आबादी पर अंकुश जरूरी

रिपोर्ट की बात करें तो जनसंख्या के मामले में भारत अगले साल यानी 2023 में चीन से आगे निकल जायेगा। पूर्ववर्ती अनुमानों में संभावना जतायी गयी थी कि ऐसा 2027 तक होगा, पर अब यह उससे चार साल पहले होता दिख रहा है। संयुक्त राष्ट्र की एक ताजा रिपोर्ट में यह रेखांकित किया गया है। निश्चित रूप से बहुत अधिक आबादी भारत के लिए एक गंभीर चिंता का विषय है। जनसंख्या वृद्धि स्वास्थ्य एवं सामाजिक विकास समेत विभिन्न क्षेत्रों को प्रभावित करती है। इससे गरीबी और खाद्य असुरक्षा में बढ़ोतरी हुई है क्योंकि समुचित भोजन तक पहुंच एवं उसकी पर्याप्त उपलब्धता का अभाव है। स्वास्थ्य सेवा लचर होने और पहुंच से बाहर होने के चलते बीमारियां भी बढ़ी हैं।अधिक आबादी पहले से ही दबाव झेल रही स्वास्थ्य सेवा प्रणाली का बोझ और बढ़ा देती है। देश कुछ सालों से पेयजल उपलब्धता को लेकर भी चुनौतियों का सामना कर रहा है। जनसंख्या बढ़ने से पीने के साफ पानी की भी कमी होती है। ये सभी समस्याएं हमारी आंखों के सामने बद से बदतर होती जा रही हैं। दूसरी गंभीर चुनौती लैंगिक भेदभाव की है। हमारे देश में लिंगानुपात का स्तर चिंताजनक बना हुआ है। उपलब्ध आंकड़ों की मानें, तो प्रति 1000 लड़कों पर 940 लड़कियां हैं। इसका नतीजा यह होता है कि समूचे तंत्र पर दबाव बढ़ता जाता है और काम नहीं मिल पाता है। जब लोगों के पास आमदनी नहीं होती, तो वे बेहद कठिन परिस्थितियों में जीने को मजबूर होते हैं। ऐसे में स्वाभाविक रूप से अपराध बढ़ते हैं और युवाओं में आपराधिक व्यवहार हावी होने लगता है। इस संबंध में उपलब्ध आंकड़े हमें बताते हैं कि तमाम कोशिशों के बावजूद देश में हर तरह के अपराधों की तादाद साल-दर-साल बढ़ती जा रही है। अधिक जनसंख्या होने से आर्थिक समानता में भी अवरोध पैदा होता है तथा सामाजिक सुरक्षा मुहैया करा पाना कठिन हो जाता है। ऐसे में आबादी का बड़ा हिस्सा बेहद खराब स्थितियों में जीवन जीने के लिए विवश होता है.भविष्य में ये चुनौतियां और विकराल हो सकती हैं। ऐसे में हमें जनसंख्या वृद्धि के प्रभावों, खासकर स्वास्थ्य पर, के बारे में व्यापक जागरूकता फैलाने पर ध्यान देना चाहिए।

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