सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से पूछा, वन रैंक वन पेंशन में सैनिकों को क्या लाभ दिया गया ?

 
नयी दिल्ली । उच्चतम न्यायालय ने सशस्त्र बलों को ‘वन रैंक वन पेंशन’ (ओएमओपी) पर केंद्र सरकार के कथित ढुलमुल रवैए पर बुधवार को सवाल खड़ा किया तथा पूछा कि इस योजना से सैनिकों को क्या लाभ दिया गया।

न्यायमूर्ति डी. वाई. चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति सूर्य कांत और न्यायमूर्ति विक्रम नाथ की खंडपीठ ने केंद्र सरकार से कहा वह बताए कि ओआरओपी को कैसे लागू किया गया तथा इससे सैनिकों को क्या लाभ दिया गया।
खंडपीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता पूर्व सैनिकों ने दावा किया है कि ओआरओपी को मोडिफाइड एश्योर्ड कैरियर प्रोग्रेस (एमएसीपी) से जोड़कर सरकार ने सैनिकों के लाभों को काफी हद तक कम कर दिया है। इस वजह से ‘ओआरओपी’ योजना अपने उद्देश्य से भटक गई।
शीर्ष अदालत ने केंद्र सरकार से ये आंकड़ा पेश करने को कहा कि एमएसीपी कब पेश किया गया, कितने लोगों को इस योजना का लाभ मिला तथा कितने ओआरओपी का लाभ पाने के पात्र हैं।
इंडियन एक्स-सर्विसमैन मूवमेंट (आईईएसएम) की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता हुज़ेफ़ा अहमदी ने दलील देते हुए दावा किया कि केंद्र के तर्कों का अर्थ यह लगता है कि वह ओआरओपी देने के इच्छुक नहीं हैं।
याचिकाकर्ताओं ने केंद्र सरकार द्वारा ओआरओपी से संबंधित सात नवंबर 2015 को जारी अधिसूचना पर सवाल खड़े किए हैं।
याचिकाकर्ताओं ने सरकार के निर्णय को यह कहते हुए मनमाना और दुर्भावनापूर्ण करार दिया है कि यह ‘एक वर्ग के भीतर, एक वर्ग पैदा करता है’ तथा एक रैंक में अलग-अलग पेंशन देता है।

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