आत्मा और परमात्मा के मिलन की प्रतीक ध्रुव की संकल्प यात्रा


मेरठ।गंगा नगर स्थित सरस्वती शिशु विद्या मंदिर ग्राउंड में दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान द्वारा 13 से 19 मार्च तक सायं 03 बजे से 7 बजे तक श्रीमदभागवत कथा ज्ञानयज्ञ का भव्य आयोजन किया जा रहा है। कथा के द्वितीय दिवस विश्व विख्यात भागवताचार्या कथाव्यास साध्वी सुश्री पद्महस्ता भारती जी ने भक्त ध्रुव और माँ गंगा की कथा का रसपान करा, सभी को आनंदित किया।

साध्वी  ने बताया कि भक्त ध्रुव की संकल्प यात्रा प्रतीक है आत्मा और परमात्मा के मिलन की। यह यात्रा तब तक पूर्ण नहीं होती, जब तक मध्य सदगुरु रूपी सेतु न हो। यही सृष्टि का अटल और शाश्वत नियम है। ध्रुव ने यदि प्रभु की गोद को प्राप्त किया तो देवर्षि नारद जी के द्वारा। अर्जुन ने यदि प्रभु के विराट स्वरूप का साक्षात्कार किया तो जगद्गुरु भगवान श्री कृष्ण की महती कृपा से । राजा जनक जीवन की सत्यता को समझ पाए लेकिन गुरु अष्टावक्र जी के माध्यम से। मुण्डकोपनिषद् भी कहता है-

तद्विज्ञानार्थं स गुरुमेवाभिगच्छेत्। 
समित्पाणिः श्रोत्रियं ब्रह्मनिष्ठम् ॥

अर्थात् उस परब्रह्म ज्ञान को प्राप्त करने के लिए, हाथ में जिज्ञासा रूपी समिधा लेकर वेद को भली-भाँति जानने वाले परब्रह्म परमात्मा में स्थित गुरु के पास ही विनयपूर्वक जाएं। आपको ईश्वर के दर्शन अवश्य करवाए जाएंगे। दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान सभी को ईश्वर दर्शन के लिए आमंत्रित करता है। भगवान श्रीकृष्ण श्रीमद्गवद्गीता में कहते हैं -

अनन्याश्चिन्तयन्तो मां ये जनाः पर्युपासते। 
तेषां नित्याभियुक्तानां योगक्षेमं वहाम्यहम् ॥

अर्थात् जो भक्त ईश्वर को अनन्य भाव से भजते हैं, उनके योगक्षेम स्वयं भगवान वहन करते हैं, परंतु ईश्वर का चिन्तन तभी होगा जब हमारे अन्दर उनके प्रति भाव होंगे। 

आज कितने ही लोग ईश्वर को पुकार रहे हैं किंतु वह प्रकट क्यों नहीं होता? द्रौपदी की ही लाज क्यों बचाई, प्रहलाद की ही रक्षा क्यों हुई, संत मीरा या कबीर जी की तरह वह हमारी भी रक्षा क्यों नहीं करता ? इसका कारण यह है कि हमने ईश्वर को देखा नहीं, जाना नहीं, उनकी शरणागति प्राप्त नहीं की। इसलिए हमारा प्रेम ईश्वर से नहीं हो पाया, भले ही हमने भक्ति के नाम पर बहुत कुछ किया। भक्त ध्रुव ने नारद जी की कृपा से परमात्मा को अंतर्घट में जाना था, जिससे उनका ईश्वर पर दृढ़ विश्वास था। इसलिए इतने कष्टों के आने पर भी वे नहीं घबराए और उनके विश्वास और प्रेम की लाज रखने के लिए ही श्रीहरि को स्वयं उन्हें दर्शन देने के लिए वन में भी प्रकट होना पड़ा। इसलिए यदि हम चाहते हैं कि जिस प्रकार प्रभु ने भक्त ध्रुव को दर्शन दे कृतार्थ किया, उसी प्रकार हमें भी दर्शन दे, तो हमें भी नारद जी के समान तत्वदर्शी ज्ञानी महापुरुष की शरण में जाकर उनकी कृपा से ईश्वर के तत्व स्वरूप का दर्शन कर उनके मार्ग-दर्शन में चलना होगा। तभी हम भी उन भक्तों के समान प्रभु के प्रिय बन जाएंगे और वे हमारी भी रक्षा करेंगे।

मंच पर आसीन दिव्य गुरु श्री आशुतोष महाराज  के प्रचारक शिष्य - शिष्याओं द्वारा मधुर व भक्तिमय भजन सुन, सभी श्रद्धालु झूम उठे।

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