भारतीय संस्कृति के प्रतिमान हैं श्रीराम

डॉ. पंकज कुमार
(ज़िला सूचना अधिकारी भदोही)

लोक जीवन का राग श्रीराम से युक्त है। श्रीराम का आचरण व संस्कार सनातन से लोगों का जीवन प्रकाशित करता रहा है। राम नाम के रस में ही भारत की सभी विधाएं संपृक्त है। भारतीय लोककाव्य व लोक आचरण राम कथा से प्रवाहित है। राम कथा की दृष्टि में मानव जीवन के समग्र विकास का संदेश निहित है।
राम के जीवन की कथा में भारत की भौगोलिक एकता ध्वनित होती है तथा इस देश की सभी प्रमुख भाषाओं में राम के जीवन को रचा बसा गया,जिनके प्रचार-प्रसार के कारण भारतीय संस्कृति की एकरूपता बढ़ी है। राम के जीवन की यह कथा इतनी प्रेरक रही कि समूचा देश एक ही आदर्श की ओर उन्मुख रहा और भारत सहित सुवर्णदेश, सिंहल, तिब्बत, वर्मा और कश्मीर आदि क्षेत्रों में प्रचलित राम काव्यों को यदि समाहित कर दे, तो यह दर्शित होता है कि राम कथा एशियाई संस्कृति का महत्वपूर्ण अंग है।


भारतीय संस्कृति में राम उन मूल्यों के प्रतिमान है जिन आदर्शो ने भारत के लोकमानस की आचरण व मानसिकता को रचा बसा है। वे मर्यादा पुरूषोत्तम राम कहे जाते है अर्थात मनुष्य के गुणो की मर्यादा का अपने कृतित्व में अनुपालन करने वाले सर्वश्रेष्ठ व्यक्तित्व है। राम के चरित्र में-एक पुत्र, भाई, पिता, पति, शिष्य, अयोध्या नरेश आदि भूमिकाओं में उन्होंने सर्वश्रेष्ठ पदीय आदर्शो का पालन किया है। राम और सीता का प्रेम अद्वितीय है। यही समपर्ण से भरपूर प्रेम हमारी संस्कृति का एक ऐसा मूल्य है जो आज भी पति और पत्नी को एकात्म रखता है। राम के जीवन दर्शन का सबसे बड़ी विशेषता उनका लोकोन्मुख होना है। राम के सम्पूर्ण जीवन दर्शन यात्रा का उद्देश्य लोक मंगल के लिए एक आदर्श प्रतिमान खड़ा करना है।
वाल्मीकि रचित रामायण,राम कथा का सर्वाधिक प्राचीन ग्रन्थ है। इसी आदि ग्रन्थ पर तुलसीदास की रामचरितमानस आधारित है। दक्षिण पूर्व एशिया विशेषकर अंगकोरवाट के मन्दिर सहित रामायण के प्रसंगो का अंकन व उत्कीर्णन है। दक्षिण भारत के मन्दिरों की संरणि हो या उत्तर भारत के विशाल क्षेत्र में फैले हुए मन्दिरों में राम कथा के विभिन्न प्रसंगो का अंकन दृग्दर्शित होता है। प्राचीन भारतीय मृण्मूर्ति कला में भी रामायण के प्रसंगो को समाहित किया गया है। गुप्त कालीन कानपुर के भीतर गॉव के ईट मन्दिर में भी टेराकोटा की राम व लक्ष्मण की वनवासी रूप मुद्रा को दर्शाया गया है। दोनो के हाथों में धनुष बाण लिए हुए है। गुप्त कालीन वास्तुकला का सर्वोत्कृष्ट रचना ललितपुर देवगढ़ के दशावतार मन्दिर एवं चालुक्यों के पट्टदकल, हम्पी, एलोरा के कैलाश मन्दिर पर भी राम कथा का प्रसंग जीवंत है।
राम और उनकी जीवन यात्रा के विविध रूपों का अंकन पाषाण धातु, हाथीदॉत एवं अनेक शिल्प कलाओं में निहित है। भारतीय चित्र कला में भी रामायण के विविध रूपक को संजोया गया है। पहाड़ों में कॉगड़ा, बसोहली, चम्बा, मण्डी, नूरपुर और बिलासपुर पहाड़ी शैलियों के प्रमुख केन्द्रों में रामायण प्रसंग के चित्रों का अंकन है।
वैदिक वांगमयो, रामायण, महाभारत, बौद्ध व जैन, लौकिक व अलौकिक साहित्यों में भी राम कथा का मिलता है। वैदेशिक साहित्यों में खोतान, काशगर, मध्यएशिया, चीन सहित दक्षिण पूर्व एशिया में राम कथा के विभिन्न रूपको का अंकन मिलता है। भारत के आंचलिक सभी लोक भाषाओं-भोजपुरी, बघेली, तमिल, तेलगु, छत्तीसगढ़ी, असमिया, उड़िया, बंगला, मराठी, गुजराती, राजस्थानी, देववाणी सहित लगभग 22 भाषाओं के साहित्य में राम कथा का अंकन है।
आदिवासी जनजीवन व साहित्य में राम कथा का आदर्श वर्णन है। जनजाति जीवन आचरण में राम के वनवासी जीवन की सदृष्यता है। राम कथा का लोक विस्तार सार्वभौमिक व सनातन है। राष्ट्र की एकता हेतु भी राम का आदर्श दर्पण है। छत्तीसगढ़ के वास्तु कला में माता कौशल्या का मन्दिर विशिष्ट है। रामलीला के मंचन में कलाकारों व दर्शको का ऐसा सम्मोहन होता है जैसे प्रतीत होता है, कि रामराज्य है।  
राम समग्रता के परिचायक है वे लोक कल्याण के लिए समर्पित व प्रतिबद्ध है। तुलसी के राम युगो-युगो से आदर्श रहे और लोक जीवन में इतने घुले मिले है कि राम के बिना हम अपने अस्तित्व व आधार की कल्पना भी नही कर सकते। भारत का राग-रस-अनुराग,गीत संगीत सब राममय है। भारतीय जनमानस के विविध क्षेत्रों समाजिक,सांस्कृतिक, कला व साहित्य में अंकित राम कथा सदियों से सभी को प्रेरित व मार्गदर्शित करता रहा है। निःसंदेह राम कथा की उपादेयता व प्रासंगिकता सार्वभौमिक व सार्वकालिक जनमानस के सम्पूर्णता हेतु प्रेरक प्रसंग है।
(पूर्व अतिथि प्रवक्ता इला.वि.वि)

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