क्रांतिकारी रंगमंच में विश्व को बदलने की ताकत : रुद्रदीप चक्रवर्ती


रंगमंच और शांति की संस्कृति विषय पर आईआईएमटी विश्वविद्यालय में विश्व रंगमंच दिवस पर ऑनलाइन अंतर्राष्ट्रीय सेमिनार 


मेरठ। वर्तमान में विश्व तीसरे विश्वयुद्ध की ओर बढ़ता दिखाई दे रहा है, ऐसे में विश्व शांति के लिए हरसंभव प्रयास होने ही चाहिए। रंगमंच एक ऐसी विधा है जिसके पास शक्ति है विश्व को बदलने की। रंगमंच अपने क्रांतिकारी प्रयासों से विश्व में पीस ऑफ मिशन के तहत शांति का संदेश देने में महत्वपूर्ण सहायक हो सकता है। उक्त विचार सैन फ्रांसिस्को से नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा के एलुमनाई रुद्रदीप चक्रवर्ती ने विश्व  रंगमंच दिवस पर आईआईएमटी विश्वविद्यालय के जनसंचार, फ़िल्म और टीवी स्टडीज विभाग की ओर से आयोजित अंतर्राष्ट्रीय वेबिनार में रखे।



इस वेबिनार में थिएटर के दिग्गज शामिल रहे। थिएटर एंड कल्चर ऑफ पीस विषय पर यह वेबिनार आयोजित की गई। सेमिनार में अतिथि के तौर पर एनएसडी के मंझे हुए वरिष्ठ कलाकार डॉ. सुवर्ण रावत, मेरठ स्वांगशाला के वरिष्ठ कलाकार भारत भूषण शर्मा, डॉ कुलीन कुमार जोशी ने भी सेमिनार में शिरकत की। 

रुद्रदीप चक्रवर्ती ने कहा कि इन दिनों सैन फ्रांसिस्को में रशिया और यूक्रेन के बीच छिड़ी जंग के कारण पूरे देश में विश्व युद्ध के जैसा तनाव का माहौल है। भारत में इस बार विश्व रंगमंच दिवस की थीम भी थिएटर और शांति ही है। इस दौर में सबसे ज्यादा जरूरत भी इसी शांति कि तलाश की है। भारत में ओमपुरी से लेकर टॉम अल्टर और नसीरुद्दीन शाह सरीखी हस्तियों के साथ काम कर चुके रुद्रदीप बताते हैं कि वो भारत में आकर थिएटर के कलाकारों के लिए कुछ करना चाहते हैं। इसके लिए जल्दी ही भारत सरकार से संपर्क करेंगे। 

कई कॉलेजों में थिएटर के साथ-साथ नाट्य शास्त्र का इतिहास पढ़ाने वाले कुलीन कुमार जोशी ने थिएटर के विस्तृत इतिहास के साथ-साथ हालिया चुनौतियों पर भी विस्तार से प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि रंगमंच के लिए समर्पित कलाकारों की कमीं नहीं है मगर थिएटरों को अभी भी दर्शकों का इंतजार है। थिएटर किसी भी सूरत में ऑनलाइन नहीं हो सकता इसे ऑफ लाइन ही चलाया जा सकता है। दर्शकों को दोबारा थिएटर में आना ही होगा वरना भारत में ही जन्मी अभिनय की ये शानदार कला भारत में ही दम तोड़ देगी।

भारत भूषण ने अपना अनुभव छात्रों के साथ साझा करते हुए जीवन में रंगमंच और अभिनय की जरुरत पर बल दिया। उन्होंने बताया कि भारत में रंगमंच की विधा किसी परिचय की मोहताज नहीं है। अलबत्ता कश्मीर से शुरु होने वाले इतिहास में भरत मुनि ने सामवेद से लेकर कई उपनिषदों में रंगमंच की विधा को व्यावहारिक रूप दिया। माना जाता है कि भरत मुनि ही रंगमंच कला के पहले निर्देशक और कलाकार थे। भारत से शुरु हुई रंगमंच की विधा बाद में रामलीला और नुक्कड़ नाटकों से होती हुई टेलीविजन और फिल्मों की विशाल दुनिया तक पहुंच गई। 1961 में नेशनल थिएट्रिकल इंस्टीट्यूट ने इसी विधा का जश्न मनाने के लिए विश्व रंगमंच दिवस या वर्ल्ड थिएटर डे को मनाने की परंपरा की शुरुआत की थी।  

नाट्य शास्त्र में पीएचडी कर चुके डॉ सुवर्ण रावत ने बताया कि थिएटर और सिनेमा एक ही कला के दो अलग-अलग प्रस्तुतिकरण हैं। मगर थिएटर करने के बाद जो सुकून मिलता है वो फिल्मों में नहीं हो सकता। खासकर फिल्मों में अक्सर तकनीक और कैमरा किसी भी औसत कलाकार को भी महान बना सकती है। मगर थिएटर में रंग जमाने के लिए आर्टिस्ट को खुद को तराशना ही होता है। 

थिएटर के साथ-साथ पत्रकारिता और कविताओं से भी जुड़े योगेश समदर्शी ने बताया कि भारत सरकार स्थानीय थिएटर कलाकारों की अक्सर अनदेखी करती है। उन्होंने इस कला को बचाए रखने के लिए सरकारी मदद के हाथ की सख्त जरुरत जताई। ऑनलाइन सेमिनार में छात्रों ने भी इन वरिष्ठ कलाकारों के सामने अपने सवाल रखे। आईआईएमटी विश्वविद्यालय के जनसंचार, फिल्म एवं टेलीविजन स्टडीज विभाग के डीन डॉ सुभाष चंद्र थलेड़ी ने सभी आगन्तुक अतिथियों का आभार जताते हुए विश्व विद्यालय के छात्रों को थिएटर की दुनिया से जोड़ने के लिए सार्थक पहल करन का भरोसा जताया।  

उन्होंने आईआईएमटी विश्वविद्यालय के कुलाधिपति श्री योगेश मोहनजी गुप्ता सर, विश्वविद्यालय की कुलपति डॉ दीपा शर्मा जी का, प्रति उपकुलपति डॉ सतीश बंसल का आभार जताया। विभागाध्यक्ष डॉ विशाल शर्मा ने भी सभी आगन्तुकों का धन्यवाद दिया। वरिष्ठ शिक्षक डॉ नरेंद्र कुमार मिश्रा, पृथ्वी सेंगर, डॉ विवेक सिंह और निशांत सागर ने कार्यक्रम को सफल बनाने में सहयोग दिया।  कार्यक्रम का संचालन विभोर गौड़ ने किया।

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