रूस- युक्रेन युद्ध विश्व शांति को खतरा
- शिवचरण चौहान
आखिर रूस ने अपने अहंकार बस युक्रेन पर युद्ध थोप दिया। प्रथम विश्व युद्ध, द्वितीय विश्व युद्ध के बाद संयुक्त राष्ट्र संघ का गठन विश्व शांति के लिए किया गया था। पर अब तृतीय विश्व युद्ध का खतरा दुनिया के सिर पर खड़ा है। सन 1954 में एक फिल्म आई थी जागृति। इस फिल्म में कवि प्रदीप का लिखा एक गीत मोहम्मद रफी ने गाया था
एटम बमों के जोर पर ऐठी है यह दुनिया।
बारूद के इक ढेर पर बैठी है यह दुनिया।।
इस देश को रखना मेरे बच्चों संभाल के।।
अब बेचारे बच्चे क्या कर लें जब बड़े-बड़े देश कुछ नहीं कर पा रहे हैं! बच्चे तो वहां से खुद जान बचा कर भाग रहे हैं। यूक्रेन जैसा छोटा देश लड़ने मिटने या समर्पण के अलावा और क्या कर सकता है।
नव गीतकार वीरेंद्र मिश्र ने बहुत पहले लिख दिया था की दुनिया में युद्ध सिर्फ विनाश लाता है विकास को बर्बाद कर देता है। दुनिया का भूगोल बदल जाता है इतिहास रोने लगता है। वीरेंद्र मिश्र का एक गीत संग्रह है- युद्धों के मलबे से- और एक गीत संग्रह हैं शांति गंधर्व इन संग्रहों में मिश्र जी ने युद्ध की विभीषिका के बारे में कई गीत, नवगीत लिखे हैं, जो आज प्रासंगिक दिखाई दे रहे हैं।
गीतकार वीरेंद्र मिश्र का जन्म पहली अक्टूबर 1927 को मध्यप्रदेश के मुरैना जिले में हुआ था। वीरेंद्र मिश्र के पूर्वज कानपुर के सचेंडी कस्बे के आसपास के रहने वाले थे और मुरैना में जाकर उनके पुरखे बस गए थे। वीरेंद्र मिश्र का एक जून 1999 को देहांत हो गया था। वह विविध भारती मुंबई में बहुत दिन तक सेवारत रहे और अनेक नाटक गीत नवगीत लिखे। शांति गंधर्व और युद्धों के मलबे से उनकी प्रसिद्ध रचनाएं हैं।
वह लिखते हैं
महा नाश का शंख बजेगा।
युद्ध छिड़ेगा रक्त बहेगा।
शोनित के सागर में तुमको
नहीं मिलेगा कहीं किनारा।।
तात्पर्य यह कि जब युद्ध छिड़ेगा तो सर्वत्र विनाश ही विनाश होगा। सुख शांति चैन गायब हो जाएगा। 1955 में लिखा यह गीत काफी लंबा है । और वह इसे कवि सम्मेलनों में सुनाया करते थे। वीरेंद्र मिश्र ने बहुत पहले भविष्यवाणी की थी कि तीसरा विश्व युद्ध हो सकता है इसलिए यह ना होने पाए अभी से प्रयास किए जाने चाहिए। उन्होंने कहा-
उठो एशियाइयों
देश देश भाइयों
मुक्ति पर मरो जियो
समय कभी न हारा।।
हिरोशिमा, नागासाकी एशिया में ही हैं और अमेरिका ने यहीं पर एटम बम गिराए थे। चीन और पाकिस्तान ने भारत पर हमले किए थे। आज भी चीन पाकिस्तान भारत के लिए खतरे का संकेत हैं युद्ध की आशंका है। अफगानिस्तान में जो कुछ हुआ दुनिया देख रही है। ईरान इराक वियतनाम सीरिया अफगानिस्तान युद्ध में जलते आए हैं।और अब रूस यूक्रेन युद्ध की विभीषिका में जल रहे हैं। एशिया पर खतरा कुछ ज्यादा है।
कवि संवेदना प्रधान होता है और मानवता का पुजारी। वीरेंद्र मिश्र भी युद्ध से आशंकित सशंकित और भय ग्रस्त हैं किंतु वह विश्व का कल्याण चाहते हैं और युद्ध की जगह शांति का संदेश देते हैं। दर्द भरे गीतों के गायक पपीहा के माध्यम से वीरेंद्र मिश्र ने पीड़ित मानवता के दर्द का चित्रण किया है वीभत्स युद्ध से हुए विनाश का चित्रण किया है।
आम आदमी की पीड़ा का बयान करते हैं वीरेंद्र मिश्र
छत्र नहीं माथे पर फिर भी तो चलना है!
होती है धूप कड़ी छाएंगे बादल भी।
हम भी क्या रोए जब टूट गया पलना है।
छात्र नहीं माथे पर फिर भी तो चलना है।।
वीरेंद्र मिश्र ने उस दौरान जो गीत लिखे उसमें तृतीय विश्व युद्ध की आशंका उन्हें बलवती होती दिखाई देती है। अनेक देशों में युद्ध हो रहे थे या युद्ध की तैयारियां हो रही थीं। द्वितीय विश्व युद्ध से दुनिया बर्बाद हो गई थी और वीरेंद्र मिश्र नहीं चाहते थे कि अब कोई और युद्ध इस दुनिया में हो एशिया में हो।
(लेखक कवि साहित्यकार और वरिष्ठ पत्रकार हैं)
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