उर्दू साहित्य के इतिहास के शुरुआत से ही दलित समस्याओं का पता चलता है : आरिफ नकवी
नवाबों, जमींदारों ने दलितों को सिर्फ काम करने के लिए इस्तेमाल किया है। : डॉ. अहमद सगीर
उर्दू विभाग में साहित्य के अंतर्गत "उर्दू में दलित साहित्य" विषय पर ऑनलाइन कार्यक्रम का आयोजन किया गया
मेरठ । जहाँ तक दलित साहित्य या कथा साहित्य का संबंध है, उर्दू साहित्य के इतिहास के प्रारंभ से ही दलित समस्याओं का पता चलता है। दलितों के पास अपने साहित्य को सामने लाने के क्या अवसर हैं? प्रगतिशील युग में उनके बारे में बहुत कुछ लिखा गया है। जिन लोगों के पास इस तरह के अवसर नहीं हैं, वे क्या करें, न केवल पिछड़े वर्ग के दलितों को भी अवसर प्रदान किए जाने चाहिए। अगर हम दलित लेखकों को सामने लाएँ तो यह उर्दू साहित्य की बहुत बड़ी उपलब्धि होगी। हमारे यहाँ संसाधनों और लेखकों की कोई कमी नहीं है।ये शब्द थे जर्मनी के जाने-माने लेखक और कवि आरिफ नकवी के जो उर्दू विभाग और आयुसा के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित साप्ताहिक कार्यक्रम 'अदब नुमा' में "उर्दू में दलित साहित्य" विषय पर अपने अध्यक्षीय भाषण में बोल रहे थे ।
कार्यक्रम की शुरुआत एमए द्वितीय वर्ष की छात्रा उजमा परवीन ने कुरान शरीफ की तिलावत करते हुए की। हादिया नात की प्रस्तुति एमए प्रथम वर्ष की छात्रा फरहत अख्तर ने की। कार्यक्रम का आयोजन उर्दू विभाग के अध्यक्ष प्रोफेसर असलम जमशेदपुरी ने किया। संचालन डॉ. इरशाद अली ने और मेहमानों का स्वागत डॉ. अलका वशिष्ठ ने किया। सुप्रसिद्ध आलोचक एवं कथाकार डॉ. अहमद सगीर (गया, बिहार), डॉ. अख्तर आजाद (जमशेदपुर), गालिब निश्तर तथा डॉ. युसूफ तौसीफ ने वक्ताओं के रूप में भाग लिया।
उन्होंने कहा है कि मुंशी प्रेमचंद, मंटो, कृष्णचंद्र, शौकत हयात, सलाम बिन रज्जाक और असलम जमशेद पुरी आदि ने दलित अफसाने लिखे हैं। दलित कथा अच्छी तरह लिखी जानी चाहिए। ऐसे ही कथेतर साहित्यकारों ने दलितों के दमन और अन्य समस्याओं को बड़े ही सुन्दर ढंग से प्रस्तुत किया है।
इन सभी गैर-काल्पनिक लेखकों ने अपने उपन्यासों के माध्यम से समाज में व्याप्त ऐसी तमाम समस्याओं पर प्रकाश डाला है। आज हमारे बीच कई किताबें हैं जो दलित मुद्दों पर लिखी गई हैं।
उर्दू विभाग के अध्यक्ष और जाने-माने कथाकार व आलोचक प्रो. असलम जमशेदपुरी ने कहा कि दलित कथा साहित्य आदि काल से लिखा जाता रहा है। आज समाज में व्याप्त दलित समस्याओं को हमारे गैर-कथा लेखकों ने बड़े तकनीकी कौशल के साथ लिखा है। हमें निराश होने की जरूरत नहीं है। हमारे गैर-फिक्शन लेखक दलित फिक्शन पर काम कर रहे हैं।
डा. अहमद सगीर ने कहा कि दलित जाति नहीं बल्कि गरीबी का पर्याय है। ये वर्ग राजनीति का शिकार है.उन्हें शादी के मौके पर नहीं, सफाई के लिए बुलाया जाता है. नवाबों, जमींदारों ने दलितों को सिर्फ काम करने के लिए इस्तेमाल किया है। यह सच है कि दलितों ने हजारों वर्षों तक अत्याचार सहा है जिसे उर्दू साहित्य में प्रस्तुत किया गया है। दलित साहित्य अब एक आन्दोलन बन गया है, मुस्लिम पिछड़े वर्गों को सामने रखकर अनेक कथाएँ लिखी गई हैं। लगभग ढाई सौ ऐसे उपन्यास हैं जो दलित मुद्दों से संबंधित हैं।
कार्यक्रम से डॉ. आसिफ अली, डॉ. शादाब अलीम, मोहम्मद शमशाद, फैजान जफर, सैयदा मरियम इलाही व सईद अहमद सहारनपुरी जुड़े रहे।
No comments:
Post a Comment