ी व गंभीर समस्या नशे की है। नशे का यह कैंसर जिस तीव्रता से समाज में फैल रहा है उसे देख-सुनकर आदमी सिहर उठता है और लगता है कि जिस गति से नशा समाज को विनाश की गर्त में ले जा रहा है उससे तो समाज का अस्तित्व ही खतरे में पड़ जाएगा। प्रतिदिन नशे से होने वाली युवाओं की मौतों की खबरें और नशीले पदार्थों की बड़ी-बड़ी खेपें पकड़े जाने के समाचार डराते हैं। मानव समाज के अस्तित्व को खतरे में डालने वाला स्वयं इंसान ही है जो पैसे के लालच में अन्धा होता जा रहा है। एक समय था जब तंबाकू, सिगरेट, बीड़ी और अधिक से अधिक शराब को नशा माना जाता था। लेकिन आज अफीम, चरस, गांजा, कोकीन, चिट्टा और न जाने कौन-कौन से नए नामों के साथ नशा समाज में तबाही मचा रहा है। इस धंधे में जो अंधाधुंध कमाई हो रही है उसके लालच में लोग इस दलदल में फंसते हैं। यह भी कि जो फंस गए वे फिर निकल नहीं पाते। इसका भयंकर परिणाम यह हो रहा है कि बच्चे, विद्यार्थी और युवा नशेड़ी बन जाते हैं। परिवार नियोजन के कारण बहुत सारे परिवारों में एक ही बच्चा, लड़का या लड़की होती है और वह मासूम जब नशे की लत का शिकार हो जाता है तो मां-बाप की जिन्दगी भी नर्क बन जाती है। यदि युवा पीढ़ी नशेड़ी होगी तो न सेना के लिए वीर सैनिक मिलेंगे, न पुलिस प्रशासन के लिए स्वस्थ व जागरूक कर्मचारी-अधिकारी मिल पाएंगे। नशे का यह जहर सारे समाज को खोखला कर देगा। नि:संदेह इस संकट को दूर करने के लिए कोई बाहर से आकर समाधान नहीं निकालेगा। हम सभी को स्वयं नागरिक के तौर पर अपने परिवार, समाज और राष्ट्र के प्रति दायित्व निभाना है। नशे की बात हो, महिलाओं से छेड़खानी की बात हो या कोई दुर्घटना हो जाए तो आंख बचाकर निकलने में ही भलाई समझी जाती है। इसलिए पहले तो सभी अपना पारिवारिक दायित्व निभाएं। हम केवल बच्चे पैदा करना ही अपना दायित्व न समझें, बल्कि उन्हें अच्छे संस्कार देना, समय देना और समाज को सुसंस्कृत, सभ्य नागरिक देना भी सभी का दायित्व है। सामाजिक दायित्व को समझते हुए बुराई के खिलाफ खड़े होने का नैतिक साहस अपने अंदर पैदा करें और सामाजिक दायित्व को निभाएं।
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