पदयात्रा के निहितार्थ
कांग्रेस पार्टी की ‘भारत जोड़ो यात्रा’ के समय को लेकर सवाल उठाये जा सकते हैं क्योंकि फिलहाल पार्टी पूर्णकालिक अध्यक्ष के चयन की प्रक्रिया से गुजर रही है। बहरहाल, देश में आजादी से पहले महात्मा गांधी व बाद में चंद्रशेखर की यात्राओं का इतिहास रहा है। जिसमें उनके राजनीतिक कद व सामाजिक सरोकारों का संबल भी रहा है। ऐसे में कहा जा सकता है कि कांग्रेस यदि उठाये गये मुद्दों से जनता को जोड़ पाती है तो पार्टी की यात्रा से आशातीत सफलता की उम्मीद की जा सकती है। ऐसे वक्त में जब पार्टी का जनाधार सिकुड़ा है और तमाम दिग्गज एक-एक करके पार्टी को अलविदा कह रहे हैं, भारत जोड़ो यात्रा के जरिये कांग्रेस पार्टी अपना जनाधार बढ़ाने की कोशिश तो करेगी ही। ये आने वाला वक्त बतायेगा कि कांग्रेस अपनी बात को किसी हद तक लोगों तक पहुंचा पायी है। कांग्रेस की यह पदयात्रा जम्मू-कश्मीर में खत्म होने से पहले बारह राज्यों से गुजरेगी। यात्रा जहां नहीं जायेगी वहां सहायक यात्राएं निकाली जाएंगी। साथ ही हर राज्य में विशेष कार्यक्रम आयोजित किये जायेंगे। निस्संदेह, पार्टी 2024 के महासमर के लिये अपने जनाधार को विस्तार देने की तैयारी में है। पार्टी का कहना है कि सत्तारूढ़ राजग सरकार के कार्यकाल में सामाजिक ध्रुवीकरण से राष्ट्रीय एकता को खतरा पैदा हुआ है। वहीं महंगाई व बेरोजगारी से त्रस्त समाज को राहत देने की ईमानदार कोशिश नहीं हो रही है। दरअसल, दक्षिण भारत में ध्रुवीकरण की राजनीति प्रभावी न होने के कारण कांग्रेस ने अपनी यात्रा यहां से शुरू करके दक्षिण में अपनी पकड़ मजबूत बनाने की कोशिश की है। ये आने वाला वक्त बताएगा कि पार्टी कहां तक अपने मकसद में कामयाब होती है। निस्संदेह, हर पदयात्रा के राजनीतिक निहितार्थ होते हैं। महात्मा गांधी ने दांडी यात्रा की शुरुआत ऐसे वक्त में की थी जब कांग्रेस में स्फूर्ति लाने की महती आवश्यकता थी। वहीं चंद्रशेखर भी पार्टी के आंतरिक राजनीतिक हालात से क्षुब्ध थे। कमोबेश कांग्रेस पार्टी ऐसे ही संक्रमणकाल से गुजर रही है। नेतृत्व का प्रश्न भी उसके सामने है। भारत जोड़ो यात्रा की टैगलाइन– ‘मिले कदम, जुड़े वतन’ का नारा पार्टी के लिये कितना मुफीद होगा, यह आने वाला वक्त बताएगा, लेकिन इससे पार्टी संगठन में जान फूंकने में मदद अवश्य मिलेगी। निस्संदेह, यात्रा की सफलता इस बात पर निर्भर करेगी कि क्या पार्टी अपने लक्षित संदेश जनता को समझा सकी और उसमें राजनीतिक बदलाव के प्रति ललक पैदा कर पाई है।
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