भारत को रोहिंग्या समस्या से भी निपटना होगा
- संजीव ठाकुर
रोहिंग्या मूलतः म्यांमार पूर्व का बर्मा के रखाइन प्रांत के मूल निवासी अल्पसंख्यक समुदाय से संबंध रखते हैं। रखाइन राज्य बांग्लादेश और भारत के पूर्वोत्तर राज्य की सीमाओं से लगा हुआ है। म्यानमार सौ से ज्यादा बहु सांस्कृतिक समाज से बना हुआ है । बौद्ध समुदाय यहां बहुसंख्यक है और अल्पसंख्यक रोहिंग्या समाज को यह लोग वहां का नागरिक नहीं मानते हैं।
म्यानमार सरकार रोहिंग्या समुदाय को राज्य का नहीं मानती आई है। वहां पर इन्हें नागरिकता भी प्रदान नहीं की गई है, इतिहासकारों के अनुसार आठवीं शताब्दी में क्षेत्र में आने वाले अरबी मुसलमानों को रोहिंग्या का नाम दिया गया जो बाद में वहां के प्रभाव के कारण रोहिंग्या बन गया। इनका मूल क्षेत्र अफगानिस्तान ही है, कालांतर में वर्मा नागरिकता कानून 1982 के द्वारा रोहिंग्या मुस्लिम समुदाय को वहां की नागरिकता से वंचित कर दिया गया था। वहां इनको एक पहचान पत्र दिया गया था, जो सभी कामों में इस्तेमाल किया जाता है।
रोहिंग्या और म्यांमार के बहुसंख्यक बौद्ध निवासियों के बीच बार बार हिंसक झड़प होती रहती है, इसमें रोहिंग्या मुसलमानों की बड़ी संख्या में मृत्यु भी हुई। 2017 मैं रोहिंग्या और बुद्धिस्ट लोगों के बीच बड़ी हिंसक झड़प के कारण यह एक बड़ी समस्या बन गए अपने जीवन यापन के लिए यह लो म्यांमार से पलायन करने लगे और अपनी जीवन की बेहतरी के लिए बांग्लादेश,मलेशिया ,थाईलैंड इंडोनेशिया और भारत में पलायन किया। इनके पलायन के बाद सभी देशों में अलग-अलग समस्याएं जन्म लेने लगी,बांग्लादेश में लगभग 9 लाख यह समुदाय वर्तमान में रह रहा है ।भारत में ऑपरेशन इंसानियत के नाम पर इन लोगों के लिए राशन चीनी दवाएं कपड़े आदि की सहायता बांग्लादेश सरकार को की थी।
बाद में बांग्लादेश सरकार ने रोहिना समस्या के कारण अपने दरवाजे इनके लिए बंद कर दिये, और पिछले दरवाजे से यह रोहिंग्या लगभग 40,000 की संख्या में भारत पलायन करके अवैध रूप से भारत के आसाम प्रांत में रहने लगे हैं। अब ये लगभग देश के अनेक राज्यों में फैलकर निवासरत हैं।इसके अतिरिक्त 14 हजार यह नागरिक संयुक्त राष्ट्र उच्चायुक्त की सहायता से भारत में वैध रूप से रह रहे हैं,पर भारत सरकार ने इन्हें मान्यता न देकर इन्हें निकालने के प्रति अब अपना अभियान चलाना शुरू कर दिया है। भारत सरकार इनको अपनी आंतरिक सुरक्षा का खतरा मानकर सर्वोच्च न्यायालय में अपनी याचिका दायर भी की है। सरकार का कहना है यह रोहिंग्या पाकिस्तान की आई,एस,आई और कुछ आतंकवादी संगठनों लश्कर-ए-तैयबा से मिलकर भारत सरकार की गुप्त सूचनाएं इनको प्रदान कर भारत की आंतरिक शांति के लिए खतरा बन गए हैं।
इसके अलावा भारत सरकार इसके लिए भी चिंतित है की रोहिंग्या और भारत में रह रहे बहुत के विरुद्ध हिंसा की घटनाएं एक बड़ी चिंगारी का रूप ले सकती हैं ।रोहिंग्या पूर्वोत्तर राज्यों में आतंकवादी घटनाओं के सहायक बन आतंकवाद को फैलाने में धीरे धीरे सक्षम होते जा रहे हैं ।
तथा रोहिंग्या आतंकवादियों के विरुद्ध हवाला के माध्यम से पैसा लेकर आतंकवादी घटनाओं को अंजाम देने के प्रमाण भी मिले हैं। ईसी तरह रोहिंग्या थाईलैंड, मलेशिया, सऊदी अरब,बांग्लादेश मैं स्थाई रूप से बस कर वहां विभिन्न समस्याओं को जन्म दे रहे हैं। भारत के परंपरागत दुश्मन पाकिस्तान में लगभग 40, हजार से 2 लाख रोहिंग्या मुसलमान निवासरत है। जिन्हें आतंकवादी गतिविधियों में इस्तेमाल किया जाता रहा है,इनको म्यानमार से भारत तथा बांग्लादेश में जाने से रोकने के लिए अंतरराष्ट्रीय प्रयास भी किए गए,एवं कई समझौते भी किए गए। म्यानमार सरकार को विभिन्न देशों में गए रोहिंग्या शरणार्थियों को वापस बुलाने की समझाइश दी गई।
रोहिंग्या समुदाय ने एक रोहिंग्या मुक्ति सेना भी गठित कर ली है, पर भारत इस सेना को आतंकवादी संगठन मानकर मान्यता नहीं प्रदान करता है। म्यानमार की सरकार तथा वहां के आर्थिक समाजिक संकट के कारण रोहिंग्या समुदाय भेदभाव का शिकार भी हुआ है। रोहिंग्या समुदाय दक्षिण एशियाई देशों के लिए एक बड़ी समस्या बन कर रह गया है।
म्यानमार सरकार को इस समस्या पर ध्यान देकर इसका समाधान कर अपने देश के नागरिक मानकर इन्हें अपने देश वापस बुलाकर इनकी समस्या का समाधान करना चाहिएl
(चिंतक, स्तंभकार, रायपुर छत्तीसगढ़)
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