INDIA की बसपा की मायावती को साथ लाने की कवायद तेज
जम्मू कश्मीर के फारूख अब्दुल्ला ने की मायावती से बात
लखनऊ,एजेंसी । अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव से पूर्व शाह माह का खेल जारी है। अब विपक्षी दलों के बने INDIA की कोशिश बसपा की मायावती को अपने साथ लाने की है। इसी सिलसिले में फारूख अब्दुल्ला ने मायवती से बात की है। उनकी यह कोशिश कितना रंग लाती है। यह तो पता बाद में चल पाएगा।
बता दें सूबे यूपी की चार बार मुख्यमंत्री रह चुकीं मायावती को लोग राजनीतिक रूप से समाप्त मान रहे हैं। मगर, बहनजी बत्तख की तरह बाहर से शांत और अंदर ही अंदर लोकसभा चुनावों की तैयारियों में युद्ध स्तर पर व्यस्त हैं। कांग्रेस के यूपी प्रदेश अध्यक्ष रहे मायावती कैडर के बृजलाल खाबरी और पीएल पुनिया का अचानक से कांग्रेस में हाशिए पर जाना।फिर सोमवार को नसीमुद्दीन सिद्दीकी को यूपी कांग्रेस मीडिया चेयरमैन के पद से हटाना, तो वहीं कभी कांग्रेसी रहे सपा से बसपा में आए पश्चिम यूपी के बड़े नेता इमरान मसूद को बसपा से निष्कासित करना, ये सारे मामले दोनों पार्टियों के बीच बढ़ रही नजदीकी तो नहीं?
राजनीतिक हलकों में ये चर्चा जोरों पर है कि मायावती को इंडिया गठबंधन में शामिल कराने को लेकर कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व की बातचीत लगातार बसपा प्रमुख से चल रही है। इसके मायने दोनों पार्टियों में घट रही घटनाओं के आधार पर भी देखे जा सकते हैं, चूंकि मायावती यूपी में दलितों की सबसे बड़ी नेता हैं आज भी कोई नेता किसी पार्टी में नहीं है।
चुनाव जैसे-जैसे नजदीक आ रहा है, दलित वोटों के लालच में सभी दल मायावती को अपने पाले में लाने के लिए बेताब हैं। विपक्ष के इंडिया एलायंस के बड़े नेताओं का मानना है कि मायावती के आने से माहौल बदलेगा। बहन जी ने अपना स्टैंड क्लियर नहीं किया है, मगर बसपा के अमरोहा से लोकसभा सांसद दानिश अली का बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से कुछ दिन पहले पटना जाकर मिलना इसी रणनीति का हिस्सा हो सकता है।
गठबंधन के कई नेताओं का मानना है कि मायावती यूपी के अलावा कई अन्य राज्यों में भी दलित वोटों को अपनी तरफ खींच सकती हैं। मध्य प्रदेश, राजस्थान, पंजाब, तेलंगाना, उत्तराखंड में भी मायावती के पास दलितों का ठीक-ठीक वोट बैंक है। यही वजह है कि कांग्रेस के अलावा अन्य दलों के नेता भी चाहते हैं कि बहन जी गठबंधन का हिस्सा बनें।
सूत्रों की माने तो नेशनल कांफ्रेस के नेता फारूक अब्दुल्ला ने फोन पर मायावती से बात करके उन्हें गठबंधन में शामिल होने का न्योता दिया है। आधे घंटे की बातचीत में बसपा सुप्रीमो ने उनकी बात को ध्यान से सुना, मगर अपने पत्ते अभी तक नहीं खोले हैं।मायावती और सोनिया गांधी के बीच भी काफी मधुर संबंध हैं, ये जगजाहिर है। मायावती एक सधी हुई राजनेता की तरह संभल-संभल कर कदम रख रही हैं, क्योंकि वो जानती हैं कि पार्टी के खोए हुए जनाधार को वापस लाने का शायद ये आखिरी मौका हो।
सियासत की हर कला में माहिर मायावती बखूबी जानती हैं कि कब दो कदम आगे चलना है और कब दो कदम पीछे हटना है। दरअसल, मायावती की पैठ 10 प्रतिशत दलित (जाटव) के अलावा अति पिछड़ी जातियों में भी ठीक-ठाक है। मुस्लिम और सवर्ण वोटबैंक में भी मायावती को लेकर कोई मतभिन्नता नहीं है, क्योंकि उनकी सख्त प्रशासक की छवि से हर कोई वाकिफ है।
मायावती को ये बखूबी पता है कि गठबंधन की राजनीति कैसे करनी चाहिए। हर बार गठबंधन का सीधा फायदा मायावती को ही मिलता रहा है। मौकापरस्ती का आलम तो ये रहा है कि बहन मायावती हर बार चुनावों के बाद ठीकरा किसी और के सिर फोड़कर खुद को बहुत सफाई से किनारे करके जो भी सरकार बनाने की स्थिति में होता है उसके साथ खड़ी हो जाती हैं।कई बार तो मोलभाव करके दलित नेता होने की वजह से बड़ी पार्टियों ने उन्हें मुख्यमंत्री तक बनाया है। चार बार में तीन बार वो गठबंधन की बदौलत ही मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठी हैं।मायावती इस हकीकत से भी वाकिफ हैं कि बिना गठबंधन की बैसाखी के उनकी नैया भी पार लगना मुश्किल है।
मायावती ने प्रेस कांफ्रेंस करके ये कह तो दिया कि वो किसी भी दल से गठबंधन नहीं करेंगी, मगर 2024 का चुनाव उनके और उनकी पार्टी दोनों के लिए कितना महत्वपूर्ण है किसी से छिपा नहीं है। 2022 का विधानसभा चुनाव मायावती के लिए एक सबक जैसा ही था। यूपी में 17 अनुसूचित जाति के लिए रिजर्व सीटें हैं-नगीना, बुलंदशहर, आगरा, शाहजहांपुर, हरदोई, मिश्रिख, मोहनलालगंज, इटावा, जालौन, कौशांबी, बाराबंकी, बहराइच,बांसगांव, लालगंज, मछलीशहर, रॉबर्ट्सगंज।
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