ऐ जिंदगी ! आ बैठ
कहीं चाय पीते हैं
तूं भी थक गई होगी
मुझे भगाते-भगाते।




ऐसी दौड़ लगवाई
तूने मेरी तो
कि मैं भी पत्थर होगी
तेरे सताते-सताते।

अब किसी भी दर्द का
फर्क मुझे पड़ता नहीं
क्योंकि दुखों की आदी होगी
मैं दुख सहते-सहते।

जिंदगी तूं है मजेदार
जितनी की हूँ मैं हिस्सेदार
बड़ी खुशी से जियूँगी
अन्तिम सांस के भी जाते-जाते।

- करमजीत कौर,
शहर-मलोट, जिला- श्री मुक्तसर साहिब।

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