बुढ़ापा आता देखकर क्या घबराना,
जीवन में नव उल्लास जगाते रहना।
अनुभव थाती से सँवरती तकदीरें हैं,
जीवेम शरद:शतं,बदलती तदबीरें हैं।
नवजीवन नवकोंपल का आराधन है,
जीर्ण-शीर्ण अवस्था,मुक्ति साधन है।
सुखमय जीना,खुशियों काअंदाज है,
अंत नहीं.. ये आगाज है!...



पुष्प पराग सौरभ सुरभित झरती है,
खिलते सुमन,तितलियाँ इठलाती हैं।
गुनगुन मधुप गुँजार पुहुप मदमाते हैं,
मलय समीर गंध नव प्राण कुहुकते हैं।
पल दो पल जीवन में बाँटों खुशहाली,
भूत की चिंता,वर्तमान क्यों बदहाली?
लौह पारस स्पर्श, बनें कुंदन ताज है,
अनंत गगन छूले पंछी की परवाज है।
अंत नहीं.. ये आगाज है!...

संकट से मन घिरता चिंता सताती है,
सुख गंगा त्याग,अश्रुजल नहलाती है।
नागफनी सम सीने से लिपट जाती है,
पलछिन गम की भट्टी में दहकाती है।
मनुज! विघ्न बाधा से क्यों घबराना?
लगन से मुमकिन है सफलता पाना।
मनुज वही,जाने ना हिम्मत से हारना,
जिंदगी सफर में सरलता ही राज है।
अतं नहीं.. ये आगाज है!...
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- सीमा गर्ग मंजरी
मेरठ कैंट।

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