भरे गगन का क्या करना है, चमन ये सारा क्या करना है, इतनी तो ताकत नहीं रगों में जो सारा अम्बर नापेंगे, इतना तो दामन नहीं हमारा जो सारा उपवन टाँकेंगे। अपना तो छोटा सा अम्बर है गिने चुने से तारें हैं, एक तारा भी ओझल हो तो हृदय डूब सा जाता है। एक कुसुम सी आशा पर जीवन का स्वप्न सजाया है, छोटी छोटी कलियों ने छोटा सा बाग बनाया है, इस बाग उजड़ने के डर से मन तो घबरा सा जाता है। छोटी सी प्यास हमारी है पर बुझती एक ही प्याले से, और सूख ही जाती आशा इसके नज़र ना आने से। माना मिट्टी के प्याले हैं ये टूटा ही करते हैं, जिनसे बुझती है उर की अग्नि वे समर भी सूखा करते हैं। हमको ये प्याले प्यारे हैं, सागर तो है बस मन बहलाने को, एक फूल बस एक सितारा काफी एक युग सहलाने को। तूफानों की आहट से मन का जंगल तो शोर मचाता है। स्मृति
Wow bahut achhi kavita!
ReplyDeleteप्रतिभायें उजागर होने का रास्ता स्वयं खोज ही लेती हैं।
ReplyDeleteअनेकानेक बधाईयां एवं भविष्य के लिए शुभकामनाएं।
प्रोत्साहन एवं प्रशंसा के लिये तहे दिल से धन्यवाद
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