बेथेस्डा क्रिश्चियन एकेडमी ने 50 क्षय रोगियों को गोद लिया
हापुड़, 17 मार्च, 2023। वर्ष 2025 तक भारत को टीबी मुक्त बनाना है, प्रधानमंत्री के इस संकल्प को पूरा करने के लिए क्षय रोग विभाग के साथ तमाम संस्थाएं, समाजसेवी संगठन, निजी चिकित्सालय, शिक्षण संस्थान, अधिकारी और पेशेवर जुड़ते जा रहे हैं। इसी क्रम में शुक्रवार को मोदीनगर रोड स्थित बेथेस्डा क्रिश्चियन एकेडमी ने 50 क्षय रोगियों को गोद लिया है। एकेडमी इन रोगियों को हर माह न केवल पुष्टाहार उपलब्ध कराएगी बल्कि समय-समय पर भावनात्मक और सामाजिक सहयोग भी देगी। प्रिंसिपल लॉरेंस जे. ने कहा - एकेडमी क्षय रोगियों को प्रेरित करेगी कि टीबी की दवा नियमित रूप से खानी है और साथ में एकेडमी की ओर से उपलब्ध कराए गए पुष्टाहार का भी सेवन करना है।
एकेडमी के प्रशासक डा. अरुण कुमार ने कार्यक्रम में पहुंचे क्षय रोगियों से उनका हाल-चाल जाना और हर संभव मदद का आश्वासन दिया। उन्होंने कहा- मुख्य चिकित्सा अधिकारी (सीएमओ) डा. सुनील कुमार त्यागी की प्रेरणा से एकेडमी पुण्य के इस कार्य में भागीदार बन सकी है, प्रयास रहेगा कि आगे और क्षय रोगियों को भी गोद लेकर भावनात्मक सहयोग उपलब्ध कराया जाए। इस मौके पर एकेडमी के वाइस प्रिंसिपल अनुज कुमार शर्मा और जनसंपर्क अधिकारी जोस के. मैथ्यू ने क्षय रोगियों का मनोबल बढ़ाया।
कार्यक्रम के दौरान जिला क्षय रोग अधिकारी (डीटीओ) डा. राजेश सिंह ने एकेडमी की ओर से क्षय रोगियों के लिए उपलब्ध कराया गया पुष्टाहार प्रदान किया। डीटीओ ने क्षय रोगियों से नियमित रूप से दवा मिलने के बारे में जानकारी ली। डीटीओ ने बताया - नियमित रूप से उच्च प्रोटीन युक्त भोजन लेने से शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बेहतर होती है। इससे एक ओर जहां दूसरे संक्रामक रोग लगने का खतरा कम होता है वहीं टीबी से रिकवरी भी तेज होती है। उन्होंने क्षय रोगियों को सचेत करते हुए कहा - एक भी दिन दवा खाने में लापरवाही न करें, टीबी निश्चित रूप से ठीक हो जाएगी। टीबी कोई अभिशाप नहीं, यह भी अन्य रोगों की ही तरह है, और उपचार के बाद पूरी तरह ठीक हो जाती है।
जिला पीपीएम समन्वयक ने क्षय रोगियों को संबोधित करते हुए कहा - घर पर खुले और हवादार कमरे में रहें ताकि टीबी का संक्रमण परिवार के अन्य सदस्यों को न लगे। भीड़भाड़ वाली जगहों पर जाएं तो मास्क का प्रयोग करें। इसके साथ ही परिवार के अन्य सदस्यों की भी टीबी जांच कराएं, हालांकि अब जो उपचार दिया जा रहा है उसके शुरू होने के एक माह के भीतर संक्रमण फैलने की आशंका न के बराबर रह जाती है।
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