सनातन हिन्दू धर्म में हर ऋतु व मौसम में पूजन व आराधना का विधान है। इसी क्रम में नवदुर्गा रूप को देवताओं की शक्ति के रूप में माना जाता है। दुर्गा पूजा नवरात्रि भी वर्ष में तीन बार आती है। एक शारदीय नवरात्र
दूसरी वासन्ती नवरात्र तीसरी गुप्त नवरात्रि शारदीय नवरात्र शरद ऋतु यानि आश्विन मास (सितम्बर-अक्टूबर) के आस-पास आती है। आजकल जो नवरात्रि चल रही है इसे शारदीय नवरात्रि कहा जाता है। चैत्र मास में जो नवरात्रि आती है इसमें रामनवमी भी आती है, क्योंकि चैत्र मास में मर्यादा पुरुषोत्तम परम आराध्य प्रभु श्री राम का जन्म हुआ था। आश्विन नवरात्रि में विजयादशमी (दशहरा)का पर्व बडी धूमधाम से पूरे देश में मनाया जाता है। इस दिन आतताई रावण का वध करके व लंका पर विजयश्री प्राप्त करके प्रभु श्री राम अयोध्या लौटे थे।
    चैत्र मास की नवरात्रि के प्रारम्भ में हिन्दू सनातन धर्म  का नव वर्ष  भी प्रारम्भ होता है। मां दुर्गा के नौ रूप शास्त्रों व पुराणों में बताए गये हैं। श्रीमद्भागवत महापुराण  में जिस तरह परम आराध्य  प्रभु श्री कृष्ण की लीलाओं का वर्णन है ठीक उसी तरह श्रीमद्भागवत में भी  दुर्गा मां नौ रूपों व लीलाओं का मार्मिक वर्णन है।



प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी
तृतीयं  चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम
पंचमं स्कन्दमातेति बष्टमम् कात्यायानी च
सप्तमम् कालरात्रीति महागौरीति चाष्टमम्
नवमम सिद्धिदात्री च नवदुर्गा प्रीर्तिता।।
पहले दिन पहले रूप शैलपुत्री दूसरे दिन ब्रह्मचारिणी तीसरे दिन चन्द्रघण्टा  क्रमश:कुष्माण्डा आदि नवदुर्गा के नौ रूपों की पूजा होती है। दुर्गा पूजा के अलग -अलग क्षेत्रों में अलग -अलग विधान हैं। इसमें नौ दिन तक उपवास रखा जाता है फलाहार लेते हैं कयी उपवासी निराहार भी रहते हैं।
बंगाल में खाशकर मां दुर्गा के काली रूप की तान्त्रिक पूजा की जाती है। जम्मू में वैष्णो देवी की पूजा की जाती है। उत्तराखण्ड  में नन्दादेवी,  देवी, सुरकण्डा देवी, रेणुका देवी शक्तिमाता कुटेटी देवी,  कुंजापुरी, चन्द्रवदनी आदि देवियों की पूजा अर्चना की जाती है।  
शास्त्रों में उल्लेख है कि कनखल (हरिद्वार)में जब सती माता ने अपने पिता दक्ष के यज्ञ कुण्ड  में अपने शरीर की आहुति दी तो शंकर भगवान ने सती माता के शरीर को अपने कन्धे पर रखकर प्रचण्ड क्रोध में आकर सती माता के शरीर के टुकडे टुकडे कर दिये। कहा जाता है कि जहां जहां सती माता के शरीर के टुकडे गिरे वहां वहां सिद्धपीठ बनी। भारतीय सेना में आज भी नवरात्रि के पर्व पर शक्ति प्राप्ति व विजय प्राप्ति हेतु शस्त्र पूजा की जाती है।
सर्व मंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके
शरण्ये त्रयंबिके गौरी नारायणी नमोस्तुते।।
---------
-  पं.रामचन्द्र नौटियाल
उत्तरकाशी देवभूमि उत्तराखण्ड 

No comments:

Post a Comment

Popular Posts