रगों में दौड़ती ड्रग्स
जहां मां-बाप एक-एक पैसा जोड़ कर अपने बच्चों के भविष्य के सपने देखते हैं, वहीं नशे में डूबे हुए ये बच्चे नशे की एक-एक बूंद से, ड्रग्ज की एक-एक सांस से, खैनी या जर्दे की एक-एक चुटकी से उन सपनों को ध्वस्त करने में लगे हैं। युवाओं को इस गर्त से बचाने के लिए बड़े-बुज़ुर्गों, माता-पिता व अध्यापकों को प्रयत्नशील रहना होगा। घर में अपने बच्चों को समय देकर बढिय़ा माहौल बनाना चाहिए। ड्रग्स के सेवन व इससे जुड़े आपराधिक मामले भयावह हैं। ये समझने के लिए अब आंकडों की भी जरूरत नहीं क्योंकि जो कुछ रोजाना हो रहा है, उससे यह बात आसानी से समझी जा सकती है कि स्थिति कितनी खतरनाक है। जिन चिरागों से घर को रौशनी की उम्मीद होती है, ऐसे कई चिराग ड्रग्स की झोंक में गुल हो चुके हैं, कई गुल होने की राह पर हैं और न जाने कितने गुल होकर रहेंगे। आज हम नशे के उस स्याह दौर में पहुंच गए हैं, जहां मां-बाप को अपने बच्चों के पठन-पाठन से पहले इस बात की चिंता खाए जा रही है कि कहीं उनके बच्चे नशे का ग्रास तो नहीं बन रहे। हमारे आधुनिक, सभ्य व उन्मुक्त होते समाज की एक काली सच्चाई यह भी है कि यद्यपि नशामुक्ति अभियान के तहत हर गांव, हर शहर, हर गली, हर कूचे, हर सडक़, हर स्कूल, हर कॉलेज में नारे बुलंद किए जा रहे हैं, तथापि हमारा समाज नशायुक्त होता जा रहा है। अर्थात ज्यों ज्यों मर्ज की दवा कर रहे हैं, त्यों त्यों मर्ज बढ़ता ही जा रहा है। युवा वर्ग ही नहीं, बल्कि अब छोटे बच्चे भी इसकी जद में हैं। ड्रग्स का जहर स्कूलों में पढ़ रहे मासूमों की रगों व सांसों तक पहुंच रहा है। नशे की जब लत पड़ जाती है, तब अक्ल का ठौर ठिकाना नहीं रहता। मदिरा, खैनी, गुटका तो आज आम बात हो गए है, परंतु अब चरस और चिट्टा प्रलय नृत्य कर रहे हैं। चिट्टे के लिए नशेड़ी अपने ही घर से चोरी कर लेते हैं और पिता को मजबूरन थाने में शिकायत करनी पड़ती है। जब नशे से आत्महत्या, हत्या, चोरी व अन्य आपराधिक वारदातें आम होने लगे तो समझो समाज, प्रांत व राष्ट्र खतरे में हैं। पुलिस विभाग नशा विरोधी अभियान चलाता रहता है, परन्तु नशे के अजगर से पार पाने के लिए जन सहयोग की आवश्यकता है। वक्त रहते जाग जाइए, मालूम नहीं कब नशा आपके घरों के चिराग को गुल कर आपके जीवन में अंधेरा कर जाए। अब सजग हो जाने का वक्त आ चुका है।

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