नोएडा अथॉरिटी के आंख, नाक, कान और चेहरे तक से टपकता है भ्रष्टाचार !
 

नयी दिल्ली- सुप्रीम कोर्ट ने नोएडा प्राधिकरण के खिलाफ कड़ा रुख अपनाते हुए  कहा कि प्राधिकरण के चेहरे ही नहीं, उसके मुंह, नाक, आंख सभी से भ्रष्टाचार टपकता है। नोएडा एक्सप्रेस स्थित  सुपरटेक के एमराल्ड कोर्ट प्रोजेक्ट मामले में अथॉरिटी के अधिकारियों द्वारा बिल्डर का  बचाव करने और फ्लैट खरीदारों की खामियां बताने पर शीर्ष अदालत ने यह टिप्पणी करते हुए अपना फैसला सुरक्षित रख लिया। सुप्रीम कोर्ट ने नोएडा अथॉरिटी को जमकर फटकारा है। अथॉरिटी को 'भ्रष्‍टाचारी संस्‍था' बताते हुए अदालत ने कहा कि वह बिल्‍डर से मिली हुई है और एक तरह से सुपरटेक की पैरवी कर रही है।  अदालत के भीतर जब नोएडा अथॉरिटी ने बिल्‍डर के फैसलों को सही ठहराने की कोशिश की तो उसे फटकार पड़ी। बेंच ने कड़ी आपत्ति जताते हुए कहा कि अथॉरिटी को एक सरकारी नियामक संस्‍था की तरह व्‍यवहार करना चाहिए, ना कि किसी के हितों की रक्षा के लिए निजी संस्‍था के जैसे।

जस्टिस धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ और जस्टिस एमआर शाह की पीठ के समक्ष सुनवाई के दौरान प्राधिकरण के वकील रविंदर कुमार ने अथॉरिटी व अपने अधिकारियों का बचाव करते हुए कहा कि इस प्रोजेक्ट में किसी नियम का उल्लंघन नहीं किया गया है। साथ ही वह खरीदारों की कमियां गिनाने लगे। पीठ ने कहा, यह दुखद है कि आप डेवलपर्स की ओर से बोल रहे हैं। आप निजी अथॉरिटी नहीं, पब्लिक अथॉरिटी हैं।अदालत ने नोएडा अथॉरिटी की हरकतों को 'सत्ता का आश्‍चर्यजनक व्‍यवहार' करार दिया। बेंच ने कहा, "जब फ्लैट खरीदने वालों ने आपसे दो टावरों, एपेक्‍स और सीयान के बिल्डिंग प्‍लान्‍स का खुलासा करने को कहा, तो आपने सुपरटेक से पूछा और कंपनी के आपत्ति जताने के बाद ऐसा करने से मना कर दिया। इलाहाबाद हाई कोर्ट के आदेश के बाद ही आपने उसकी जानकारी दी। ऐसा नहीं है कि आप सुपरटेक जैसे हैं, आप उनके साथ मिले हुए हैं।" जस्टिस शाह ने कहा, अथॉरिटी को तटस्थ रुख अपनाना चाहिए। ऐसा लग रहा है कि आप बिल्डर हैं। आप उनकी भाषा बोल रहे हैं। ऐसा लग रहा है कि आप फ्लैट खरीदारों से लड़ाई लड़ रहे हैं। जवाब में रविंद्र कुमार ने कहा कि वह तो महज अथॉरिटी का पक्ष रख रहे हैं।
वहीं, सुपरटेक ने भी अदालत के सामने घर खरीदारों पर ठीकरा फोड़ा। सुपरटेक के वकील विकास सिंह ने कहा कि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जिन दो टावरों को गिराने का आदेश दिया है, उनमें नियमों की अनदेखी नहीं की गई है। उन्होंने खरीदारों की नीयत पर सवाल उठाते हुए कहा कि जब 2009 में उन टावरों का निर्माण शुरू हो गया था, तो उन्होंने तीन वर्ष बाद हाईकोर्ट का दरवाजा क्यों खटखटाया?  सुपरटेक के वकील विकास सिंह ने कहा, "घर खरीदार 2009 में हाई कोर्ट नहीं गए, बल्कि 2012 के बाद ही गए। वे तीन साल तक क्‍या कर रहे थे? मोलभाव?" कंपनी ने नोएडा के अन्‍य हाउजिंग प्रॉजेक्‍ट्स का हवाला दिया जिनके टावर्स के बीच 6 से 9 मीटर्स का फासला था जबकि उसके ट्विन टावर्स के बीच 9.88 मीटर की दूरी है।


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