मोटे अनाजः जागरूकता से ही बढ़ेगा उत्पादन

- कल्याण सिंह
आज संपूर्ण विश्व में मोटे अनाजों की उपयोगिता एक बार फिर बखूबी  समझ आने लगी है। यही कारण है कि आज एक बार फिर से संपूर्ण विश्व में चर्चा के केंद्र बिंदु गये है। 3 मार्च सन  2021 में भारत सरकार के तरफ से  संयुक्त राष्ट्र संघ मे मोटे अनाजों का अंतरराष्ट्रीय वर्ष मनाने का एक प्रस्ताव लाया गया था जिस पर उसे विश्व के 72  देशों का समर्थन प्राप्त हुआ था। जिसके फलस्वरूप वर्ष 2023 को अंतरराष्ट्रीय मोटे अनाजों का वर्ष मनाने की  घोषणा किया गया। यद्यपि भारत देश मोटे अनाजों यथा साँवा, कोदो, मंडुआ, कुटकी, आदि प्रमुख मोटे अनाजों की जन्म स्थली रहा है जिसके पुख्ता प्रमाण 3000 ईसा पूर्व सिंधु घाटी सभ्यता के समय भी इसकी खेती के मिलते हैं।  
स्वतंत्रता प्राप्ति पश्चात साँवा तथा मंडुआ आमजन का एक प्रमुख खाद्य पदार्थ था। मोटे अनाज गरीबों की थाली के आवश्यक प्रमुख भोज्य पदार्थ थे। कालांतर में हरित क्रांति की सफलता के बाद तथा समाज के धनाढ्य वर्ग के द्वारा इसकी उपयोगिता को ओझल समझा जाने लगा, जिससे इसका स्थान धान- गेहूँ जैसी फसलों के द्वारा मोटे अनाजों के स्थान पर  अपना आधिपत्य जमा  लिया। प्राचीन काल मे भारत देश की अपने कुल खाद्यान्न उत्पादन मे मोटे अनाजों की हिस्सेदारी एक समय 40 प्रतिशत थी, परंतु आज घटकर 15- 20 प्रतिशत के आस-पास हो गया है। मोटे अनाजों के उत्पादन को एक वैश्विक दृष्टिकोण से देखा जाये तो भारत देश की हिस्सेदारी 20 प्रतिशत है, वहीं एशिया के देशों मे भारत की मोटे अनाजों मे हिस्सेदारी 80 प्रतिशत के आस- पास है।




दुनिया में 131 देशों मे मोटे अनाजों की खेती सफलता पूर्वक होती है, जिसमे अफ्रिका, एशिया, भारत, अमेरिका, यूरोप, इत्यादि देश प्रमुख है। करीब 59 करोड़  लोगो का पारंपरिक भोजन  मोटे अनाज के रूप मे अफ्रिका तथा एशिया के देशों में लोगों के द्वारा इन अनाजों का सेवन किया जा रहा है, जबकि आज पूरी दुनिया मे मात्र 10 प्रतिशत लोग ही मोटे अनाजों का सेवन कर रहे है। अगर प्रति व्यक्ति मोटे अनाजों की खपत देखा जाये तो मोटे अनाजों की खपत  वर्तमान मे 4.2 किलोग्राम प्रति व्यक्ति प्रति सालाना है, वही 1962 के दशक मे 32.9 किलोग्राम प्रति व्यक्ति प्रति सालाना थी।
वर्तमान दौर में इसकी प्रासंगिकता इस लिए संपूर्ण विश्व के लिए अति महत्वपूर्ण साबित होने जा रही है, क्योंकि एक तरफ जलवायु परिवर्तन के कारण अनियमित तथा प्रतिकूल मौसम संबंधी गतिविधियां, सूखाग्रस्त, तथा मनुष्य की स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से जूझने का कारण ही है कि आज फिर से लोगों को अपनी भोजन की थाली मे इसकी उपयोगिता आज फिर से समझ आने लगी है।
पोषण गुणवता की दृष्टिकोण से मोटे अनाज प्रोटीन 7-12 प्रतिशत, वसा 2-5 प्रतिशत, कार्बोहाइड्रेट 65-75 प्रतिशत, तथा फाइबर की मात्रा 15-20 प्रतिशत के अलावा सुक्ष्म पोषक जैसे आयरन, कैल्शियम, फॉस्फोरस, आयोडीन प्रचुर मात्रा मे पाये जाते है। मोटे अनाजों की खेती आसानी से प्रतिकूल जलवायु परिस्थितियों के अलावा असिंचित, कम सिंचाई प्रणाली मे भी आसानी से कम लागत पर सफलता पूर्वक किया जा सकता है।
मोटे अनाजों को अपने भोजन का आवश्यक अंग बनाने के फलस्वरूप रक्तचाप, कोलेस्ट्रॉल, संचित वसा जैसी हानिकारक प्रभाव से यह हमारे अंदर प्रतिरोधकता विकसित करता है। एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर होने के कारण उनके हानिकारक प्रभाव को निष्क्रिय करता है। फाइबर की अधिक मात्रा होने के कारण यह पाचन तंत्र मे तनाव पैदा करता है, जिससे इसकी संपूर्ण प्रणाली को बलपूर्वक कार्य करने के योग्य बनाता है। अनेकों विशेषताओं के होते हुए आज जरूरी है इसके प्रति लोगों को इसकी उपयोगिता के प्रति जागरूक करने की तभी इसके अंगीकार को अमूर्त रूप दिया जा सकता है।
जागरूकता बढ़ने के बाद ही आमजन के द्वारा इसकी बाजार मे मांग बढ़ने के कारण ही किसान इसकी तरफ उत्पादन करने के लिए आकर्षित होगा। भारत सरकार सहित राज्य सरकारों को भी इसके प्रति जन अभियान चलाने की अत्यंत जरूरी है जिससे आमजन के साथ- साथ किसानों के मन मे मोटे अनाजों की खेती करने के प्रति आत्मविश्वास पैदा हो सके। इसके अतिरिक्त मोटे अनाजों की उत्पादन क्षमता प्राय: धान- गेहूँ के मुकाबले डेढ़- दो गुना कम प्राप्त होता है,अत: बाजार तथा न्यूनतम समर्थन मूल्य पर इनकी खरीदारी प्रचलित फसलों की दामों की अपेक्षा दोगुना मूल्यों पर करने के पश्चात ही किसान इसकी खेती के तरफ आकर्षित होंगे।
मोटे अनाजों पर कृषि अनुसंधान संस्थान, कृषि विश्वविद्यालय, मे नये गुणवत्ता युक्त शोधों को बढ़ावा निश्चित ही इस अभियान को एक दिशा तथा नया आयाम स्थापित करेगा। सरकार के द्वारा मोटे अनाजों की खेती के प्रति किसानों को प्रोत्साहित करने के लिए उन्हे बीज, खाद तथा खेती पर सब्सिडी भी किसानों के लिए एक अच्छी सुलभ सहायता हो सकती है। मोटे अनाजों का न्यूनतम समर्थन मूल्य देखा जाये तो, मोटे अनाजों मे सबसे ज्यादा उत्पादित होने वाली फसल ज्वार का मूल्य 2,970 रुपये प्रति क्विंटल, दूसरे स्थान पर ज्यादा उत्पादित फसल बाज़रे का मूल्य 2,350 रुपये प्रति क्विंटल जबकि अति महत्वपूर्ण मोटे अनाज की फसल रागी का समर्थन मूल्य सबसे अधिक 3,578 रुपये प्रति क्विंटल घोषित है।
भारत सरकार ने वर्ष 2022-23 मे 13.67 लाख टन मोटे अनाजों के खरीदने का लक्ष्य निर्धारित किया है। देश के केंद्रीय भंडारण की स्थिति को देखा जाये तो मात्र 2.64 लाख टन मोटा अनाज बफर स्टॉक के रूप मे सुरक्षित है। अत: इस दौर में पूरी दुनिया एक बार इसकी ओर लौटती हुई दिखाई दे रही है।    
(शोध छात्र बाँदा कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, बांदा)

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