माता के युग शुभ चरण, पड़ें वहाँ कल्याण। भक्तों की रक्षा करें, दुष्टों के लें प्राण । दुष्टों के लें प्राण, राक्षसों को संहारें । मन के हरें विकार,अमंगल क्षण में टारें। कह 'कोमल' कविराय, सदा शुभ मंगल दाता। चरण कमल सुख धाम, तुम्हारे पावन माता। मन के माँ हर लीजिए, जो हैं दोष विकार। काम क्रोध अज्ञान मद, कलुषित भाव विचार। कलुषित भाव विचार, हृदय से दूर भगाएं। जगें सदा शुभ भाव , ज्ञान की ज्योति जलाएं।
कह 'कोमल' कविराय, सुखद क्षण हों जीवन के। करो कृपा हे मात, स्वप्न हों पूरे मन के । तेरा माँ शुभ आगमन, सुख वैभव समृद्धि। स्वस्थ मुदित सानंद सब, मंगलमय है बृद्धि। मंगलमय है बृद्धि, मात तुम मंगल दाता। माँ तेरी शुभ भक्ति, सदा कल्याण प्रदाता। कह 'कोमल' कविराय, तिमिर माँ हरो घनेरा। विनत भाव से ध्यान, करें हम मैया तेरा । ----------- - श्याम सुन्दर श्रीवास्तव 'कोमल' व्याख्याता, अशोक उ.मा. विद्यालय, लहार (भिण्ड)।
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