हस्तमैथुन की अधिकता अनेक बीमारियों को जन्म देती 

 अस्सी प्रतिशत युवतियां अनर्गल सेक्स की व्याधि से प्रभावित

नयी दिल्ली। आज का युग भोगवादी युग बनता जा रहा है। इन्टरनेट, टी.वी के अनेक कार्यक्रम, सिनेमा, अश्लील साहित्य, ब्लू फिल्म आदि ऐसे अनेक साधन आज हो गये हैं जो युवा मन के काम सेक्स की भावना को भड़काने में ज्वलनशील पदार्थ के समान काम कर रहे हैं।युवकों की बात को अगर छोड़ भी दिया जाए और युवतियों की बात ही की जाए तो यह देखने में आएगा कि आज की अस्सी प्रतिशत युवतियां अनर्गल सेक्स की व्याधि से प्रभावित होकर आत्मरति अर्थात् हस्तमैथुन की अभ्यस्त हो जाती हैं। 

    सामाजिक लक्ष्मण रेखा को लांघने का दुस्साहस प्राय: युवतियां नहीं कर पाती किन्तु अपनी काम भावना पर वे नियंत्रण भी नहीं लगा पाती जिससे वे आत्मरति का शिकार हो जाती हैं। प्रारंभ में कुछ कष्ट के साथ ही सुखद अनुभूति भी प्राप्त होती है किन्तु भविष्य में जाकर यही आत्मरति जीवन का अभिशाप बन जाती है। स्त्री वर्ग में आत्मरति के परिणामस्वरूप योनि शिथिलता, योनिभं्रश, योनिशूल, आर्तवदोष, अनियमितरज, स्राव, श्वेतप्रदर, रक्तप्रदर, योनिकण्डू, योनिशोथ, योनिगत पीड़िकाएं, मानसिक तनाव तथा चिड़चिड़ापन जैसी अनेक व्याधियां उत्पन्न हो जाती हैं।

आत्मरति की अभ्यस्त युवतियों की योनि धीरे.धीरे ढीली होती चली जाती है तथा कुछ दिनों के बाद योनि अपने मूल स्थान से खिसक सकती हैए जिसे योनिभं्रश कहा जाता है। इस स्थिति के बने रहने पर योनि का सम्पर्क गर्भाशय से प्राय: टूट जाता है और विवाहोपरान्त उस महिला को गर्भधारण करने में अनेक कठिनाइयां उत्पन्न हो सकती हैं जिसके लिए चिकित्सक से लम्बी अवधि तक उपचार कराना होता है। हस्तमैथुन के फलस्वरूप जब स्खलन की स्थिति आती है तो स्त्री के जननांग उत्तेजित हो जाते हैं। निरंतर हस्तमैथुन के फलस्वरूप जननांगों में उत्पन्न होने वाली यह उत्तेजना क्षीण होने लगती है जिसके फलस्वरूप गर्भाशय तथा बीजवाही ग्रंथियों के स्वाभाविक कार्य में विकार उत्पन्न होकर श्वेत प्रदर तथा रक्तप्रदर जैसी व्याधियां उत्पन्न हो जाती हैं।

  हस्तमैथुन की अभ्यस्त युवतियां अपनी भगनासा पर अत्यधिक घर्षण देने के लिए किसी भी गोलाकार वस्तु को योनि में प्रवेश कराती हैं तथा उससे घर्षण देना प्रारंभ करती हैं। चूंकि मैथुन करने वाली भी वह स्वयं ही होती है और आनन्द भी स्वयं ही प्राप्त करती है, अत: अपनी इच्छानुसार वह धीरे.धीरे प्रारम्भ करके तीव्रतम झटकों को देने से नहीं हिचकती है जिसके परिणाम स्वरूप भगनासा एवं भगोष्ठ दोनों पर घातक प्रभाव पड़ता है और एक समय ऐसा आता है, जब उसमें घाव उत्पन्न होकर कैंसर का भी रूप धारण कर सकता है।

मासिक धर्म के आसपास के दिनों में युवतियों में कई तरह के मानसिक व शारीरिक परिवर्तन आते हैं। इस अवधि में उनके जननांगों में भी मादक सिहरन उत्पन्न होती है तथा मन में कामुकता की भावना उठती रहती है। अपने इस कामुक तनाव से मुक्ति पाने के लिए कुंवारी लड़कियों को हस्तमैथुन का ही दामन थामना पड़ता है। भारत जैसे गर्म जलवायु वाले देश में 12-14 वर्ष के अन्दर ही लड़कियों में मासिक स्राव प्रारम्भ हो जाता है और गुप्तांगों में परिवर्तन आने लगता है। इस अवधि में अनेक जननांगों में सिहरन उत्पन्न होने के कारण हस्तमैथुन का सहारा लेकर रतिसुख को प्राप्त करने की तीव्र लालसा जाग्रत होती है। प्रारम्भ में कुछ कष्ट का सामना करना पड़ता है किन्तु रतिसुख के सामने सभी कष्ट तुच्छ ही लगता है। दिन में चार.पांच बार तक युवतियां हस्तमैथुन करती रहती है।हस्तमैथुन की अधिकता अनेक बीमारियों को जन्म देती है अत: इसका प्रतिकार आवश्यक है। सप्ताह में एक बार सावधानी पूर्वक आत्मरति करने को डाक्टर उचित ठहराते हैं।

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