प्रो. नंदलाल मिश्र
- अधिष्ठाता, कला संकाय
महात्मा गांधी चित्रकूट ग्रामोदय विश्वविद्यालय चित्रकूट।
इन दिनों यौन दुर्व्यवहार की घटनाओं में बहुत अधिक वृद्धि दिखाई दे रही है। ऐसा नहीं है कि हाल के वर्षों में वृद्धि दर्ज की गई हो। यह कुछ दशक पूर्व से ही एक सुनियोजित षड्यंत्र के रूप में घटित हो रहा है। जहाँ देखो सुनो या बात करो आपको आसानी से सुनने या देखने को मिल सकता है कि अमुक जगह बलात्कार हुआ और उसके बाद उसकी हत्या कर दी गयी। इसके अनेक रूप हैं। कई रूपों में यह समाज में घटित हो रहा है। निर्भया कांड और उससे उपजे आक्रोश से लगा था इसकी रफ्तार में कमी आएगी लेकिन ऐसा कुछ नही हुआ उल्टे उसमे बेतहाशा वृद्धि रिकॉर्ड की गई।
महिला शिक्षा के स्तर में वृद्धि हुई। महिलाओं के सशक्तिकरण में विस्तार हुआ।पहले की अपेक्षा आज की नारी कही अधिक सशक्त है। वह कई क्षेत्रों में आत्मनिर्भर हैं। पारिवारिक निर्णय में तो वह कही अधिक आगे हैं। वह परिवार की धुरी हैं। घूम-फिरकर वह जो चाहती है वही निर्णय परिवार में होता है। उसकी चेतना बढ़ी है। उसमें जागरूकता पैदा हुई है। सामाजिक, राजनैतिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, धार्मिक एवं शैक्षिक जगत में उसने अपना स्थान बनाया है। फिर ये जो घटनाएं बढ़ रही हैं इसके पीछे का कारण क्या है।
कहीं ये घटनाएं पति-पत्नी के बीच तो कही सामूहिक दुष्कर्म के रूप में तो कही रिश्ते को तार-तार करता पिता-पुत्री के बीच में घट रही हैं। कहीं-कहीं लव जिहाद के रूप में तो कही अकेले में चल रही युवती को खींचकर हो रही हैं। सबसे निकृष्ट रूप उस समय सामने आता है जब पता चलता है कि 4-5 वर्ष की बच्चियों के साथ यह घटना हुई है और उसे मारकर फेंक दिया गया है। प्रश्न पैदा होता है कि ऐसा क्यों?जिस समाज की स्त्रियां निरंतर प्रगति पथ पर अग्रसर हैं वहाँ यौन दुर्व्यवहार का ग्राफ भी तेजी से बढ़ रहा है। कुछ विरोधाभास सा प्रतीत होता है। इसका यह कदापि अर्थ नही निकलना चाहिए कि प्रगतिवादी समाज का यह भी एक लक्षण है। मेरा आशय यहाँ यह है कि जब हम सशक्त और आत्मनिर्भर महिलाओं की बात करते हैं तो ये राक्षस कहाँ से जन्म ले लेते हैं।
इसके पीछे के प्रतिरूपों को देखें और उसकी समीक्षा करें तो सबसे बड़ा कारण यह समझ में आएगा कि अभी महिलाओं का बड़ा भाग आत्मनिर्भर नहीं हुआ है न ही सशक्त। दूसरा जो कारण है वह है सशक्त लोगों का प्रदूषित वातावरण में अति विश्वास के साथ अपने को प्रदर्शित करना। समाज में बहुत ऐसे दरिंदे हैं जिनको महिलाओं की आत्मनिर्भरता पसंद नही आती। तीसरा कारण समाज में ऐसे बहुत लोग हैं जो न तो व्यवस्थित तरीके से पोषित हुए हैं न ही उनकी कोई निश्चित दिनचर्या या जिम्मेदारी होती है। न तो उनके रहने का स्थान निश्चित है न ही परिवार की कोई परंपरा या परिवार की संकल्पना। वे लोग आज यहां तो कल कहीं और रहते है। ऐसे लोग किसी समाज के प्रति जबाबदेह भी नहीं होते। उन लोगों द्वारा इस तरह की घटनाओं को अंजाम देना आम बात हो गयी है। कार्यालयों में भी यौन अनुशासन क्षीण हुआ है। शिक्षा जगत में शिक्षक भी इसमे संलिप्त पाए जाते हैं।
समरथ को नहीं दोष गोसाईं। सामर्थ्यवान लोग जिसमें नेता-अधिकारी भी महिलाओं का शोषण करते अक्सर पाए जाते हैं। यहां यह गिन पाना बहुत दुष्कर है कि ये घटनाएं देश मे इतने बड़े पैमाने पर क्यों हो रही हैं और कहां कहां हो रही हैं।
यहां दो बातें बताना जरूरी जान पड़ता है। पहला कि लोगों में ऐसी तामसिकता किस कारण से बढ़ रही है और लोग पशुवत व्यवहार करने पर क्यों आमादा हैं। क्या काम रूपी मूलप्रवृति पर अंकुश संभव नहीं है। दूसरा देश में धड़ल्ले से शराब और अन्य नशीले पदार्थो की बिक्री को बढ़ावा देने का औचित्य क्या है।
हम लड़कियों को लड़के के रूप में विकसित करना चाहते हैं पर आज का समाज अभी उस लायक बना नहीं है। जो इसे आसानी से स्वीकार कर ले। अन्य देशों में ऐसा है पर वहाँ की व्यवस्थाएं अलग हैं। संभव है कि इस संक्रमण के दौर से जब हम निकलें तो यहां भी वैसा ही समाज बन जाय, लेकिन इसकी बड़ी कीमत चुकानी होगी। आये दिन आप तमाम कोर्ट के फैसले सुनते हैं जहां शादी के नाम पर झांसा देकर दुष्कर्म किये जाते हैं। वहां लड़कियों की मानसिकता भी संदिग्धता के घेरे में आ जाती है। लिव इन रिलेशन ने कितनी समस्याएं समाज को दी हैं बारीकी से उसका विश्लेषण बाकी है।
स्वतंत्रता और स्वच्छंदता ने आपसी संबंधों की बारीक रेखा को मिटाया है। जिंदगी के ज्यादातर व्यवहार बड़े बुजुर्गों के निर्देशन को अस्वीकार करते हुए मोबाइल और नेट द्वारा दिये गए ज्ञान से सम्पन्न किये जा रहे हैं। जो छद्म रूप में हमारे अंदर स्थान बना लेते हैं। हम इसकी कोई परवाह नहीं करते कि हमारे द्वारा किये गए व्यवहार को समाज स्वीकारेगा या नही। इस प्रकार के कृत्य हमारे सामने ऐसी स्थितियां पैदा कर देते हैं जहां हम असहाय और लाचार हो जाते हैं। ऐसे में नशीले पदार्थ और शराब वातावरण को दुर्व्यवहार के लिए और अधिक अनुकूल बना देते हैं।कामा तुराणाम न भयं न लज्जा। कामातुर व्यक्ति चाहे वह पुरुष हो या स्त्री उसको न तो किसी का भय रहता है न लज्जा। जब स्थितियां दुर्व्यवहार के लिए अनुकूल होती हैं तो कामातुर को फांसी की सजा भी कुछ नहीं कर सकती।
जरूरत है ऐसे समाज निर्माण की जहां सभी निर्भीक रूप से रह सकें। यौन अनुशासन को बनाये रखने की शिक्षा आवश्यक है। क़ानून चाहे जैसा बना लिया जाए इस मूल प्रवृति पर नियंत्रण तभी होगा जब हम इसके शमन का उपाय खोजें।इसका शमन तब होगा जब हम सभ्य समाज की रचना में दो कदम आगे बढ़ेंगे।
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