आखों से उतर
स्वयं से सटी
तारीखों में
उपस्थित नयापन,
अनुकूलता,
सहजता को
एकदम से
नकारती आंखें।
उछल कर छू
लेना चाहती है
एक नई तारीख को
अधिक नयेपन की
सम्भावना में
संभावनाएं
आँखों से उतर
मन में पहुंच जाती हैं।
और यह व्यवहार-
कुशल मन
जाने कब अगली
तारीख में उतर
उसे कर देता है
पहले जैसा ही।
जाने क्यूँ
इन घोर महत्वकांक्षी
आँखों को
स्पर्शी तारीखों से
अधिक मोह
कभी रहा ही नहीं।
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क्षमा शुक्ला, कवयित्री व शिक्षिका
औरंगाबाद (बिहार)।
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