आतंकवाद के फन को कुचलना जरूरी
- योगेश कुमार गोयल
जम्मू कश्मीर दशकों से आतंक के खौफनाक साये में जी रहा है, देश के अन्य हिस्सों में भी कभी किसी भरे बाजार में तो कभी किसी वाहन में आतंकी निर्दोषों के लहू से होली खेलकर आनंदित होते रहे हैं। पिछले कई वर्षों से हम आतंकवाद का यह खामियाजा भुगत रहा है, जिसके कारण अभी तक हजारों लोग बेमौत मारे जा चुके हैं, अनेक परिवार तबाह हो चुके हैं, बच्चे अनाथ हुए हैं, बहुत सी माएं-बहनें विधवा हो गई तो कहीं बुजुर्गों के बुढ़ापे की लाठी इसी आतंकवाद ने छीन ली।
दरअसल आतंकवादी आम लोगों के मन में भय पैदा करना चाहते हैं और इसके लिए किसी भी तरह का खूनखराबा करने से उन्हें कोई गुरेज नहीं होता। ऐसी वहशी घटनाओं को अंजाम देने वालों को इससे कोई सरोकार नहीं होता कि उनके ऐसे कृत्यों से कितने हंसते-खेलते परिवार एक ही झटके में बर्बाद हो जाते हैं।
राष्ट्रीय आतंकवाद विरोधी दिवस की आधिकारिक घोषणा 21 मई 1991 को भारत के सातवें प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या के बाद की गई थी, जो लिट्टे के एक आतंकवादी अभियान के दौरान तमिलनाडु के श्रीपेरंबदूर में मारे गए थे। इस दिवस को मनाने का अहम उद्देश्य यही है कि देश में आतंकवाद, हिंसा के खतरे और उनके समाज, लोगों तथा देश पर पड़ने वाले खतरनाक असर के बारे में लोगों में जागरूकता बढ़ाई जाए।


हालांकि पिछले कुछ वर्षों से देश में आतंकवादियों की कमर तोड़ने के लिए जिस तरह के सख्त कदम उठाए जा रहे हैं, उनके चलते देशभर में आतंकी घटनाओं में कमी दर्ज की जा रही है लेकिन विशेषकर जम्मू कश्मीर में अभी भी पाकिस्तान के पाले-पोसे भाड़े के टट्टू मासूम लोगों के खून से होली खेलने को लालायित रहते हैं किन्तु हमारे जांबाज सुरक्षा बल लगभग आए दिन, शोपियां हो या कुपवाड़ा या घाटी का अन्य कोई क्षेत्र, कहीं न कहीं मुठभेड़ों में दुर्दान्त आतंकियों को ढ़ेर कर रहे हैं।
पिछले कुछ वर्षों में ही सुरक्षा बलों द्वारा सैंकड़ों कुख्यात आतंकियों को कुत्ते की मौत मारा जा चुका है। आतंकियों के खिलाफ चल रहे सुरक्षा बलों के अभियान के चलते इस वर्ष अब तक दर्जनों आतंकियों को मार गिराया गया है, जिनमें कुछ विदेशी आतंकी भी शामिल थे। विभिन्न रिपोर्टों के मुताबिक जम्मू कश्मीर से धारा 370 हटाए जाने के बाद से घाटी में सुरक्षा बलों के एनकाउंटर में सर्वाधिक आतंकवादी मारे गए हैं। हालांकि शोपियां, कुलगाम, पुलवामा जैसे क्षेत्रों में आतंकी समूहों द्वारा स्थानीय युवकों की भर्ती के मामले भी सामने आते रहे हैं लेकिन सबसे ज्यादा मुठभेड़ें भी यहीं हुई।
जम्मू कश्मीर में युवाओं के आतंकी संगठनों में भर्ती का मुद्दा सुरक्षा बलों के लिए गंभीर चिंता का विषय बना रहा है लेकिन राहत की बात यह है कि युवाओं को आतंकवाद के खिलाफ जागरूक करने के चलते आतंकी संगठनों में स्थानीय स्तर पर अब भर्तियां काफी कम हो रही हैं। सीआरपीएफ के सूत्रों के अनुसार वर्ष 2018 में जहां आतंकी संगठनों में 187 स्थानीय लोग भर्ती हुए, वहीं 2019 में 121, 2020 में 181 तथा 2021 में 142 स्थानीय लोग इनमें भर्ती हुए लेकिन 2022 में केवल 100 स्थानीय लोगों ने ही इन संगठनों का दामन थामा और उनमें से भी अधिकांश को सुरक्षा बलों द्वारा मार गिराया गया या गिरफ्तार कर लिया गया। सीआरपीएफ के अनुसार जम्मू कश्मीर में इस समय कम से कम 150 से ज्यादा आतंकी सक्रिय हैं लेकिन सुरक्षा बलों की मुस्तैदी के कारण पिछले कुछ समय में एलओसी के पास एनकाउंटर में कई आतंकियों का सफाया किया गया तथा घुसपैठ की दर्जनभर कोशिशें भी नाकाम की गईं।
वर्ष 2021 में सुरक्षाबलों ने 180 आतंकवादियों को मार गिराया था, जिनमें से 18 विदेशी अतंकी थे। सैन्य अधिकारियों के मुताबिक दुश्मन की ओर से संघर्ष विराम के उल्लंघन, घुसपैठ की कोशिश या किसी अन्य दुस्साहसिक प्रयास का कड़ाई से जवाब दिया जा रहा है और 2021 में तो आतंकवादी संगठनों के लिए काम करने वाले 495 ओवर ग्राउंड वर्कर पकड़े गए थे। वैसे सैन्य अधिकारियों का स्पष्ट तौर पर कहना है कि आतंकवाद रोधी सख्त अभियान तब तक पूरी ताकत से चलेगा, जब तक कि घाटी में सक्रिय तमाम आतंकवादी आत्मसमर्पण नहीं कर देते या मार नहीं दिए जाते।
अधिकारियों के मुताबिक शांति के फायदे लोगों तक पहुंचने से वे अब शांति बनाए रखने के लिए प्रेरित हो रहे हैं। बहरहाल, देश के कोने-कोने में लोगों को इस दिशा में जागरूक करना ही समय की सबसे बड़ी मांग है कि आतंकवादी संगठनों के दुष्कृत्यों से लोगों के जान-माल तथा समाज का कितना बड़ा नुकसान होता है और अब आतंकवाद के फन को कुचलने के लिए कठोर से कठोर कदम उठाने ही होंगे।

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