नए साल पर,
कुछ तो नयापन लाओ।
हो सके तो,
कुछ आदतों में ही सुधार लाओ।
कोई कब तक कहेगा
तुम सुधर जाओ
कभी तुम ही
स्वयं को बदल कर,
लोगों को अचंभित कर जाओ।
चुन चुन कर तुम,
व्यसनों को पनाह देते हो।
पुराने साल पर मिट्टी डालो
नए साल पे,
नए रंग रूप में आओ।
दिन , महीने , साल ,
कब तक बे खबरी में गुजारोगे
कभी तो अखबारों की,
सुर्खियां बन कर दिखलाओ।
कब तक पिघलोगे,
मोम की तरह,
कभी तो अगरबत्ती की तरह,
महक कर दिखाओ।
बहुत बज लिए,
ढोल की तरह।
कभी तो वीणा की,
तान सुनाओ।
नये साल पर,
कुछ तो बदलाव लाओ।
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- कमल राठौर साहिल
श्योपुर, मध्य प्रदेश।
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