शिवचरण चौहान
यदि प्रकृति विनाश इसी तरह जारी रहा तो बहुत भयंकर परिणाम सामने आएंगे धरती को बचा पाना मुश्किल हो जाएगा। सूर्य से अथवा समुद्र से प्रलय आ सकती है। हाल ही में नवंबर 2021 में ग्लासगो में संपन्न हुए जलवायु चिंतन सम्मेलन में कुछ खास परिणाम नहीं निकले। इस बार भी सिर्फ वादे पर वादे किए गए और सारा मामला 2030 तक के लिए टाल दिया गया।



मीथेन गैस उत्सर्जन कार्बन डाइऑक्साइड गैस उत्सर्जन रोकने के लिए सिर्फ प्रस्ताव ही आए कोई ठोस कदम उठाने की बात किसी ने नहीं चाहिए। जलवायु को सबसे ज्यादा बिगाड़ने के जिम्मेदार चीन और रूस जैसे देशों ने तो इस सम्मेलन का बहिष्कार ही कर दिया। जैसा पिछली बार अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रंप कर चुके हैं।
इस बार अच्छी बात यह रही कि अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन ने इस सम्मेलन में भाग लिया और जलवायु परिवर्तन से हो रहे दुष्प्रभाव को रोकने के लिए अपनी प्रतिबद्धता जताई और पिछले राष्ट्रपतियों द्वारा की गई गलती की क्षमा मांगी। कुछ देशों ने जंगलों के कटान और पहाड़ भूमि खनन पर तत्काल रोक लगाने की बात की तो भारत जैसे देश ने इस पर भी अपनी सहमति नहीं जताई। भारत में जंगलों का अंधाधुंध कटान हुआ है और पहाड़ के पहाड़ तोड़ डाले गए हैं खोद डाले गए हैं। भारत के प्रधानमंत्री ने यह कहकर कि उज्जवला योजना के सिलेंडर  महिलाओं को देकर वह कार्बन डाइऑक्साइड के नियंत्रण का प्रयास कर रहे हैं हास्यास्पद बात साबित हुई।
अब और  देर करने की जरूरत नहीं है। भारत में भी कार्बन डाइऑक्साइड और मीथेन गैस का उत्सर्जन रोकने के लिए तत्काल प्रभाव से डीजल पेट्रोल चालित सभी गाड़ियों को रोक लेना। प्रतिबंधित कर देना चाहिए। कोयले के बिजली घर के स्थान पर सौर ऊर्जा और पवन ऊर्जा के बिजलीघर स्थापित करने चाहिए। ऐसी कारें बाइक ट्रक और भारी वाहन बनाए जाएं जो सौर ऊर्जा से संचालित हों। हर साल बरसात के मौसम में पूरे भारत में सघन पौधरोपण कार्यक्रम चलाए जाएं फर्जी नहीं जैसा कि सभी राज्य सरकार ने चलाती हैं। कागजों में पौधे न लगाए जाएं। भूमि की खदान पर तत्काल रोक हो, कोयले की खदानें बंद कर दिए हैं। पहाड़ों का तोड़ना, काटना तत्काल बंद कर दिया जाए।  अब कोई नया कारखाना न लगाया जाए और को हैं उन्हें सूरज की ऊर्जा से बिजली उत्पन्न कर चलाया जाए। नदियों  में सौ प्रतिशत गंदा जल गिरने से रोक दिया जाए। नहीं तो 2030 तो दूर 2026 27 तक ही  दुनिया में भयंकर विनाशकारी मंजर दिखाई देने लगेंगे।
 उत्तराखंड में ग्लेशियर फटने की घटना इसका ताजा उदाहरण है। उत्तराखंड में कई जगह भारी तबाही हुई थी। नदियों ने तटबंध तोड़ दिए थे। उत्तर प्रदेश में भी हाई अलर्ट जारी किया गया था। हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड कि पहाड़ों में हर वर्ष भयंकर विनाश होता है जिसका दुष्परिणाम लोगों को भोगना पड़ता है।   आखिर इंसान कब चेतेगा? यह बड़ा सवाल है। धूल धुएं के कारण दिल्ली, लखनऊ, कानपुर, पटना, कोलकाता के पर्यावरण पर भारी खतरा मंडराता रहता है। हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट को सरकारों को फटकार लगानी पड़ती है कड़े आदेश देने पड़ते हैं कि पर्यावरण सुधारो, प्रगति के कारण प्रकृति से छेड़छाड़ ना करो। पर कोई सुनता ही नहीं।  दुनिया में हो रही भयंकर घटनाएं चेतावनी हैं कि अगर अब नहीं सुधरे तो भयावह परिणाम होंगे।
ग्लेशियर हमारे लिए वरदान है मगर अगर प्रकृति से छेड़छाड़ की गई तो यही हमारे विनाश का कारण बन सकते हैं पर हम समझने को तैयार ही नहीं है।
उत्तरी दक्षिणी ध्रुव के बाद अगर कहीं सबसे ज्यादा ग्लेशियर हैं तो वह हिमालय पर हैं। हिमालय में 41000 वर्ग किलोमीटर से भी अधिक क्षेत्र में ग्लेशियर पाए जाते हैं। यह ग्लेशियर जब धीरे-धीरे गलते हैं तो हमारी नदियों में पानी आता है। यही ग्लेशियर यानी बर्फ के पहाड़ यदि एक साथ टूटकर नदियों में आ जाएं तो हमारी हिमालय से निकलने वाली नदियों में यकायक बाढ़ आ जाएगी। नदियां तट बंध तोड़ देती हैं और भारी तबाही आ जाती है जैसा कि उत्तराखंड में हुआ था।
 विकास के नाम पर हमने प्रकृति का अधाधुंध दोहन किया है। पर्वतों पर खड़े पेड़ काट डाले। अरावली पर्वत श्रृंखला, विंध्य पर्वत श्रृंखला, सतपुड़ा के पहाड़ हमने काट काट कर गिट्टी और  पत्थर बना डाले और उससे सड़के हाई वे बना डाले। आज कई पहाड़ जड़ से गायब हैं जैसे कभी इस धरती पर थे ही नहीं। राजस्थान में अरावली पर्वत श्रृंखला के सात पहाड़ कहां चले गए सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान सरकार से पूछा है?
स्कॉटलैंड के ग्लासगो में हुए जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में इस बार सिर्फ वादे वादे वादे किए गए। भारत जैसे देश में जहां जान का खतरा होने पर भी लोग मास्क नहीं लगाते वे जलवायु संरक्षण के प्रति कितने संवेदनशील होंगे। अभी क्या, अभी तो शुरुआत है। अगर अब भी नहीं चेते तो आगे क्या होगा कोई नहीं जानता? हम अपनी मूर्खता के कारण भावी पीढ़ी का भविष्य खत्म किए दे रहे हैं।
(स्वतंत्र पत्रकार, लेखक)

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