- अजीत राय
ऐसे तो देश के अंदर हो या बाहर, कहीं भी शांति नजर नहीं आती। कहने का तात्पर्य यह है कि इस समय पूरा भारतवर्ष, सरहद के अंदर से लेकर सरहद के उस पार तक के वातावरण में एक अजीब-सी उबाल महसूस कर रहा है। आने वाले वर्ष में पांच राज्यों में चुनाव भी होने वाले हैं। उसको लेकर तमाम प्रदेश अपने-अपने तरीके से चुनाव की तैयारियों में जुट गए हैं। चुनाव में उतरने से लेकर लड़ने और जीतने तक के लिए सभी दलों के अपने-अपने मंत्र हैं। जनता भी अपनी उंगलियां साफ करने में लग गई है, क्योंकि, यही तो एक ऐसा मौका होता है, जिसका लुत्फ उसे पांच साल में एक बार उठाने का मौका मिलता है। उसके बाद, फिर पांच साल का पूरे बेसब्री से इंतजार करना पड़ता है।
इन बेसब्र पांच सालों में उसे क्या मिल पाता है, उससे कहीं ज्यादा, वह झेल लेता है। और, यह झेलती तस्वीरें देश के तमाम प्रदेशों में देखने को मिल सकती हैं। मगर, हाल में जो तस्वीर उत्तर प्रदेश में देखने को मिली, की जितनी भी निंदा की जाए, वह कम नहीं। जितनी दूर तलक यह तस्वीर पहुंच पाई, वहां तक निवासित शायद ही ऐसा कोई प्राणि रहा हो, जिसने अपनी दांतों तले अपनी उंगलियां न दबा ली हो...!
जिस वाकये का मैने जिक्र किया है, वह कहीं ज्यादा दूर का नहीं है। यह उत्तर प्रदेश के 'लखीमपुर खीरी' का है। जहाँ 3 अक्तूबर को आंदोलित किसानों के ऊपर पीछे से गाड़ियां चढ़ा दी गईं, जिसमें चार किसान सहित आठ लोग काल के गाल में समा गए। मामले में आरोपी केंद्रीय गृह राज्य मंत्री 'अजय मिश्र' के बेटे 'आशीष मिश्र' को बताया जा रहा है। इस मामले में आरोपी को सजा मिले और पीड़ित परिवार को न्याय, की अपेक्षा प्रदेश की जनता को ही नहीं, बल्कि समस्त देशवासियों को भी है। फिलवक्त आशीष गिरफ्तार हो चुके हैं। लेकिन इसका हासिल केवल गिरफ्तारी ही नहीं है। इससे भी आगे बहुत कुछ है।
इसके लिए संबंधित मामले को पूरी यात्रा तय करने के लिए जिन पगडंडियों पर कदमताल की जरूरत होती है, पर मामले ने अपने कदम भी रख दिए हैं। पर, आरोपी को सजा मिले और पीड़ित किसान परिवार को न्याय, यह सबकुछ प्रदेश/ केंद्र सरकार के इरादे और समन्वय पर टिका है। इसके लिए प्रथम जरूरत है, मामले की निष्पक्ष और ईमानदार विवेचना की। अगर, यहां पर किसी भी प्रकार की चूक होती है, ढिलाई बरती जाती है, या किसी भी तरह के राजनैतिक हस्तक्षेप से मामले को प्रभावित करने की कोशिश होती है, तो ऐसी स्थिति में, पीड़ित किसान परिवार व अन्य के साथ-साथ, प्रदेश/ देश की जनता की अपेक्षाओं/उम्मीदों पर पानी फिरना तय है। क्योंकि, ऐसे भी हमारे देश की आपराधिक न्याय प्रक्रिया में अंतर्विरोध कम नहीं हैं। जिससे पार पाने में अच्छा-खासा दम फूलता है।
चुनाव सिर पर है, प्रदेश सरकार व केंद्र सरकार की प्रतिष्ठा दांव पर लगी पड़ी है। इससे भी कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण मामले की संवेदनशीलता है, क्योंकि, जिन किसानों ने अपने इन सियासतदानों को, अपने सिर-माथे पर बिठा रखा था, को उम्मीद नहीं थी कि उनके सियासतदां, उनके साथ इस तरह का बर्ताव करेंगे और इस रूप में खड़े होंगे। लिहाजा, हमारी सरकारों को, इस मामले में साफ नीयत के साथ पेश आने की जरूरत है, क्योंकि, हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि देश इस समय अभूतपूर्व व गंभीर संकट से गुजर रहा है। हर तरफ तनाव ही तनाव महसूस किया जा रहा है।और, ऐसे विकट समय में, अगर हमारे हुक्मरानों ने अपने दायित्वों के निर्वाह में थोड़ी सी भी लापरवाही बरतीं, तो देश के भीतर माहौल घातक भी हो सकता है।
(लेखक पटना हाईकोर्ट के अधिवक्ता हैं।)
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