सुप्रीमकोर्ट की चिंता

sanjay verma
देश में बढ़ रहे अवैध कालोनियों और किए जा रहे अतिक्रमण को लेकर सुप्रीमकोर्ट ने कड़ी नाराजगी जताई है। कोर्ट ने साफ तौर पर कहा है कि देशमें बढ़ती अवैध कालोनियां चिंताजनक हैं। साथ ही कोर्ट की ओर से नियुक्त न्यायमित्र से दो सप्ताह के अंदर पूरा ब्यौरा तलब किया है। आमतौर पर बड़े शहरों में कुकरमुत्ते की तरह से अवैध कालोनियां बढ़ती जा रही हैं। खासतौर पर देश की राजधानी दिल्ली में अवैध निर्माणों पर बुलडोजर चलते दिखा तो बहुत आश्चर्य हुआ, क्योंकि लगभग पूरी दिल्ली में अवैध अतिक्रमण हैं। देश का शायद ही कोई राज्य होगा, जहां अवैध निर्माण नहीं होंगे। यह तो खुद भारत सरकार की एजेंसियों का पुराना खुलासा है कि 60 फीसदी से अधिक राजधानी में अवैध अतिक्रमण हैं। यह आंकड़ा अब बढ़ गया होगा, क्योंकि अवैध निर्माण औसत दिल्लीवाले की फितरत है। यहां तो जंगलों, रक्षा मंत्रालय, कृषि-भूमि और आम फुटपाथ पर कब्जे करके बहुमंजिला इमारतें बना ली गई हैं। ओखला में यमुना रिवर बेड पर ही चार मंजिला इमारतें बना ली गई हैं। कल कुछ त्रासदी होगी, तो सरकार जिम्मेदार होगी और मुआवजा देगी। दिल्ली में घर हो या दुकान अथवा फैक्टरी हो, बिना अवैध निर्माण गुजारा संभव ही नहीं है। राजधानी दिल्ली का विश्वविख्यात सौंदर्य है-लुटियंस ज़ोन। इस क्षेत्र में राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और संसद भवन के अलावा कैबिनेट मंत्री, न्यायाधीश, सांसद, वरिष्ठ नौकरशाह और कुछ सैन्य अधिकारी विशालकाय बंगलों में रहते हैं। फिलहाल राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के अधिकृत आवासों की बात नहीं करते, लेकिन दूसरे आवासीय बंगलों में एक भी ऐसा नहीं होगा, जहां अवैध ढांचा न बनाया गया हो। कोई भी नगर निगम, एजेंसी, अदालत, पुलिस न तो इन कोठियों के भीतर के अतिक्रमण पर बुलडोजर चलाने का दुस्साहस कर सकती है और न ही उनके अधिकार-क्षेत्र में है, क्योंकि वह शासक जमात है। सरकारें इन भव्य, संभ्रांत, अतिविशिष्ट आवासों के अवैध निर्माणों को देखकर भी आंखें मींच लेती हैं। दूसरी ओर राजधानी दिल्ली के एक उपेक्षित कोने में बसीं लाखों झुग्गी-झोंपडि़यों को, केंद्र की वाजपेयी सरकार के दौरान, ध्वस्त कर दिया गया। अभागे गरीब, बेघर, मजदूर और घर-घर काम करने वालों को रातोंरात उजड़ना पड़ा। वहां की ज़मीन को बाद में समतल करके सरकार ने अन्य सौंदर्यपरक निर्माण कराए। झुग्गीवालों को 25-30 किलोमीटर दूर जाना पड़ा, जहां बुनियादी सुविधाएं भी नहीं थीं। मोदी सरकार के ही दौरान करीब 40 लाख अवैध घरानों और दुकानदारों को पट्टे बांट कर ज़मीन के ‘मालिकाना हक’ दिए गए। आमतौर पर इन अनधिकृत आवासीय कालोनियों का ‘नियमितीकरण’ किया जाता रहा है। अनधिकृत के मायने भी अवैध अतिक्रमण ही हैं। राजधानी दिल्ली का दिल और आत्मा कनॉट प्लेस में बसते हैं। यहां आकर आप महसूस करेंगे मानो किसी विदेशी शहर में आ गए हैं! अवैध अतिक्रमण यहां सरेआम दिखेंगे। आम फुटपाथ पर औरतें चाय बनाती, लंच बनाती या केला, सेब, अमरूद आदि फल बेचती मिलेंगी। सड़क पर बूट-पॉलिश वाले, पान-सिगरेट वाले, रेहड़ी-खोमचे वाले भी दिखाई देंगे। जब मोदी सरकार रेहड़ी-खोमचे और फुटपाथ वाले छोटे कामगारों को बैंक से कर्ज़ मुहैया करवा रही है, तो वे अवैध अतिक्रमणवादी कैसे करार दिए जा सकते हैं? ऐसे सभी अवैध कारोबारी गश्ती पुलिसिए और नगर निगम वाले चेहरे को ‘हफ्ता’ देते रहते हैं और उनका अतिक्रमण जारी रहता है। बाज़ार के बरामदों में भी शो-रूम या दुकानों का सामान ऐसे बिखरा रहता है कि वहां से गुज़रना मुश्किल लगता है। मामले अदालतों तक गए जरूर, लेकिन अवैध फॉर्म हाउस आज भी बरकरार हैं। 

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