चाँद से हँस चाँदनी ने, यूँ कहा यह एक दिन ।
खूब बदलो रूप अपने, मैं सदा पहचान लूँगी।
साथ दूँगी मैं सदा ही, चाँदनी हूँ मैं तुम्हारी।।

दिन, महीने हैं गुजरते, बदल जाता साल है ।
सृष्टि का यह नियम शाश्वत, यह समय की चाल है ।
सब बँधे हैं इस नियम से, नियम डोरी थाम लूँगी ।
साथ हूँगी मैं तुम्हारा, अनुगामनी हूँ मैं तुम्हारी ।।
चाँदनी हूँ  मैं तुम्हारी ।।

घूमता ऋतु चक्र प्रति पल, मैं कभी ओझल रहूँगी ।
किन्तु तुम तुम निश्चिन्त रहना, मैं सदा निर्मल रहूँगी ।
प्रेम की रसधार बनकर, इस जगत में मैं बहूँगी ।
मैं कहूँगी यह सदा, अनुरागनी हूँ मैं तुम्हारी ।
चाँदनी हूँ मैं तुम्हारी ।।

बक्र होते हो कभी तुम, और होते गोल हो ।
जो भी हो मेरे लिये प्रिय, तुम सदा अनमोल हो ।
प्राण! मैं तेरे लिये हर, पीर को हँस कर सहूँगी ।
मैं रहूँगी,गीत हो तुम, रागनी हूँ मैं तुम्हारी ।
साथ दूँगी मैं सदा ही, चाँदनी हूँ मैं तुम्हारी ।।
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- श्याम सुन्दर श्रीवास्तव 'कोमल'
व्याख्याता-हिन्दी
अशोक उ०मा०विद्यालय, लहार (भिण्ड)।

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