- विनोद कुमार दुबे

प्रत्येक व्यक्ति में कुछ न कुछ विशेषता होती है जो दूसरे व्यक्ति में नहीं होती। इन्हीं गुणों एवम विशेषताओं के कारण प्रत्येक व्यक्ति एक दूसरे से भिन्न लगता है। व्यक्ति के इन गुणों के समुच्चय को ही व्यक्तित्व कहते हैं। यह एक गत्यात्मक समष्टि है, जिस पर परिवेश के प्रभाव पड़ता है। व्यक्ति के बाह्य रूप को हम व्यक्तित्व मान बैठते हैं, परंतु व्यक्तित्व के अंतर्गत व्यक्ति के गुणों के साथ ही रूप रंग को भी शामिल किया जाता है। बाह्य व आंतरिक दोनों तत्वों का समावेश व्यक्तित्व में होता है।
मार्टन प्रिंस ने कहा था कि व्यक्तित्व व्यक्ति की समस्त जैविक जन्मजात विन्यास उद्देग रुझान क्षुधाएँ मूल प्रवृतियां अर्जित विन्यास एवम प्रवत्तियों का समूह है।
- व्यक्तित्व व्यक्ति का उसके वातावरण के साथ अपूर्व व स्थायी समायोजन है। करोड़ो की भीड़ में भी निराले व्यक्तित्व को पहचाना जा सकता है।
- व्यक्तित्व पर सामाजिक परिवेश का व्यापक असर होता है। समुदाय की शैली व विशेषता से समाज मे बालक प्रभावित होता है।
- विलियम जैम्स ने व्यक्तित्व के भौतिक व्यक्तित्व, सामाजिक व्यक्तित्व,आध्यात्मिक व्यक्तित्व, शुद्ध अहम चार सोपान बताए ।
- महापुरुष का व्यक्तित्व विलक्षण रहता है। स्वामी विवेकानंद,स्वामी दयानंद, महात्मा गांधी, पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य, डॉ. राधाकृष्णन, गोपाल कॄष्ण गोखले, इनके व्यक्तित्व को देखें तो आप इनसे प्रेरित हो जाएंगे। ऐसे आकर्षक एवं बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं ये।
- कोई व्यक्ति अंतर्मुखी तो कोई बाह्यमुखी होता है। व्यक्ति के व्यवहार को जानना होता है तब व्यक्ति के व्यक्तित्व का अध्ययन सही सही होता है।प्रतिभाएं कुछ तो जन्मजात होती है तो कुछ निरन्तर अभ्यास से निखर जाती है।
- व्यक्तित्व का सीधा सा अर्थ व्यक्ति के ढांचे व्यवहार की विधियों रुचियों अभिवृत्तियों क्षमताओं योग्यताओं कुशलताओं के सबसे विशिष्ट एकीकरण के रूप में की जाती है। व्यक्तित्व व्यक्ति की सम्पूर्ण गुणात्मकता है।
- व्यक्तित्व का विकास जिन जिन दशाओं में होता है वे हैं शारीरिक आयाम, मानसिक आयाम, सामाजिक आयाम, संवेगात्मक आयाम।
- व्यक्ति को अपने व्यक्तित्व पर ध्यान देने की जरूरत है।
आज हम सभी को चाहिए कि स्व व्यक्तित्व हेतु शास्त्रों को पढ़ें बच्चों को समय देकर उन्हें संस्कार व संस्कृति से रूबरू करवाएं।

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