घोटाले के दोषी बख्शे न जाएं

इन दिनों एक बड़ा घोटाला सुर्खियों में चल रहा है। कहा जा रहा है कि यह देश के बैंकिंग इतिहास का सबसे बड़ा घोटाला है। स्टेट बैंक की शिकायत के बाद केंद्रीय जांच ब्यूरो ने गुजरात स्थित एबीजी शिपयार्ड लिमिटेड तथा उसके निदेशकों के विरुद्ध बैंकों के एक समूह के साथ 22,842 करोड़ रुपये से अधिक की धोखाधड़ी करने का मामला दर्ज किया है। इससे चार साल पहले कुछ वर्ष पूर्व चौदह हजार करोड़ के पीएनबी घोटाले ने देश के वित्तीय क्षेत्र में सनसनी मचा दी थी। इस मुद्दे पर देश में राजनीतिक हमले मुखर हो गये हैं। साथ ही आरोप-प्रत्यारोपों का सिलसिला भी तेज हो गया है। एक ओर कांग्रेस आरोप लगा रही है कि कंपनी के खिलाफ कार्रवाई करने में देरी की गई। जबकि भारतीय स्टेट बैंक तथा नियंत्रक और महालेखा परीक्षक यानी कैग ने वर्षों पूर्व इन अनियमितताओं को उजागर कर दिया था। वहीं सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी का आरोप है कि कांग्रेस नेतृत्व वाले संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की केंद्र सरकार के दौरान ही यह फर्म सार्वजनिक क्षेत्र के कई बैंकों से हजारों करोड़ रुपये के ऋण लेने में सफल हुई थी। बहरहाल, केंद्र तथा गुजरात में एक के बाद एक आने वाली विभिन्न सरकारें एबीजी को इतने लंबे समय तक खुली छूट देने की जवाबदेही से खुद को बचा नहीं सकतीं।
उल्लेखनीय है कि जुलाई, 2014 में राज्य विधानसभा में प्रस्तुत की गई एक रिपोर्ट में कैग ने राज्य सरकार द्वारा संचालित गुजरात मैरीटाइम बोर्ड को एबीजी की जहाज निर्माण सुविधा के संचालन को निलंबित करने के लिये कोई कार्रवाई न करने के लिये फटकार लगाई थी। दरअसल, कंपनी को आवंटित पट्टे के किराये का भुगतान वसूलने में राज्य सरकार विफल रही थी। कंपनी को बार-बार चेताने के बावजूद अपेक्षाकृत छोटी राशि महज 2.1 करोड़ रुपये का भुगतान नहीं किया गया था। दरअसल, गुजरात मैरीटाइम बोर्ड ने वर्ष 2006 में भरूच जिले में वाटरफ्रंट और निकटवर्ती जमीन का कब्जा एबीजी को दिया था। इतना ही नहीं, यूपीए कार्यकाल के दौरान एबीजी को जहाजों और इंटरसेप्टर नौकाओं के निर्माण के लिये तटरक्षक बल और नौ सेना से आर्डर प्रदान किये गये थे। इतनी बड़ी सरकारी परियोजनाओं में एबीजी को मौका मिलने से उसे बाजार में बड़ी पहचान बनाने में मदद मिली, जिसके चलते कंपनी बड़े सार्वजनिक व निजी बैंकों से मोटी रकम उधार लेने में कामयाब हुई। आगे चलकर यह भी जांच का विषय होगा कि क्या एबीजी ने बड़े अनुबंध हासिल करने के लिये बड़ी रिश्वत का सहारा लिया था। ऐसे में इन सौदों को अमलीजामा पहनाने में तत्कालीन मंत्रियों और सरकारी अधिकारियों की जवाबदेही तय करने की भी जरूरत महसूस की जा रही है। साथ यह भी जांच का विषय होना चाहिए कि जब कंपनी बैंकों का पहला कर्ज नहीं चुका रही थी तो उसके बावजूद उसे नये ऋण क्यों मिलते रहे। इस मामले में बैंक अधिकारियों के खिलाफ भी जांच और कार्रवाई होनी चाहिए। यदि इस मामले में पारदर्शी जांच और ठोस कार्रवाई नहीं होती तो देश को बड़े भ्रष्टाचार से मुक्त करना महज दूर की कौड़ी बनी रहेगी। इसके लिये जरूरी है कि देश की जनता के साथ धोखाधड़ी करने वाले आर्थिक अपराधियों और इस कृत्य में मदद करने वाले अधिकारियों व नेताओं को दंडित किया जाये। इससे भविष्य में इस तरह के घोटालों पर रोक लगायी जा सकेगी। हालांकि, सीबीआई ने एबीजी शिपयार्ड लिमिटेड के पूर्व सीएमडी, तत्कालीन डायरेक्टरों के खिलाफ केस दर्ज किये हैं। आरोपियों के ठिकानों पर छापामारी करके जरूरी कागजात बरामद किये गये हैं। जरूरी है कि मामले को तार्किक परिणति तक पहुंचाया जाये। उन आरोपों की भी जांच की जानी चाहिए, जिनमें कहा गया कि बैंकों से ली गयी मोटी रकम का विदेशों में निवेश किया गया। निस्संदेह, एक के बाद एक घोटाले सामने आना देश के लिये बड़ी चुनौती है। समय रहते धोखाधड़ी करने वाली कंपनी की संपत्ति हासिल करके बैंकों के कंसोर्टियम के कर्ज की ज्यादा से ज्यादा रिकवरी की जाये।

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