साक्षरता बेहद जरूरी


भारत में साक्षरता शक्ति का एक महत्त्वपूर्ण उपकरण है। जो महिलाएं शिक्षित हैं, वे साक्षर बच्चों की एक पीढ़ी पैदा कर सकती हैं और यही पीढ़ी देश में कुशल कार्यबल बन सकती है। गरिमामय और उद्देश्यपूर्ण जीवन जीने के लिए व्यक्ति को साक्षर होना बहुत जरूरी है। साक्षरता मुक्त सोच को जन्म देती है। आर्थिक विकास के साथ-साथ व्यक्तिगत और सामुदायिक कल्याण के लिए भी यह महत्त्वपूर्ण है। इसके अतिरिक्त आत्मसम्मान और सशक्तिकरण भी इसमें निहित है। अब सवाल यह है कि जब साक्षरता इतने गुणात्मक पक्षों से युक्त है, तो फिर अभी भी हर चौथा व्यक्ति अशिक्षित क्यों है? क्या इसके पीछे व्यक्ति स्वयं जिम्मेदार है या फिर सरकार की नीतियां और मशीनरी जवाबदेह है? कारण कुछ भी हो, मगर इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि साक्षरता का अभाव सुशासन की राह में बड़ा रोड़ा है। दरअसल सुशासन एक जन केंद्रित संवेदनशील और लोक कल्याणकारी भावनाओं से युक्त ऐसी व्यवस्था है जिसके दोनों छोर पर केवल व्यक्ति ही होता है। यह एक ऐसी अवधारणा है जहां से सामाजिक-आर्थिक उत्थान अंतिम व्यक्ति तक पहुंचाया जाता है। बदले दौर में सरकार की नीतियां और जन अपेक्षाएं भी बदली हैं। बावजूद इसके पूरा फायदा तभी उठाया जा सकता है, जब देश निरक्षरता से मुक्त होगा। साक्षरता और सुशासन की यात्रा को तीन दशक से अधिक वक्त हो गया। जाहिर है, दोनों एक-दूसरे के पूरक तो हैं, मगर अभी देश में इन दोनों का पूरी तरह स्थापित होना बाकी है। दुनिया के किसी भी देश में बिना शिक्षित समाज के सुशासन के लक्ष्य को हासिल करना संभव नहीं है। साक्षरता से जागरूकता को बढ़ाया जा सकता है और जागरूकता से स्वावलंबन और आत्मनिर्भरता को बढ़त मिल सकती है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर निरक्षरता मिटाने के मकसद से 1966 में यूनेस्को ने अंतरराष्ट्रीय साक्षरता दिवस की शुरुआत की थी। इसका कार्यक्रम का उद्देश्य था कि 1990 तक किसी भी देश में कोई भी व्यक्ति निरक्षर न रहे। मगर ताजा स्थिति यह है कि भारत में 2011 की जनगणना के अनुसार साक्षरता चौहत्तर फीसद ही है। आसान शब्दों में कहें तो जिस व्यक्ति को अक्षरों का ज्ञान हो और वह पढ़ने-लिखने में सक्षम हो, सरकार की नीतियों, बैंकिंग व्यवस्था, खेत-खलिहानों से जुड़ी जानकारियां, कारोबार से जुड़े उतार-चढ़ावों जैसी चीजों को समझ सके। साक्षरता के जरिए लोकतंत्र की मजबूती से लेकर आत्मनिर्भर भारत की यात्रा भी सहज हो सकती है।

हालांकि साल 2011 की जनगणना के अनुसार देश की साक्षरता दर चौहत्तर फीसद ही थी। कोविड-19 के चलते साल 2021 में होने वाली जनगणना संभव नहीं हो पाई। ऐसे में साक्षरता की मौजूदा स्थिति क्या है, इसका कोई स्पष्ट आंकड़ा नहीं है। मगर जिस तरह 2030 तक शत-प्रतिशत साक्षरता का लक्ष्य रखा गया है, उसे देखते हुए कह सकते हैं कि 2031 की जनगणना में आंकड़े देश में अशिक्षा से मुक्ति की ओर होंगे।
बहरहाल भारत के समक्ष राष्ट्रीय साक्षरता दर को सौ फीसद तक ले जाने के अतिरिक्त स्त्री-पुरुष साक्षरता की खाई को पाटना भी एक चुनौती रही है। दरअसल शिक्षा के क्षेत्र में लैंगिक विषमता बढ़ने के कई कारण हैं। शिक्षा के प्रति समाज का एक हिस्सा आज भी जागरूक नहीं है। 

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