यूपी में चुनाव प्रचार थमा, 58 सीटों पर 10 फरवरी को मतदान

  प्रचार  थमने से पूर्व राजनीतिक  दलों ने पूरी ताकत  झोंक दी

लखनऊ,एंजेसी। उत्तर प्रदेश में सात चरण में होने वाले विधान सभा चुनाव के पहले चरण की 58 सीटों पर मंगलवार की शाम को चुनाव प्रचार थम गया।प्रथम चरण में पश्चिमी उत्तर प्रदेश के 11 जिलों की 58 विधान सभा सीटों पर 10 फरवरी को होने वाले मतदान से पहले लगभग एक महीने तक चले धुआंधार चुनाव प्रचार में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी ,भाजपा, के अलावा विपक्षी दल समाजवादी पार्टी ,सपा, बहुजन समाज पार्टी बसपा और कांग्रेस सहित अन्य दलों ने पूरी ताकत झोंक दी।

 चुनाव आयोग द्वारा आठ जनवरी को घोषित चुनाव कार्यक्रम के तहत पहले चरण के मतदान के लिये 14 जनवरी को चुनाव की अधिसूचना जारी हुयी थी। इस चुनाव में सत्तारूढ़ भाजपा सहित सभी विपक्षी दल अपने दम पर चुनाव लड़ रहे हैं।पिछले चुनाव में सपा और कांग्रेस ने गठबंधन करके चुनाव लड़ा था जबकि 2019 के लोकसभा चुनाव में सपा ने बसपा के साथ गठबंधन किया था। मगर, इस चुनाव में बसपा और कांग्रेस ने किसी दल से कोई गठजोड़ नहीं किया है। भाजपा और सपा ने जातीय समीकरणों को साधते हुये छोटे दलों से गठबंधन किया है।

एक ओर भाजपा ने निषाद पार्टी और अपना दल एस के साथ अपने पुराने गठबंधन को बरकरार रखा है, वहीं, सपा ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जाट समुदाय को साधने के लिये रालोद के साथ और पूर्वांचल में राजभर समुदाय को लुभाने के लिये सुभासपा सहित अन्य छोटे दलों के साथ गठजोड़ कर चुनावी नैया पार लगाने की रणनीति अपनायी है।

 पहले चरण में मेरठ,शामली, मुजफ्फरनगर, बागपत, हापुड़, गौतमबुद्धनगर, गाजियाबाद, बुलंदशहर, मथुरा, आगरा और अलीगढ़ जिलों की 58 विधान सभा सीटें शामिल हैं। पिछले चुनाव में इस चरण की 58 में से 53 सीटें भाजपा ने जीती थीं। जबकि सपा और बसपा ने दो.दो सीट एवं रालोद ने एक सीट जीती थी।

पश्चिमी उत्तर प्रदेश की इन सीटों पर भाजपा, सपा, बसपा और कांग्रेस के अलावा असदुद्दीन ओवैसी की एआईएमआईएम और पड़ोसी राज्य दिल्ली में सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी आप भी चुनावी दंगल में दो दो हाथ कर रही हैं। सपा रोलाद गठबंधन के कारण इस बार चुनाव में बहुध्रुवीय लड़ाई को देखते हुये भाजपा के लिये 2017 का परिणाम दोहराना आसान नहीं होगा।

623 उम्मीदवारों की किस्मत ईवीएम में  होगी कैद ,10 मार्च को खुलेगी किस्मत 

पहले चरण में कुल 623 उम्मीदवार चुनाव मैदान में हैं। सभी दलों के उम्मीदवारों की सूची से साफ हो गया है कि इस इलाके में चुनाव का दारोमदार जाट और मुस्लिम मतों के ध्रुवीकरण पर टिक गया है।कोरोना संक्रमण के खतरे के बीच हो रहे इस चुनाव में पिछले चुनावों की तुलना में प्रचार का शोर बहुत कम रहा। चुनाव आयोग ने कोविड प्रोटोकॉल के तहत रैली, जुलूस और रोड शो आदि पर पहले ही रोक लगा दिया।

वर्चुअल प्रचार के मामले में भाजपा ने विपक्षी दलों को जरूर पीछे रखने की कोशिश की लेकिन दो फरवरी से जनसभायें करने की अनुमति मिलने के बाद सपा, बसपा और कांग्रेस ने सीमित रोड शो एवं जनसभायें कर मतदाताओं तक अपने संदेश पहुंचाने में कामयाब रहे। बसपा की अध्यक्ष मायावती शुरु में भले ही प्रचार से स्वयं दूर रही हों, लेकिन दो फरवरी से उन्होंने पश्चिमी उत्तर प्रदेश में तीन जनसभायें कर तमाम सीटों मुकाबले को त्रिकोणीय बना दिया है।

पहले चरण  के  मतदान पर रहेगा किसान आंदोलन का असर 

चुनावी मुद्दों की अगर बात की जाये तो किसान आंदोलन का गढ़ रहे पश्चिमी उत्तर प्रदेश में किसानों की समस्या सबसे बड़ा मुद्दा है। जानकारों की राय में मोदी सरकार ने भले ही तीन कृषि कानून वापस लेकर सबसे लंबे किसान आंदोलन को खत्म कराने में कामयाबी हासिल की हो मगर किसानों का गुस्सा अभी भी भाजपा के लिये इस चुनाव की सबसे बड़ी चुनौती बन गया है।

किसानों के गुस्से को शांत करने के लिये प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और भाजपा अध्यक्ष जे पी नड्डा ने विकास कार्यों का इस इलाके में जमकर प्रचार किया। साथ पार्टी ने गृह मंत्री अमित शाह को पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भाजपा की चुनावी रणनीति का प्रभार सौंप कर उनके चुनाव प्रबंधन को मुख्य हथियार बनाया है। इस बार के चुनाव में शाह की चुनावी किलेबंदी भाजपा की नैया पार लगा पायेगी, इसका भी परीक्षण होगा।

इसके अलावा अखिलेश के चुनावी प्रयोगों की लगातार विफलता पर इस चुनाव में विराम लग पाता है या नहीं, यह भी देखना दिलचस्प होगा। बसपा की भी कोशिश है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सपा रालोद गठबंधन और भाजपा की लड़ाई को त्रिकोणीय बना दिया जाये।


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