मंगलवार को हुई प्रधानमंत्री मोदी की उच्चस्तरीय समीक्षा-बैठक में लाकडाउन लगाने के बजाए सभी स्तरों पर टीकाकरण की गति तेज करने और चिकित्सा बंदोबस्त को मजबूती पर जोर दिया गया। दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल ने भी कहा है कि वह लॉकडाउन के पक्षधर नहीं हैं। देश के किसी भी राज्य में फिलहाल लॉकडाउन घोषित नहीं किया गया है, हालांकि कोरोना संक्रमण के रोज़ाना के मामले 2 लाख को छूने को हैं। यह आंकड़ा पहली दो लहरों की तुलना में काफी ज्यादा है। लेकिन बाजार चलते रहें लोगों को रोजमर्रे के कामों से जूझना न पड़े इसलिए लाकडाउन को फिलहाल नेपथ्य में डाल दिया गया है। इससे पहले लगे लाकडाउन में लोगों के व्यापार और आर्थिक जगत की बर्बादी देखी गई है। शायद यही वजह है कि लाकडाउन के विकल्प के रूप स्वास्थ्य सेवाओं की मजबूती पर जोर दिया गया। साथ ही अब दुनिया के विशेषज्ञ वैज्ञानिक कोरोना के प्रमुख स्वरूपों की थाह ले चुके हैं और संक्रमण से निपट रहे हैं। लोग भी जागरूक हो चुके हैं, लिहाजा लॉकडाउन लगाकर लोगों को आर्थिक-मानसिक आघात नहीं दिया जाना चाहिए। इसी दौरान भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की विकास-दर के अनुमानों की सुखद ख़बर मिली है। बताया गया है कि वित्त वर्ष 2021-22 के दौरान विकास-दर करीब 9.2 फीसदी, यानी 147.53 लाख करोड़ रुपए, रह सकती है।
 यह भी कह सकते हैं कि हमारी अर्थव्यवस्था 3.2 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंच सकती है। अभी 5 ट्रिलियन डॉलर का सपना बहुत दूर है। करीब दो साल की महामारी के बावजूद ऐसे अनुमान सकारात्मक हैं कि देश आर्थिक बहाली के रास्ते पर है, लेकिन एक विरोधाभास भी सामने है कि निजी उपभोग, खपत दो साल की तुलना में आज भी कम है। आर्थिक बहाली समतल, समान अवस्था में नहीं है। व्यापार, परिवहन और लॉजिस्टिक के क्षेत्रों में विकास-दर असमान है। स्पष्ट है कि आर्थिक बहाली हो रही है, लेकिन वह व्यापक नहीं है। क्या देश के जीडीपी की विकास-दर प्रमुख 500 कंपनियों के मुनाफे के आधार पर तय होती है? इन कंपनियों ने कोरोना महामारी के बावजूद 75 फीसदी अधिक मुनाफा कमाया है। यह आंकड़ा 6.22 लाख करोड़ रुपए का बताया जा रहा है। ये करिश्माई मुनाफे तब अर्जित किए गए हैं, जब बीते वित्त वर्ष के दौरान जीडीपी की विकास-दर बढ़ने के बजाय 7.3 फीसदी गिरी थी। कोरोना कालखंड में देश की 97 फीसदी आबादी की आमदनी या तो घटी है अथवा जस की तस है। करोड़ों हाथ बेरोज़गार हुए थे। बाद में रोज़गार या नौकरी मिली, तो पहले से कम वेतन पर मिली। असंख्य युवाओं ने कृषि में हाथ बंटाना शुरू किया अथवा रेहड़ी-खोमचा लगाकर ‘रोटी’ कमाने का जुगाड़ किया। सरकार ने उस रुझान, प्रवृत्ति को ‘स्व-रोज़गार’ का नाम दे दिया। अब जिस विकास-दर को लेकर गाल-बजाई की जा रही है, वह भी अर्द्धसत्य ही है।
 महामारी के दौर में गहन संपर्क पर आधारित व्यापारिक  क्षेत्रों पर लॉकडाउन का गहरा असर पड़ा था। यह क्षेत्र ऐसे युवाओं को भी व्यापक रोज़गार देता रहा है, जो बहुत कुशल भी नहीं हैं। मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र पर भी विपरीत प्रभाव पड़े हैं। वह सबसे ज्यादा रोज़गार देने वाला क्षेत्र है। चूंकि कोरोना एक बार फिर बहुत तेजी से फैल रहा है, लिहाजा पर्यटन और होटल-रेस्तरां क्षेत्रों की कमर फिर टूटने को हो सकती है। फिल्म उद्योग अभी से कसमसाने लगा है, क्योंकि करीब 3200 करोड़ रुपए की नई फिल्में रिलीज नहीं हो पा रही हैं। लिहाजा सरकार को कुछ नई रणनीति भी तैयार करनी होगी।

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