चाइल्ड पीजीआई में 15 साल के बच्चे की हार्ट सर्जरी

चिकित्सकों की टीम ने किया मित्राल वाल्व रिप्लेसमेंट 


नोएडा, 2 जून 2022। पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ चाइल्ड हेल्थ (चाइल्ड पीजीआई) के कार्डियक सर्जरी विभाग में 15 साल के एक बच्चे की हार्ट सर्जरी की। बच्चे को सांस लेने की दिक्कत और पिछले चार-पांच वर्षों से किसी भी गतिविधि को करने में असामान्य थकान की शिकायत के साथ यहां लाया गया था। उसे पिछले चार वर्ष से घबराहट (पल्पिटेशन) की समस्या भी थी।

चाइल्ड पीजीआई के निदेशक डा. अजय सिंह ने बताया बच्चा अप्रैल 2022 में संस्थान की ओपीडी में आया और जांच एवं मूल्यांकन के बाद उसके रोग की पहचान रिह्युमेटिक सीवियर माइट्रल वाल्व रेगुर्गिटेशन एंड प्रोग्रेसिव माइट्रल (मित्राल) स्टोनोसिस (एक ऐसी अवस्था जिसमें हार्ट की वाल्व लिंक और स्टेनोज्ड  करता है) के रूप में हुई। इसके साथ उसकी ह्रदय की गति असामान्य रूप से तेज पायी गयी। ह्रदय गति को कंट्रोल और रक्त को पतला करने के लिए बच्चे का लंबे समय से उपचार किया जा रहा था। अतः संस्थान के कार्डियक चिकित्सकों ने बच्चे को चिकित्सकीय रूप से अनुकूलित करते हुए सर्जरी के लिए तैयार किया।

चिकित्सकों ने परिवार के सदस्यों को मित्राल वाल्व रिप्लेसमेंट की प्रक्रिया के संदर्भ में बताते हुए उपलब्ध विकल्पों के बारे में भी जानकारी दी गई। उन्हें बताया गया कि बाजार में दो तरह के वॉल्व उपलब्ध हैं एक ऊतक वाल्व एवं एक मैकेनिकल (मेटल) वाल्व । इनमें से ऊतक वाल्व ज्यादा अच्छा है क्योंकि, इसको लगाने के पश्चात पोस्ट ऑपरेटिव केयर में कम दिक्कतें होती हैं तथा मरीज को ब्लड पतला करने के लिए दवा की भी जरूरत नहीं होती है। ऊतक वाल्व का जीवन मैकेनिकल वाल्व की अपेक्षा कम होता है और मरीज के जीवन में इसे दुबारा प्रत्यारोपित करने की जरूरत पड़ती है किंतु यह मरीज को नियमित रूप से परेशानी मुक्त जीवन देता है और बार-बार रक्त की जांच से भी बचाता है। बच्चे को ह्रदय के तेज गति से चलने की भी समस्या थी,  इसलिए उसके हृदय के बड़े चेंबर में रक्त जमाव से होने वाले दिल के आवेश की समस्या के निदान के लिए ब्लड थिनर की अत्याधिक आवश्यकता थी। ऊतक वॉल्व लगाने से मरीज को रक्त थिनर संबंधी समस्या से मुक्ति मिल जाएगी और असामान्य तेज ह्रदय गति को सामान्य किया जा सकता था। इसलिए कार्डियक सर्जनों की टीम ने मरीज को ऊतक वाल्व लगाने की प्रक्रिया अपनाने का निर्णय लिया। हृदय के बड़े चैंबर में सफलता की दर 60-70 प्रतिशत है। इस प्रक्रिया में मरीज के हृदय की गति कम होने का भी खतरा रहता है। 

डा.सिंह ने बताया 10 मई 2022 को मरीज का वाल्व बदल दिया गया और विशेष प्रक्रिया से उसकी ह्रदय गति भी नियंत्रित कर ली गयी। सर्जरी सामान्य हार्ट रेट के साथ सौ प्रतिशत सफल रही और मरीज को रक्त पतला करने के लिए दवा और उससे होने वाली परेशानियों- जैसे अचानक मृत्यु, अंगों का पक्षघात, गैंग्रीन आदि समस्याओं से भी छुटकारा मिल गया। 

सर्जरी करने वाले शल्य चिकित्सकों की टीम में डॉ. मुकेश कुमावत, विभागाध्यक्ष कार्डियक सर्जरी विभाग, डॉ. धीरज शर्मा, डॉ अंकित ठकराल तथा एनेस्थीसिया टीम से डॉ. मुकुल कुमार जैन शामिल थे।

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