मौजूदा समय में जनसंवाद बेहद जरूरी
- डा. जगदीश सिंह दीक्षित
आज समाज में अजीबोगरीब स्थिति बनती जा रही है। राजतंत्र तो अवश्य समाप्त हो गया, परन्तु उससे भी बदतर स्थिति आज होती जा रही है।लगता है सत्तासीन होते और शासक -प्रशासक की भूमिका में आने पर अधिकांश लोग-बाग स्थितप्रज्ञ होते जा रहे हैं। लोग-बाग या तो जन समस्याओं जानना या समझना ही नहीं चाहते हैं या फिर जानते हुए भी उसके समाधान के लिए कोशिश ही नहीं करना चाहते हैं। एक प्रकार से जन से दूरी बनाकर रहने में ही अपनी भलाई समझते हैं। इतिहास गवाह है जो भी शासक या प्रशासक इस बात की अनदेखी किया उसके समक्ष कई-कई चुनौतियां आकर खड़ी हो गयीं।                                            
 भलाई इसी में है कि शासक-प्रशासक  जन संवाद करता रहे। किसी भी प्रकार से वह जन की समस्याओं की जानकारी हासिल करता रहे। कुछ अपने जो व्यक्तिगत अनुभव हैं उसे आप सबसे साझा करना चाहता हूँ। जब मैं पढ़ते समय अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद का कार्य देखता था तब अनेक प्रकार की छात्र  समस्याएं मेरे समक्ष आती रहती थीं। मैं भरसक प्रयास करके संस्था के मुखिया या प्रशासनिक अधिकारियों से मिलकर उनका समाधान करा देता था। एक बार जब मैं काशीविद्यापीठ, वाराणसी में अध्ययन कर रहा था तब किसी कारण से पुस्तकालय एक सप्ताह से बंद था। छात्र-छात्राओं को अध्ययन में काफी परेशानी हो रही थी। कोई भी छात्र  संगठन उसे खुलवाने के लिए पहल नहीं कर रहा था। मैं 10-छात्रों को लेकर कुलपति जी के पास गया और उन्हें वस्तु स्थिति से अवगत कराया। समाधान निकल आया और पुस्तकालय खुल गया।        

 

               जब मैं श्री राजाश्रय दास पीजी कालेज  भुड़कुड़ा, गाजीपुर में अध्यापन कर रहा था तब उस महाविद्यालय के संस्थापक प्राचार्य डा. इन्द्रदेव थे। वे बहुत ही कर्मठ और बहुआयामी  व्यक्तित्व के थे। महाविद्यालय के विकास, पठन-पाठन  के लिए उनका पूरा जीवन समर्पित था। उनका खुफिया तंत्र इतन मजबूत था कि हम लोगों से पहले ही उन्हें सारी जानकारी मिल जाती थी। वे बहुत ही कुशल प्रशासक थे। कभी जब भी किसी से उनकी तकरार होती थी तब या तो उसी दिन सायं या दूसरे दिन  सुबह तक उसके आवास पर पहुँच जाते थे। इतने से ही सारे गिले-शिकवे दूर हो जाते थे।                  
स्व. चौधरी चरण सिंह जी एक पढे -लिखे किसान के साथ-साथ जन नेता थे। जनता-जनार्दन की समस्याओं से भलीभाँति परिचित थे। सादा जीवन और उच्च विचार वाले एक कड़क और नेक प्रशासक थे। जब वे उत्तर प्रदेश सरकार में राजस्व मंत्री बने तो बड़े पैमाने पर भ्रष्ट लेखपाल जो थे उनके ऊपर कार्रवाई किए। उन पर अक्सर यह प्रहसन के रूप में नाट्य प्रस्तुत होता था कि -वे लेखपाल -----। जब वे प्रदेश के मुख्यमंत्री बने तो उनका सीधा जन से संवाद स्थापित होता था। अक्सर वेष बदलकर ट्रक में सवार हो जाते थे। जगह-जगह पुलिस नाकों पर जब ट्रक रुकती थी तब पुलिस वाले ट्रक चालकों से जब वसूली करते थे तब अपनी पहचान उजागर कर उनके खिलाफ कार्रवाई करते थे। पूरे महकमे में हड़कंप मच जाता था। वे वहीं तक नहीं रुके। गरीब का चोला पहनकर थानों में रपट लिखवाने पहुँच जाते थे। जब मुन्शी रपट लिखने में हीलाहवाली करता या सुविधा शुल्क की माँग करता था तब वे अपनी पहचान उजागर कर कड़ी कार्रवाई  मौके पर ही करते थे।जब तक वे मुख्यमंत्री रहे वे एक साफ-सुथरी छवि कायम रखे। शासन और प्रशासन भी चुस्त-दुरुस्त रहा।                                
 एक समय ऐसा था जब कुछ कुलसचिव जी लोगों की तूती बोलती थी। इनमें से अब लोग-बाग इस दुनिया में नहीं हैं। स्व भोलेन्द्र सिंह, रामसूरत सिंह, एसबीबी सिंह, बद्रीनारायण सिंह । एक बार रामसूरत सिंह से हमारी बात हो रही थी जब वे महात्मा गाँधी काशी विद्यापीठ, वाराणसी में कुलसचिव पद पर कार्यरत थे। मैंने उनसे पूछा कि - जी सर जी आपकी धाक इतनी कैसे बनी हुई है। उन्होंने बताया - मैं खुद समय से कार्यालय आता हूँ और देर तक काम करता हूँ। तीन दिन तक कर्मचारियों को वाच करता हूँ। फिर  सेक्शन वार उपस्थित पंजिका मंगाकर उस पर जो उस समय तक नहीं आकर हस्ताक्षर किया रहता है प्रश्न चिह्न लगा देता हूं। तीन दिन तक यह करता हूँ। चौथे दिन से अनुपस्थित करता हूँ और सो काज नोटिस देना शुरू कर देता हूँ। इतना करने के बाद सबकुछ लाईन पर आ जाता है। छात्र-छात्राओं और अध्यापक-कर्मचारीगण से सीधा संवाद करता हूँ।                          
इतिहास गवाह है कि - मल्हार राव होल्कर और अहिल्याबाई होल्कर सफलतम राजा रहे। इसके पीछे का कारण है- उन लोगों की जन संवाद शैली। खुफियातंत्र की मजबूती। अहिल्याबाई होल्कर  सदैव अपना एक अलग से जनता-जनार्दन की समस्याओं की जानकारी के लिए महिलाओं-पुरुषों  की अलग-अलग टीम बना रखी थीं जो पूरी सही-गलत जो कुछ राज्य में हो रहा है उसकी जानकारी मिलती रहे। वह खुद भी वेष बदलकर जनता-जनार्दन के बीच जाती थीं।
राजा रामचंद्र जी भी वनगमन से वापस आकर अपने खुफियातंत्र के द्वारा जानकारी हासिल किए। धोबी के कथन के बाद माँ सीता जी की अग्नि परीक्षा लेने में भी एक क्षण भी देरी नहीं किए। तात्पर्य यह है कि यदि सफलतापूर्वक शासन-प्रशासन को चलाना है तो अच्छे-बुरे की तो पहचान करना ही होगा साथ ही जनता-जनार्दन से सदा समय-समय पर संवाद करना होगा।

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