खेल के माध्यम से अभिनय की बारिकियों को जाना

- सात दिवसीय कार्यशाला का दूसरा दिन

मेरठ। अभिनय हमें हमारी संस्कृति से जोडता है। अभिनय करते समय एक परिवार की तरह काम करना पडता है। जो फिल्म या फिर नाटक के चरित्र को जीना पडता है। उसका चरित्र को जीना पडता है। नाटय शास्त्र भरत मुनि ने लिखा, चार वेद को मिलाकर बना है। अभिनय के चार प्रकार होते हैं। आंगिक, वाचिक, सात्विक तथा आहारयम है। यह बात चैधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय, मेरठ परिसर स्थित तिलक पत्रकारिता एवं जनसंचार स्कूल में सिनेमैटोग्राफी पर चल रही सात दिवसीय कार्यशाला के दूसरे दिन रंगकमी नरेंद्र सिंह ने प्रतिभागियों से साझाा की।  

खेल के माध्यम से बारिकियों को बताया रंगकर्मी नरेंद्र सिंह ने खेल के माध्यम से प्रतिभागियों को अभिनय की बारिकियों के विषय में बताया। बताया कि बैक स्टेज, सीन, चरित्र और अभिनेता की बीच संबंध के बारे में बताया। अभिनय करते समय चेहरे के एक्सप्रेशंस सामान्य होने चाहिए। आवाज को डायलाॅग के हिसाब से बढाया व घटाया जाता है। दर्शक के हिसाब से कहानी लिखी जाती है और उसी हिसाब से अभिनय और उसके चरित्र तय किए जाते हैं। एक अभिनेता को कोई भी चरित्र करने से पहले बहुत सारी तैयारी करनी पडती है। कहानी की डिमांड क्या है, हम कौन सा चरित्र निभा रहे हैं उस हिसाब से अपने को तैयार करना पडता है। बिना कैमरे के भी डायलाॅग बोलना, चेहरे के हावभाव प्रदर्शित करने पडते हैं। इस दौरान तिलक पत्रकारिता एवं जनसंचार स्कूल के निदेशक प्रो0 प्रशांत कुमार, डाॅ0 मनोज कुमार श्रीवास्तव, बीनम यादव, मितेंद्र कुमार गुप्ता, राकेश कुमार, उपेश दीक्षित, ज्योति वर्मा, नाजर, राजीव आदि मौजूद रहे।

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