मेरी इच्छा होती है-
मेरी नजरों में न आये
कोलतार की चिकनी सड़क पर
किसी श्रमिक के लहू की छीटें,
क्योंकि मैं जानता हूँ
वे छीटें-
जरूर किसी माँ के स्तन का
तरल श्वेत द्रव्य है
जो लालिमा बिखेरता है।
मेरी इच्छा होती है
चिरस्थायी पर्वत की ढालान से
सरिता का प्रवाह
कल-कल मधुर ध्वनि के साथ
मही की महानता को कायम रखने
सदैव हरितिमा को बनाये रखें।



मेरी इच्छा होती है
मैं नभ सा विशाल देह गढ़कर
दिनकर की एकाग्रता
शशि की शीतलता
तरुवर सा समर्पण भाव ले
आकांक्षा व जिज्ञासा के दो हाथों से
थाह लूँ सागर की गहराई को
और कम पड़ जाये उनका जल।
मेरी इच्छा होती है
जेठ की दूपहरी में
समीर की ऊष्णता के संग,
पावस के वक्त
रिमझिम / मूसलाधार बारिश में
पूस की पूनम / अमावस्या की रात को
प्रकृति के सानिध्य में
कोई अमर कविता लिखूँ
सच में यार !
मेरी इच्छा होती है।
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टीकेश्वर सिन्हा "गब्दीवाला"
घोटिया-बालोद (छत्तीसगढ़)

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