जल संकटः सजगता जरूरी
जल संकट से त्राहि-त्राहि के दिन आने वाले हैं। ऐसे संकेत आने भी लगे हैं और विशेषज्ञ चेतावनी दे रहे हैं कि विश्व के अनेक बड़े-बड़े शहर निकट भविष्य में जल संकट से जूझ रहे होंगे। जल संकट एकल रूप में नहीं आता, अपने साथ अनेक सामाजिक तनाव पैदा करता आता है। पानी के लिए विश्व युद्ध हो ना हो, लेकिन गर्मियों में गली-मोहल्लों में लघु ‘गृह युद्धों’ के दृश्य अक्सर देखने को मिलते हैं। पृथ्वी पर जीवन के लिए जल की आवश्यकता जीवन पर्यन्त है। जल की कमी के कारण प्रजातियां और सभ्यताएं तक प्रभावित होकर नष्ट हो जाती हैं। सभ्यता के संकट की जड़ें जल संकट में ही निहित हैं। सार्वभौमिक सत्य है कि जल ही जीवन का सार है, जिसके बिना जीवन की परिकल्पना करना व्यर्थ है। ऐसे में जल की महत्ता को देखते हुए इसके संरक्षण, सुरक्षा, प्रबंधन व गुणवत्ता सुनिश्चित करने का दायित्त्व हमको लेना होगा। जल संरक्षण, जल प्रबंधन और जल गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए ठोस राष्ट्रीय नीति और रणनीति का अभाव जल संकट का प्रमुख कारण है। पृथ्वी पर जल का संरक्षण, सुरक्षा, प्रबंधन व बेहतर गुणवत्ता एक संवेदनशील मुद्दा है, जिस पर गंभीर मंथन व क्रियान्वयन अपेक्षित है।
जल सुरक्षा का सीधा सम्बन्ध हमारी जैव विविधता और खाद्यान्न सुरक्षा से भी जुड़ा मुद्दा है। जल का संकट कृषि उत्पादकता को सीधे तौर पर प्रभावित करेगा जो कुपोषण और भुखमरी की दर में अभिवृद्धि का कारण बनेगा। देखा जाए तो पृथ्वी पर जल की असुरक्षा और कुप्रबंधन भविष्य के लिए एक नया संकट बनता जा रहा है, जिससे बचने लिए सार्थक और अभूतपूर्व प्रयासों की आवश्यकता है। इसके लिए जल के महत्व को समझना होगा और व्यर्थ में जल की बर्बादी को जनसहयोग से रोकना होगा और संकटग्रस्त जल स्रोतों को सूखने और जीवित व गतिमान जलस्रोतों को प्रदूषित तथा संक्रमित होने से बचाना होगा। जलस्रोत जीवित और हरे-भरे रहेंगे तो पृथ्वी पर जल की पर्याप्त उपलब्धता होगी और भू-गर्भीय जल का रीचार्ज एवं संतुलन ठीक प्रकार से बना रहेगा, जिससे पृथ्वी पर जल संकट की चिंता और भविष्य में जल की कमी से उत्पन्न होने वाली खतरों से बचा जा सकता है।

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