- शिवचरण चौहान
क्या हमारे महानगर अब मनुष्यों के रहने लायक नहीं रहे? दिन पर दिन प्रदूषित होती हवा/ खतरनाक होती जलवायु के कारण अब आदमी कहां जाकर रहेगा क्या उसकी जान सुरक्षित रह सके। क्या अब छोटे-छोटे गांव बसा कर झोपड़ी डालकर रहने के दिन आ गए हैं!
बहुत पहले बंगलुरु वासियों को चेतावनी दी गई थी कि सन 2025 तक बैंगलोर ( बंगलुरु) मनुष्यों के रहने लायक शहर नहीं रह जाएगा। आज यही स्थिति दिल्ली सहित देश के अनेक महानगरों की हो गई है। अनेक महानगर अब रहने लायक नहीं रहे। इनका पर्यावरण बहुत खराब हो चुका है और ऑक्सीजन का लेबल रोज पर रोज घटता जा रहा है। सरकारें सिर्फ वादे वादे और वादे करती हैं। आम जनता भी सब देख सुन कर भी अपनी तरफ से खुद सुधार नहीं करना चाहती गाड़ियों का प्रयोग धुआंधार किया जा रहा है।
सुप्रीम कोर्ट चिंतित है आखिर होगा क्या? अगर अभी हम नहीं सुधरे तो मनुष्य का जीवन कैसे बचेगा? अभी कुछ दिन पहले भारत के उच्चतम न्यायालय ने राष्ट्रीय राजधानी की वायु गुणवत्ता बारे में गहरी चिंता व्यक्त की है। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र व राज्यों की सरकारों को फटकार लगाते हुए पूछा कि दुनिया को आखिर हम क्या संदेश दे रहे हैं? राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में दिल्ली नोएडा गुरुग्राम में लगातार हवा जहरीली बनी हुई है और नौकरशाही हाथ पर हाथ रखे बैठी है। न्यायाधीशों ने कहा, वायु गुणवत्ता के गंभीर श्रेणी में जाने का इंतजार बंद कर पहले से कार्रवाई क्यों नहीं की जाती ? सरकारों को वैज्ञानिक व सांख्यिकी मॉडल के आधार पर कदम उठाने चाहिए। सीजेआई एनवी रमण की पीठ ने कहा, हम गंभीर स्थिति होने का इंतजार करते रहते हैं कि तब कदम उठाएंगे। नौकरशाही के इस रवैये को बदलना होगा। वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग के सुझावों जैसे औद्योगिक प्रदूषण, ताप कोयला बिजलीघरों, मोटर वाहनों से कार्बन उत्सर्जन, धूल नियंत्रण, डीजल जनरेटरों पर रोक के साथ कुछ और दिन 'घर से काम' को बढ़ावा देना चाहिए। आयोग को सांख्यिकी आधारित मॉडल पर भरोसा दिखाना होगा।
साधारण लोगों की बात कौन कहे अब तो सुप्रीम कोर्ट भी कहता है कि इतने साल नौकरशाही क्या कर रही थी? अफसरों को पर्यावरण सुधारने के लिए मौके पर जाना चाहिए काम करना चाहिए ताकि ठोस परिणाम सामने आ सके। पराली जलाने के मसले पर विशेषज्ञों को साथ लेकर गांवों में जाना चाहिए, किसानों से बात करनी चाहिए। उन्हें जागरूक करना चाहिए, उनकी समस्याएं सुनें, समाधान निकालें। वैज्ञानिकों को शामिल कर निर्णय हों।
इतना सब के बावजूद ना तो केंद्र सरकार और ना दिल्ली सरकार कुछ ठोस कदम उठाने को तैयार है। दिल्ली ही नहीं लखनऊ, कानपुर, इलाहाबाद, वाराणसी, मेरठ, चेन्नई, कोलकाता, हैदराबाद, अहमदाबाद, सूरत सहित अनेक महानगरों की हालत बहुत खराब है। इन महानगरों की हवा जहरीली हो गई है। इन सब शहरों के निवासियों अधिकारियों नगर निगम और प्रांत सरकारों को मिलकर काम करना पड़ेगा। स्वैच्छिक संगठनों को आगे आना पड़ेगा तभी जहरीली हवा में कुछ सुधार हो सकता है वरना अस्पताल मरीजों से भरे रहेंगे नर्सिंग होम में सीट नहीं बचेगी और हम असमय काल के गाल में जाने को मजबूर होंगे।
प्रकृति से छेड़छाड़ होगी तो प्रकृति बदला भी लेगी जिसके बहुत भयंकर परिणाम सामने आते हैं। आज भारत ही नहीं दुनिया भर में पर्यावरण के लिए धूल और धुआं बहुत खतरनाक है। इसी के कारण हमारी जलवायु में परिवर्तन हो रहा है। किंतु धूल और धुआं से भी ज्यादा खतरनाक मनुष्य की धूर्तता भी है। यह धूर्तता ग्लासगो जलवायु सम्मेलन में साफ दिखाई पड़ी है। ग्लासगो जलवायु सम्मेलन में दुनिया भर में धुआं फैलाने वाले देशों ने धूर्तता की है। चीन, रूस और अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया आदि संपन्न देशों में दुनिया के आसमान में 45 प्रतिशत से भी ज्यादा कार्बन डाइऑक्साइड छोड़ा है किंतु इसकी भरपाई करने के लिए अपने हिस्से की राशि प्रगतिशील देशों के नहीं दी। अपनी धूर्तता के कारण अमीर देशों में प्रगतिशील देशों की स्थिति बहुत खराब कर दी है।
चीन और अमेरिका ग्लास्गो सम्मेलन में भी इसी बात पर तुले रहे कि भारत दुनिया का तीसरे नंबर का सबसे बड़ा कार्बन उत्सर्जन देश है। इसलिए भारत यह शपथ ले कि 2027 तक वह भारत में चलने वाले कोयले के सारे उद्योग धंधे बिजली घर और ट्रेनें नहीं चलाएगा। बंद कर देगा। सौर ऊर्जा को बढ़ावा देगा और पेट्रोल डीजल से चलने वाली गाड़ियों को 2030 तक बदल कर बिजली गैस अथवा सौर ऊर्जा से चलाने का वादा करेगा। भारत के प्रधानमंत्री के सामने यह भयंकर समस्या थी की एक विकास करता हुआ देश अपने सारे कार्य कैसे रोक दे। फिर भी भारत ने अपनी तरफ से 2070 तक सारा कार्बन उत्सर्जन बंद करने का वादा किया है और 2030 तक कार्बन उत्सर्जन को नियंत्रित करने का वादा किया है।
भारत को सभी से मिलकर एक ठोस नीति बनानी होगी और कठोर निर्णय लेने होंगे नहीं तो हमारे महानगर एकदम रहने लायक नहीं बचेंगे।
(लेखक पर्यावरण के जानकार और स्वतंत्र चिंतक हैं)
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