सूखा हुआ दरख़्त हूँ, मैं नेह का प्यासा हूँ। 
कर दो प्रेम की वर्षा, बरसों से प्यासा हूँ।      
कर दूँगा मैं घनी ठंडी छांव तुम पर 
कर दो सिंचित तुम मुझको, बरसों से प्यासा हूँ।
सूखा हुआ  दरख़्त हूँ.........
ना करना कभी दूर तुम, मुझको इस ज़मीं से। 
इस बगिया की ख़ुशबू ,मेरे रग-रग में रमी रे।
कर दूँगा सुख की बरसात, देता मैं दिलासा हूँ। 
कर दो उर्वर तुम मुझको, बरसों से प्यासा हूँ।



सूखा हुआ दरख़्त हूँ................
रोजी रोटी कमाने में हर कोई मशगूल हुआ।
कोई परदेसी तो कोई जमाने में मशहूर हुआ।
छाया से जो दूर हुए उनके मन की आशा हूँ।
घोल दो मिश्री सा स्वर , मुझमें बरसों से  प्यासा हूँ।
सूखा हुआ दरख़्त हूँ........................
खड़ा सूखा शजर राहों में इन्तज़ार करता हूँ।
पतझड़ के मौसम में अपनों के वार सहता हूँ।
मिले अपनों का आलिंगन करता यही अभिलाषा हूँ।
दे दो सौगात मुहब्बत की, मुझको बरसों का प्यासा हूँ
सूखा हुआ दरख़्त हूँ.........................
बाँध प्रेम की डोर से रिश्तों का संकलन करता हूँ।
बैठ घर के कोने में संबंधों का आंकलन करता हूँ।
बदलते हुए परिवेश की, निश्चित करता परिभाषा हूँ।
दे दो प्रेम का आलिंगन मुझको, बरसों का प्यासा हूँ।
सूखा हुआ दरख़्त हूँ ...........................
                                  ✍ स्वरचित पूजा चौधरी

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