भयमुक्त हों बेटियां
किसी ज़माने में बहुत कम लड़कियां शिक्षण संस्थाओं में शिक्षा ग्रहण करती थी। विभिन्न विभागों में महिला कर्मचारियों की संख्या न के बराबर होती थी। महिलाओं का नौकरी करना तथा घर से बाहर निकलना सामाजिक दृष्टि से अच्छा नहीं समझा जाता था। पुलिस तथा फौज में तो महिला कर्मियों की कल्पना तक नहीं की जा सकती थी। आर्थिक अभाव, अधिकारों की जागरूकता के अभाव तथा अशिक्षा के कारण यह समाज में एक आम प्रचलन था। उन्हें बचपन से ही दूसरे घर की अमानत या सम्पत्ति समझा जाता था। छोटी उम्र में ही उनकी शादी कर पारिवारिक बोझ डाल दिया जाता। सामाजिक तथा पारिवारिक प्रचलन में अशिक्षित लड़कियां न तो अपने अधिकारों की जानकारी रखती और न ही विरोध में बोलने की हिम्मत रखती। अब तो जमाना बदला है। अब बेटियां और महिलाएं अपने अधिकारों के प्रति सजग हैं। बेटियां उच्चतर शिक्षा प्राप्त कर बड़े से बड़े पदों पर आसीन हैं। पुलिस, सेना, प्रशासन, राजनीति, शिक्षा जगत, स्वास्थ्य, विज्ञान, खेल, फैशन वल्र्ड, सिनेमा जगत, बहुराष्ट्रीय कंपनियों तथा समाज सेवा के क्षेत्र में महिलाओं ने अपनी प्रतिभा तथा क्षमताओं को साबित किया है। अब महिलाएं हवाई जहाज़ तथा फाइटर प्लेन उड़ा रही हैं। ऐसा कोई भी क्षेत्र नहीं है जहां बेटियों तथा महिलाओं ने अपनी सफलता के झंडे न गाड़े हों। विद्यालयों, महाविद्यालयों तथा विश्वविद्यालयों में शिक्षा प्राप्त कर रही लड़कियों की संख्या में आशातीत वृद्धि हुई है। सार्वजनिक क्षेत्रों तथा कार्यालयों में महिलाएं पुरुषों के साथ कन्धे से कन्धा मिलाकर राष्ट्रीय निर्माण तथा विकास में अपना योगदान दे रही हैं।
 इस दिशा में महिला कानून तथा महिला अधिकारों ने भी उन्हें संरक्षण दिया है। बेटियों को स्वतंत्र रूप से आगे बढऩे के अवसर मिले हैं। विभिन्न क्षेत्रों में उनके लिए रोजग़ार के अवसर मिले हैं। वे आर्थिक रूप से सबल और स्वतंत्र हुई हैं। अब वे अपने फैसले स्वयं लेने में सक्षम हुई हैं। कुल मिलाकर आज बेटियां, महिलाएं सभी क्षेत्रों में पुरुषों को पीछे छोड़ चुकी हैं।
ये सब परिवर्तन होने के बावजूद विचारणीय है कि क्या हम बेटियों तथा महिलाओं को पूर्ण रूप से सामाजिक संरक्षण दे पाए हैं? क्या सच में वे साधन सम्पन्न हो चुकी हैं? क्या वे आज भी स्वतंत्र आर्थिक फैसले ले सकती हैं? क्या वे सामाजिक रूप से पूर्णत: सुरक्षित हैं? आज भी वे सिरफिरों तथा दरिंदों की गिद्ध दृष्टि से नहीं बच पाती। आज भी उनका मानसिक तथा शारीरिक शोषण होता है। आज भी बलात्कार, जोर-जबरदस्ती, हत्या के समाचार समाचारपत्रों में छपना सामान्य बात है। संयमित एवं मर्यादित आचरण प्रत्येक व्यक्ति की आवश्यकता है, फिर चाहे वह पुरुष हो या महिला।  बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ तथा बेटा समझाओ के इस दौर में अभिभावकों का सजग तथा जागरूक होना बहुत आवश्यक है। बेटे और बेटी में किसी भी तरह का लिंगभेद तथा भेदभाव न होते हुए यह आवश्यक है कि बेटों को अच्छे संस्कार दिए जाएं। उन्हें यह बताया तथा समझाया जाए कि महिला सम्मान के विपरीत न जाएं। सभी को मान-सम्मान, स्वाभिमान तथा भयमुक्त होकर जीवन जीने का अधिकार है। उन्हें पारिवारिक संस्कारों के साथ किसी की निजता तथा व्यक्तिगत स्वतंत्रता का ध्यान रखना होगा। बेटियों के लिए भयमुक्त वातावरण तथा बेटों के लिए संस्कार युक्त जीवन सामाजिक सौहार्द, शांति तथा समरसता के लिए बहुत ही आवश्यक है। 

No comments:

Post a Comment

Popular Posts