कौन बनेगा राष्ट्रपति ?
इस बार राजनीतिक रूप से दिलचस्प होगा। राज्यसभा के चुनाव और अन्य उपचुनाव भी हो चुके हैं। परिणाम लगभग तय है। उनके बाद सांसदों का अंकगणित कुछ बदल जाएगा और सत्तारूढ़ भाजपा का पक्ष कुछ भारी होना भी तय है। फिलहाल भाजपा-एनडीए के पक्ष में 50 फीसदी से कुछ कम वोट-मूल्य है। यदि विपक्ष अप्रत्याशित तौर पर लामबंद होता है, तो उसकी चुनावी ताकत करीब 51 फीसदी है। चुनाव आयोग ने कुल वोट-मूल्य 10,80,131 घोषित किया है। जिस उम्मीदवार को 5.40 लाख से अधिक वोट-मूल्य मिलेगा, वही विजेता होगा। भाजपा-एनडीए इस चुनावी आंकड़े के ज्यादा करीब है। विपक्ष का एक ही उम्मीदवार होगा, अभी यह घोषित नहीं किया गया है और न ही ऐसे आसार पुख्ता हैं। बहरहाल राष्ट्रपति चुनाव में सभी लोकसभा, राज्यसभा सांसद और विधायक मतदान करते हैं। मनोनीत सदस्यों को मताधिकार नहीं है। सभी सांसदों के वोट का मूल्य एक समान होता है, लेकिन राज्य के आकार और आबादी के आधार पर विधायकों का वोट-मूल्य कम-ज्यादा होता है। अब चुनाव को लेकर मंथन और रणनीति के दौर चल रहे हैं। मौजूदा राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद का चयन करते हुए ‘दलित’ की रणनीति पर विचार किया गया था। अब आदिवासी, ओबीसी, अति पिछड़े या महिला सरीखे आधारों पर विमर्श जारी होगा। अंततः प्रधानमंत्री मोदी जिस चेहरे को स्वीकृति देंगे, भाजपा संसदीय बोर्ड भी उस पर मुहर लगा देगा। फिलहाल विपक्ष एकजुट नहीं है। बिखरती, टूटती कांग्रेस का दखल और दावा कम हुआ है, इसका एहसास पार्टी नेतृत्व को है, लिहाजा चयन-प्रक्रिया में कौन उम्मीदवार सामने आएगा, यह बिल्कुल अनिश्चित है। तेलंगाना के मुख्यमंत्री चंद्रशेखर राव विपक्षी एकता के प्रयास कर रहे हैं, लेकिन वह कांग्रेस को हाशिए पर रखकर तय करना चाहते हैं। उनके अलावा, ममता बनर्जी, शरद पवार, एम. के. स्टालिन और अरविंद केजरीवाल भी महत्त्वपूर्ण विपक्षी नेता हैं। बेशक राष्ट्रपति चुनाव जीतना विपक्ष का फिलहाल मकसद न हो, लेकिन 2024 के आम चुनावों की ‘ड्रेस रिहर्सल’ इसी चुनाव के जरिए की जा सकती है। राष्ट्रपति कोविंद का कार्यकाल अपेक्षाकृत विवादास्पद और हंगामापूर्ण नहीं रहा। राष्ट्रपति भवन की क्षमता और शक्ति तब दिलचस्प बन जाती है, जब राष्ट्रपति सत्तारूढ़ पार्टी या गठबंधन के विपरीत दूसरे पक्ष का चुना गया हो। ऐसा भी देखा गया है कि राष्ट्रपति कांग्रेस का हो और प्रधानमंत्री विपक्ष का चुना जाए। मसलन-केआर नारायणन के राष्ट्रपति काल में अटल बिहारी वाजपेयी पहली बार प्रधानमंत्री चुने गए। जब 2014 में नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री चुने गए, तब देश के राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी थे। हालांकि दोनों ही संदर्भों में किसी भी संवैधानिक हस्ती ने मर्यादा का उल्लंघन नहीं किया, नतीजतन कोई विवाद भी पैदा नहीं हुआ। राष्ट्रपति के इतिहास में नीलम संजीवा रेड्डी ही एकमात्र राष्ट्रपति थे, जो निर्विरोध निर्वाचित हुए। इतिहास में यह भी दर्ज है कि ज्ञानी जैल सिंह कांग्रेस की राजनीति करते रहे, कांग्रेस ने ही उनको राष्ट्रपति बनवाया, लेकिन कुछ मुद्दों पर विवाद के कारण उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के फैसलों का विरोध किया और सरकार की नींद हराम किए रखी। इस चुनाव में देखने वाली बात यह होगी कि एनडीए तथा यूपीए की ओर से कौन-कौन प्रत्याशी चुनाव मैदान में उतारे जाते हैं।
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