एक बार फिर उच्चतर शिक्षा सेवा चयन आयोग कटघरे में
लखनऊ/जौनपुर। उत्तर प्रदेश के समस्त उच्च शिक्षण संस्थाओं (महाविद्यालयों) में नियुक्ति करने करने वाला उच्चतर शिक्षा सेवा चयन आयोग प्राचार्यों की नियुक्ति को लेकर एक बार फिर अपने ही बुने जाल में फंसता चला जा रहा है। ऐसा ही कुछ तब हुआ था जब 2005 के विज्ञापन सं-39 की 2007 में चयन सूची जारी की गई थी। डॉ. करूणा निधान उपाध्याय द्वारा जन सूचना अधिकार के तहत प्राप्तांकों की सूची मांगी गई थी।
सूचना को पहले तो चयन आयोग यह कहकर टालता रहा कि यह गोपनीय दस्तावेज है। इसे नहीं दिया जा सकता है लेकिन जन सूचना आयोग के कठोर रुख एवं यह कहने पर कि "परिणाम घोषित होने के बाद यह गोपनीय दस्तावेज नहीं है।" मजबूरी में देना पड़ा था। उससे जो खुलासा हुआ ‌था। वह चौंकाने वाला था। जौनपुर के डॉ. अखिलेश्वर शुक्ला 176 अंक प्राप्त करने के बाद भी चयन सूची से बाहर थे, जबकि 162 अंक प्राप्त करने वाले को नियुक्ति मिली थी। यह प्रकरण तात्कालिक समाचार पत्रों में इतनी सुर्खियां बटोरी कि मामला माननीय उच्च न्यायालय इलाहाबाद में चला गया।
हाईकोर्ट ने नियुक्ति को अवैध घोषित किया
उच्च न्यायालय द्वारा प्रदेश में प्राचार्यों की नियुक्ति को अवैध घोषित कर, निरस्त कर दिया गया था लेकिन माननीय सर्वोच्च न्यायालय में अपील दायर कर अवैध घोषित प्राचार्य पद का लाभ उठाते रहे। सर्वोच्च न्यायालय ने नियुक्ति को अवैध घोषित तो किया ही यह भी आदेश दिया कि ये सभी अपने नाम के साथ पूर्व प्राचार्य नहीं लिख सकते हैं तथा अपने पूर्व के स्थान पर वापस जायेंगे तथा प्राचार्य पद का प्राप्त वेतन वापस करेंगे। इसका परिणाम यह हुआ कि अवैध घोषित नियुक्ति प्राप्त करने वाले लगातार 10 वर्षों तक प्राचार्य पद पर बने रहे। वहीं योग्य प्राध्यापक लगातार 14 वर्षों तक प्राचार्य पद पर नियुक्ति का इंतजार करते रहे या सेवानिवृत्त होकर चले गए।
विज्ञापन सं-49 के द्वारा माननीय न्यायालय के आदेश पर लिखित परीक्षा के द्वारा प्राचार्य पद पर नियुक्ति के लिए 2017, फिर 2019 में आवेदन आमंत्रित किया गया। 2020 में चयन प्रक्रिया शुरू किया गया। अभी तक 30-32 मुकदमें दायर हो चुके हैं। अनेकों चयनित अभ्यर्थियों (प्राचार्यों) के विरुद्ध नामजद आरोप लगाते गए हैं। जिनके विरुद्ध नोटिस जारी किया गया है।
योग्यता पूरी करने की छूट दी गई
माननीय उच्च न्यायालय में याचिका दायर करने वाले डॉ. नरेन्द्र कुमार सिंह ने कहा कि लिखित परीक्षा में प्रश्न पुस्तिका, उत्तर पुस्तिका एवं अनुक्रमांक एक ही रखा गया ताकि अपने चहेतों को आसानी से नियुक्ति दिलाई जा सके। यही नहीं 13 उच्च वेतन प्राप्त एसोसिएट प्रोफेसर को आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग मानते हुए आरक्षण का लाभ जबकि एकल पद पर कोई आरक्षण की व्यवस्था नहीं है।
जुगाड़ लगाकर पत्नी की भी करा दी नियुक्ति
साकेत फैजाबाद गणित विभागाध्यक्ष डॉ. शिव कुमार तिवारी का दावा है कि जिनका जुगाड़ सही बैठ गया, अपने साथ-साथ अपनी पत्नी की भी नियुक्ति कराने में सफल रहे। राष्ट्रीय पीजी कॉलेज जमुहाईं के डॉ. राजेश सिंह का कहना है कि शिक्षा व्यवस्था में सुधार की डंका बजा रही सरकार एवं सरकारी दल के लिए यह एक बदनुमा दाग होगा। श्री गणेश राम पीजी कॉलेज डोभी के डॉ. प्रवीण कुमार सिंह ने कहा कि बड़े पैमाने पर धांधली का मामला माननीय उच्च न्यायालय प्रयागराज पहुँच चुका है।
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आयोग की कारस्तानी का भुक्तभोगी हूँ : डॉ. अखिलेश्वर शुक्ला
राजा श्री कृष्ण दत्त स्नातकोत्तर महाविद्यालय जौनपुर के प्राचार्य डॉ. अखिलेश्वर शुक्ला ने कहा कि मैं 2007 से आयोग के कारस्तानी (धांधली) का भुक्तभोगी रहा हूं। मैं अब तक लगातार 14 वर्षों का अनुभव प्राप्त कर उसका लाभ उठाया होता, लेकिन चयनित या चयन से वंचित योग्य अभ्यर्थियों को ही नुकसान उठाना पड़ता है। अयोग्य या गड़बड़ी करने वाले कभी दंडित नहीं हो पाते। सुधार तभी होगा जब गुनाहगार को दंडित किया जाएगा।

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