अस्मिता की राजनीति पर नैतिक संकट!
- अजित राय
मुंबई में इंडिया गठबंधन की बैठक के बाद बिहार के मुख्यमंत्री, नीतीश बाबू ने केंद्र की भाजपा सरकार पर हमला बोलते हुए कहा कि, केंद्र में बैठे लोग सिर्फ हिंदू-मुस्लिम का एजेंडा लेकर चल रहे हैं, लोगों को धर्म-मजहब के नाम पर बांटने में लगे हैं। उनका लक्ष्य समाज के बीच स्थापित भाईचारे को खत्म करना है, जबकि, हमारा लक्ष्य सभी को लेकर चलने का है, समाज के सभी तबकों का उत्थान है।
नीतीश बाबू को केंद्र की सरकार पर हमला बोलने का पूरा अधिकार है, और यह लोकतंत्र की खूबसूरती भी है कि अगर सत्तापक्ष किसी गलत राह का राही बन जाए, तो विपक्ष उसकी खाल उधेड़े। मगर, ऐसा करने से पहले, खुद के गिरेबांन पर भी झांक लेनी चाहिए। किसी पर आरोप मढ़ने से पहले, मुद्दे से जुड़ी सच्चाई की भी जानकारी रखनी चाहिए। नीतीश बाबू ने केंद्र में बैठी सरकार पर देश में स्थापित भाईचारे को खत्म करने का आरोप अक्सर मढ़ते रहते हैं।
नीतीश बाबू इस सवाल का जवाब देना चाहेंगे, कि क्या, इस सरकार के सत्तासीन होने से पहले इस तरह के प्रयास नहीं हुए? क्या इसका आगाज मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद ही हुए? अगर यह सरकार इतनी ही गंदी सोच वाली है, सांप्रदायिक है, तो वक्त-बेवक्त इनके साथ होकर, इनसे गलबहियां कर, आपने सत्ता का मजा लेने का गंदा खेल क्यों खेला? अगर केंद्र में बैठी सरकार समाज को बांटने, भाईचारे को खत्म करने, गला घोंटने का षड्यंत्र रचती है, गंदा खेल करती है, तो क्या आप इसी तरह के खेल को हवा देने में नहीं लगे हैं? अगर नहीं, तो फिर बिहार के शिक्षा विभाग से जुड़ी छुट्टियों में मुस्लिम समुदाय से जुड़ी छुट्टियों को यथावत रख, हिंदुओं की छुट्टियों में कटौती क्यों की? अगर, रक्षाबंधन जैसे त्योहार पर कैंची चलाने, जन्माष्टमी पर कैंची चलाने का साहस दिखाया, तो जरा चेहल्लुम की छुट्टी पर भी कैंची चलाने का साहस दिखाएं। इसमें दिक्कत भी नहीं, और संभवतः किसी को एतराज भी नहीं होगी। क्योंकि, जब रक्षाबंधन का त्योहार स्कूल में ही रहकर दोनों समुदाय (हिंदू-मुस्लिम) के लोगों ने मना लिया, तो चेहल्लुम भी दोनों समुदाय के लोग स्कूल में ही रहकर, साथ-साथ मना लेंगे। और, इससे आपका मकसद, लक्ष्य, सबको साथ लेकर चलने का पुनीत प्रयास और कर्तव्य भी परवान चढ़ने लग जाएगा। जरा ऐसा करने का साहस तो दिखाएं। पर, नहीं! ऐसा करने का साहस दिखा ही नहीं पाएंगे! क्योंकि, इसमें एक समुदाय विशेष के वोटों के खिसक जाने का खतरा जो साफ नजर आता है।
केंद्र में बैठी भाजपा सरकार, अगर सत्ता की खातिर समाज के बीच स्थापित भाईचारे को खत्म करने का षड्यंत्र रचती है, तो आप भी तो वोटों की खातिर मुस्लिम समुदाय के लोगों की छुट्टियाँ यथावत रख, हिंदुओं की छुट्टियों पर कैंची चलाने का कुत्सित खेल खेला है। जहां तक भाईचारे को खत्म करने, नष्ट करने का सवाल है, तो यह सिलसिला विगत नौ वर्षों में ही शुरू नहीं हुआ, बल्कि इसकी शुरूआत 19वीं सदी में सांप्रदायिक हिंसा की शुरूआत से ही हुई। अगर कोई ऐसा सोचता है, कहता है कि समाज में स्थापित भाईचारे का खात्मा केंद्र में बैठी भाजपा सरकार ने की है, तो यह गलत सोच भी है, और गलत कथन भी। ऐसी गलत सोच रखनेवालों को यहां यह बताना जरूरी है कि अगर केंद्र में भाजपा की सरकार नहीं भी होती, तो यह सब खेल रुकने वाला नहीं था, क्योंकि, भाईचारे को जिन स्रोतों से प्राणवायु मिल रही थी, उन सभी स्रोतों को भूमंडलीकरण ने अवरुद्ध कर दिया। इतिहास-बोध के अभाव में, किसी पर केवल आरोप मढ़ने की आदत ठीक नहीं।
दरअसल लोकतंत्र में सार्वजनिक पद पर आसीन व्यक्ति को अंततोगत्वा जनता को जवाब देना होता है। ऐसी जवाबदेही को कानून और नियमों की व्यवस्था से प्रभावी किया जाता है जिसे जनता के निर्वाचित प्रतिनिधि अपने कानूनों द्वारा अधिनियमित करते हैं। नैतिकता ऐसे कानून और नियमों के निर्माण का एक आधार प्रदान करती है। यह लोगों के आदर्श विचार ही होते हैं जो कानून और नियम बनाकर उनका चरित्र निर्माण करते हैं। हमारी कानूनी व्यवस्था अच्छाई और न्याय की साझा दृष्टि से निःसृत होती है।
लोकतंत्र का मूलभूत सिद्धांत यह है कि सत्ता धारण करने वाले सभी व्यक्ति इसे लोगों से प्राप्त करते हैं। दूसरे शब्दों में सभी सार्वजनिक पदों पर आसीन व्यक्ति जनता की धरोहर हैं। सरकारी भूमिका में वृद्धि से सार्वजनिक पद पर बने लोग जन-जीवन पर पर्याप्त प्रभाव डालते हैं। जनता और पदाधिकारी के बीच में धरोहर का संबंध यह अपेक्षा करता है कि अधिकारियों को सौंपे गए अधिकारों का प्रयोग लोगों की सर्वोत्तम भलाई या ’जन हित’ में किया जाना चाहिये।
आम जीवन में नैतिकता की भूमिका के अनेक पक्ष हैं। एक तरफ उच्च आचार के मूल्यों की अभिव्यक्ति है और दूसरी ओर कार्रवाई की सुनिश्चितता से है जिसके लिये सार्वजनिक अधिकारी को वैधानिक रूप से जवाबदेह ठहराया जा सकता है।
(अधिवक्ता, पटना उच्च न्यायालय)
No comments:
Post a Comment