चीन की चालबाजियां बड़ी चुनौती
इलमा अजीम
भारत की अध्यक्षता में नई दिल्ली में 9-10 सितंबर में जी-20 शिखर सम्मेलन की तैयारियां चरम पर हैं। जिन वैश्विक परिस्थितियों में यह सम्मेलन हो जा रहा है, दुनिया की निगाहें इस पर लगना स्वाभाविक ही है। अपनी अध्यक्षता के दौरान भारत ने ग्लोबल गवर्नेंस इंस्टीट्यूशंस और वैश्विक वित्तीय प्रणाली के लोकतंत्रीकरण का निरंतर आह्वान किया है जिसका उद्देश्य वैश्विक आबादी के 85 फीसदी हिस्से का प्रतिनिधित्व करने वाले ग्लोबल साउथ की चिंताओं और आकांक्षाओं को सशक्त तरीके से उठाना है। इसे भारत की नेतृत्वकारी भूमिका की बड़ी उपलब्धि कहा जाएगा कि उसने अफ्रीकी यूनियन के लिए जी-20 में स्थायी सदस्यता की जोरदार पैरवी की है। सबसे बड़ी चुनौती शिखर वार्ता के उपरान्त एक संयुक्त वक्तव्य या घोषणा जारी किए जाने को लेकर होगी।
दरअसल, रूस-चीन की उभरती जुगलबंदी ने जी-20 की पिछली कुछ बैठकों को प्रभावित किया है। मार्च में गोवा में जी-20 विदेश मंत्रियों, जुलाई में जी-20 वित्त मंत्रियों, और अगस्त में जी-20 स्वास्थ्य मंत्रियों सहित अनेक मंत्रिस्तरीय बैठकों में यूक्रेन की आलोचना करने वाले मुद्दे पर रूस-चीन की असहमति के कारण संयुक्त वक्तव्य या घोषणा जारी नहीं हो पाई। भारत को ‘अध्यक्ष के सारांश और परिणाम दस्तावेज’ पर ही संतोष करना पड़ा है। गौरतलब है कि पिछले साल इंडोनेशियाई अध्यक्ष को भी तनावपूर्ण क्षणों का सामना करना पड़ा था क्योंकि शिखर सम्मेलन के आखिरी क्षण तक संयुक्त घोषणा की भाषा पर बहस हुई थी। जी-20 शिखर सम्मेलन में शिरकत करने चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग आएं या उनके प्रतिनिधि चीनी पीएम ली कियांग, भारत-चीन संबंधों में तनाव की पृष्ठभूमि में इसे देखना-समझना जरूरी है। चीन ने जिस तरह शिखर सम्मेलन से पहले भारत के अरुणाचल प्रदेश और अक्साई चिन को अपने क्षेत्र में बताते हुए नया नक्शा जारी किया है वह संबंधों में तनाव बढ़ाने वाली हरकत है। चीन के साथ भारत के अनसुलझे सीमा विवाद की परछाई भारत की जी-20 अध्यक्षता के लगभग समूचे कालखंड पर रही है। हालिया ब्रिक्स सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और शी जिनपिंग की मुलाकात से यह उम्मीद जगी थी कि वास्तविक नियंत्रण रेखा पर दोनों देशों के बीच चल रहा सैन्य तनाव कम होगा। पर चीन ने इस अनौपचारिक मुलाकात को लेकर जो पक्ष रखा है उससे यह आशंका और बलवती हो गई कि भारत को नीचा दिखाने की ओछी हरकतों से चीन बाज नहीं आएगा। चीनी विदेश मंत्रालय ने दावा किया कि द. अफ्रीका में ब्रिक्स बैठक में मोदी-शी बैठक भारत के अनुरोध पर हुई थी। भारत ने भी स्पष्ट कर दिया कि चीन की तरफ से एक द्विपक्षीय बैठक का प्रस्ताव काफी समय से लंबित था। जाहिर-सी बात है कि मोदी-शी मुलाकात की पहल भारत की तरफ से नहीं थी बल्कि चीन शीर्ष स्तर पर इस तरह की एक चर्चा का इच्छुक था।
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