- डॉ. कुसुम पांडेय
गंगा सिर्फ एक नदी नहीं है। हमारे देश की सभ्यता संस्कृति गंगा जी पर टिकी है। जी हां ! गंगा मैया अर्थात एक मां जिस तरह अपने बच्चों का पालन पोषण करती है उसी तरह गंगा मैया भी हमारा पालन-पोषण करती हैं। पवित्र पावनी गंगा की अविरल धारा हमें ऐसे ही नहीं प्राप्त हो गई हैं।
हरिद्वार तक गंगा जी का जल बहुत कुछ पवित्र, पावन और अविरल भी है। लेकिन क्या हमें यह नहीं सोचना चाहिए कि जिन गंगा मैया का "इतने विशेष उद्देश्य के लिए अवतरण हुआ है कि उनकी जल की एक बूंद भी पर्याप्त है। तो क्या उनके प्रति हमारी संवेदनशीलता भी उसी रूप में नहीं होनी चाहिए?
1985 से गंगा प्रदूषण रोकने के लिए गंगा एक्शन प्लान बना। राष्ट्रीय गंगा मिशन बेसिन प्राधिकरण इसका गठन भारत सरकार ने वर्ष 2009 में पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986 की धारा 3 के तहत किया था। इसमें गंगा को राष्ट्रीय नदी घोषित किया गया। 2010 में सरकार द्वारा सफाई अभियान को यह सुनिश्चित करने के लिए प्रारंभ किया गया कि वर्ष 2020 तक कोई सीवेज या औद्योगिक अपवाह नदी में प्रवेश ना करें। 2014 में नमामि गंगे कार्यक्रम एक एकीकृत संरक्षण मिशन प्रारंभ किया गया था।
2016 में राष्ट्रीय गंगा परिषद की स्थापना हुई इसका उद्देश्य गंगा नदी के कायाकल्प, संरक्षण और प्रबंधन हेतु राष्ट्रीय कार्यान्वयन परिषद के रूप में भी जाना जाता है। इसकी अध्यक्षता प्रधानमंत्री द्वारा की जाती है। लेकिन हम सब इस बात को झुठला नहीं सकते कि इतने सरकारी प्रयासों के बाद भी गंगा प्रदूषण मुक्त नहीं हो पा रही हैं। गंगा नदी को मां कहने वाले इनके धर्म पुत्रों और पुत्रियों ने ही इन्हें दूषित कर दिया है। इसकी सबसे बड़ी वजह नदी में जल-मल का प्रभाव तो है ही साथ ही औद्योगिक कचरे का लगातार गंगा में गिरना भी है।
इसकी दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि गंगा और उसकी सहायक नदियों पर बने बांधों के कारण इसके कुल जल प्रवाह में काफी कमी आ गई है। परिणाम यह हुआ है कि गंगाजल में लवणता की भारी वृद्धि हो गई है। हालात यह है कि गंगाजल पीने और स्नान करने के लायक तो नहीं रह गया है अपितु खेती के लिए भी इसके जल के उपयोग पर सवाल उठाए जा रहे हैं।
गंगा नदी को अधोगति से मुक्त दिलाने के लिए 1985 में गंगा एक्शन प्लान शुरू हुआ। दुर्भाग्य से लगभग 1000 करोड़ रुपए खर्च होने के बाद भी गंगा नदी के प्रदूषण स्तर को कम नहीं किया जा सका, उल्टे गंगा का प्रदूषण स्तर और बढ़ गया। आज गंगा की सफाई अभियान के लगभग 36 वर्ष बीतने को हैं। इसके बावजूद नदी में प्रदूषण की मात्रा लगातार बढ़ती जा रही है।
इतने सारे सरकारी प्रयासों और तमाम गैर सरकारी संगठनों के प्रयासों के बावजूद गंगा मैली और प्रदूषित क्यों हैं? एक तरफ तो गंगा मैया की एक बूंद से पुरखों को तारा जाता है। मरने वाले व्यक्ति के मुंह में अंत समय में गंगाजल और तुलसी डाली जाती है। किसी भी पूजा पाठ में गंगाजल आवश्यक माना जाता है, तो फिर गंगा मैया को इतनी निर्ममता और निर्दयता के साथ क्यों मैला क्यों किया जा रहा है?
हमारे विचार से गंगा मैया की पवित्रता और अविरलता के लिए अब हर जन को भगीरथ बनना पड़ेगा। सिर्फ कहने बोलने और लिखने से गंगा नदी पवित्र नहीं होंगी उन्हें वास्तव में मां की तरह मान कर हमें अपना कृत्य करना पड़ेगा। हर एक को अपने स्तर से भगीरथ बढ़ने का प्रयास कर अपने देश की धरती पर गंगा मैया की अविरलता और पवित्रता का सार्थक प्रयास करने में लग जाना है। राष्ट्रीय नदी गंगा मैया की तकदीर को आज भी इसका इंतजार है कि कब कोई मेरी शुद्धता और निर्मलता के लिए सच्चे मन से कदम बढ़ाएगा।
(वरिष्ठ समाजसेवी, अधिवक्ता एवं लेखिका)
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